सोचै सोचि न होवई जे सोची लख वार ॥ चुपै चुप न होवई जे लाइ रहा लिव तार
सोचै सोचि न होवई जे सोची लख वार ॥ चुपै चुप न होवई जे लाइ रहा लिव तार ॥guru granth sahib page 1 ,,,,,,,,,,
गुरबानी यह कह रही है की निराकार क्या है यह तुम अपनी बुद्धि से खुद सोच कर उसके बारे में बता दो तो यह सम्भव नहीं है क्यों निराकार बुद्धि की ही पहच से परे है ,निराकार के बारे में सोच कर कुश भी बयान नहीं किया जा सकता है इस लिए गुरबानी ने सोचना बंद करवाया है क्योकि गुरबानी सिर्फ समझने का विशा है ,जब आदमी सोचता है तो मन से अपना ख्याल पैदा होता है और मन तो कल्पना में जी रहा है गुरबानी ने संसार को सपना ही कहा है सपने में कोई सच के बारे में कैसे सोच सकता है ,,,गुरबानी कह रही है की यह समझने का विशा था तुम सोचने लग गए गुरबानी को समझने के लिए निराकार को समझने के लिए खुद की सोच छोड़ कर ज्ञान को समझना है केवल ,,,संसार में तो जीव केवल समझने के लिए ही आया है ,अगर कुश नया बनाना हो तब ही सोचने की जरुरत है जिसने बिजली पैदा की उसने सोचा अब हमे पैदा करने के लिए सोचने के नहीं समझने की जरुरत पड़ती है ,,,,परमेश्वर ने अपना ज्ञान भगतो को दिया जैसे विज्ञानी अपना ज्ञान दुनिया को देते है अब हमे सिर्फ यह ज्ञान विचारणा और समझना होता है ,,,क्योकि समझने में कुश प्राप्ति है ,आत्मा खुद ही सात सरूप है इसने सिर्फ समझना ही है की में कौन है जो कह रहा है में कौन हो वही तो आत्मा है इसमें सोच कर नहीं समज कर ही कुश प्राप्त किया जा सकता है ,गुरबानी की सबसे पहली ही पंक्ति है सोचे सोच न होवी ,,,संसार की जितने भी मते जा संसारी धरम है जिन्हे धरम मान लिया गिया है सब आदमी की अपनी सोच है संसार बुद्धि से बने है उनमे तत ज्ञान नहीं है.....जितने भी सब देवी देते बना लिए सब कल्पना है गुरबानी ने यह सब मनमतो से दूर रहने को कहा है और ज्ञान को समझने के लिए कहा है ,पर आदमी का सभाव ही ऐसा है समझना छोड़ कर खुद पढ़ाने लग जाता है यह तो पुरानी बीमारी है जो सचखंड से ही चली हुई है तभी इससे सचखंड से निकला गया था क्योकि अपनी मर्जी पैदा की थी इसी के इलाज़ के लिए ब्रहम ज्ञान परमेश्वर ने भेजा है ,क्योकि गुरबानी कह रही है पिता का जनम क्या जाने पूत ,,,बेटा पिता के जनम को नहीं जान सकता ,,,परमेश्वर से ही ज्ञान सम्भव है ,इस लिए हुकम से जुड़े बिना यह जाना सम्भव नहीं है सरे ही भगतो को यही धुर की बानी जो बिना कानो के सुनती है उसी से ज्ञान हुआ ,,,जिसने जे सब कुश बनाया है उसने ही सब कुश बताया है की तुम संसार में क्यों आये हो कहा से आये हो ,आगे है चुपे चुप न होवे यह लए रहा लिव तार ,,,,गुरबानी के अगर दूसरा साधन है की चुप कर के रहने से मन चुप कर सकता है पर गुरबानी ने इससे नहीं माना है ,,,,हमारे पांच ही ज्ञान इंद्री है और क्षेवी सोचने की पावर जनि बुद्धि है जो चेतन है मन बुद्धि से भी जो सोचा जाता है वो भी माया के अंदर ही होता है क्योकि निराकार मन बुद्धि से परे है इस लिए विकार भी शे है पांच नहीं क्योकि बुद्धि भी चेतन जब जड़ दिमाग से जुड़ती है तभी बाहर का ज्ञान लेती है जैसे बेहोश आदमी कोई भी ज्ञान नहीं ले सकता क्योकि चेतना ब्रेन में नहीं है ,पहला दिमाग में चेतना आती है उसके बाद ही दुसरे ज्ञान इन्द्रो में आती है ,,,,अब दुसरे है समाधी लगाकर चुप करके रहने वाले अब मन इस तरह चुप नहीं कर सकता है क्योकि जो समाधी के मद्धम से चुप योगी मानते है ऐसा नहीं हो सकता है ,,,,,क्योकि योगी मानते है की बैठे ने आँखे बंद करके मन चुप हो सकता है पर मन खली छोड़ दिया मन की कल्पना बिना ज्ञान के दूर होना सम्भव नहीं है ,,उसका तरीका भी फेल है ,,,,मन तभी चुप रह सकता है यब को समज रहा हो फिर अपने आप ही इसकी कपलना शांत रहती है इस लिए गुरबानी कहती है की २४ घंटे ही गुरबानी की विचार तुम्हारे मन में चलती रहनी चाइये ,,चुप तो मन करने ही नहीं आया यह कुश ज्ञान लेने आया है कुश प्राप्त करने आया है चुप रहने में क्या परापति है कुश भी नहीं ,,चुप तो मन ने जब मौत आती है आप ही कर जाता है ,क्या फिर ज्ञान हो जाता है नहीं ऐसा नहीं मन तो जनम से पहला चित में ही लीन था सुन में था अगिनता की गहरी नींद में था जैसे नींद में भी मन सुन हो जाता है पर कोई ज्ञान नहीं लेता नींद में ज्ञान लेना सम्भव ही नहीं है ,,अंतरि सुंनं बाहरि सुंनं त्रिभवण सुंन मसुंनं ॥ਪੰਨਾ 943, ਸਤਰ १५ गुरबानी कह रही है जी मन तो सुन ही रहता है मौत के बाद अगर ऐसा सुन ही होना तो जनम ही क्यों हुआ क्योकि जनम से पहले मन सुन ही होता है चेतना जब सरीर के साथ गरब में जुड़ती है तब ही उसकी होंद परगट होती है ,,,तो इसको तो गुरबानी का ज्ञान देना था ज्ञान से ही इसकी कल्पना शांत होनी थी पर योगी तो गलत रास्ता अपना लिया ,,,इस लिए जब तक गुरबानी की खोज करता है मन अपने आप ही चुप रहता है इस की कल्पना ही इसका बोलना है ,,,,तो गुरबानी की शब्द विचार से ही इसका चुप करना सम्भव है ,,न किसी माला फेरने से न किसी समाधी से न किसे जप से न किसी तप से जो संसारी लोग कर रहे है ,,,,,,,गुरबानी का जप तप सिमरन सब कुश अलग है
गुरबानी यह कह रही है की निराकार क्या है यह तुम अपनी बुद्धि से खुद सोच कर उसके बारे में बता दो तो यह सम्भव नहीं है क्यों निराकार बुद्धि की ही पहच से परे है ,निराकार के बारे में सोच कर कुश भी बयान नहीं किया जा सकता है इस लिए गुरबानी ने सोचना बंद करवाया है क्योकि गुरबानी सिर्फ समझने का विशा है ,जब आदमी सोचता है तो मन से अपना ख्याल पैदा होता है और मन तो कल्पना में जी रहा है गुरबानी ने संसार को सपना ही कहा है सपने में कोई सच के बारे में कैसे सोच सकता है ,,,गुरबानी कह रही है की यह समझने का विशा था तुम सोचने लग गए गुरबानी को समझने के लिए निराकार को समझने के लिए खुद की सोच छोड़ कर ज्ञान को समझना है केवल ,,,संसार में तो जीव केवल समझने के लिए ही आया है ,अगर कुश नया बनाना हो तब ही सोचने की जरुरत है जिसने बिजली पैदा की उसने सोचा अब हमे पैदा करने के लिए सोचने के नहीं समझने की जरुरत पड़ती है ,,,,परमेश्वर ने अपना ज्ञान भगतो को दिया जैसे विज्ञानी अपना ज्ञान दुनिया को देते है अब हमे सिर्फ यह ज्ञान विचारणा और समझना होता है ,,,क्योकि समझने में कुश प्राप्ति है ,आत्मा खुद ही सात सरूप है इसने सिर्फ समझना ही है की में कौन है जो कह रहा है में कौन हो वही तो आत्मा है इसमें सोच कर नहीं समज कर ही कुश प्राप्त किया जा सकता है ,गुरबानी की सबसे पहली ही पंक्ति है सोचे सोच न होवी ,,,संसार की जितने भी मते जा संसारी धरम है जिन्हे धरम मान लिया गिया है सब आदमी की अपनी सोच है संसार बुद्धि से बने है उनमे तत ज्ञान नहीं है.....जितने भी सब देवी देते बना लिए सब कल्पना है गुरबानी ने यह सब मनमतो से दूर रहने को कहा है और ज्ञान को समझने के लिए कहा है ,पर आदमी का सभाव ही ऐसा है समझना छोड़ कर खुद पढ़ाने लग जाता है यह तो पुरानी बीमारी है जो सचखंड से ही चली हुई है तभी इससे सचखंड से निकला गया था क्योकि अपनी मर्जी पैदा की थी इसी के इलाज़ के लिए ब्रहम ज्ञान परमेश्वर ने भेजा है ,क्योकि गुरबानी कह रही है पिता का जनम क्या जाने पूत ,,,बेटा पिता के जनम को नहीं जान सकता ,,,परमेश्वर से ही ज्ञान सम्भव है ,इस लिए हुकम से जुड़े बिना यह जाना सम्भव नहीं है सरे ही भगतो को यही धुर की बानी जो बिना कानो के सुनती है उसी से ज्ञान हुआ ,,,जिसने जे सब कुश बनाया है उसने ही सब कुश बताया है की तुम संसार में क्यों आये हो कहा से आये हो ,आगे है चुपे चुप न होवे यह लए रहा लिव तार ,,,,गुरबानी के अगर दूसरा साधन है की चुप कर के रहने से मन चुप कर सकता है पर गुरबानी ने इससे नहीं माना है ,,,,हमारे पांच ही ज्ञान इंद्री है और क्षेवी सोचने की पावर जनि बुद्धि है जो चेतन है मन बुद्धि से भी जो सोचा जाता है वो भी माया के अंदर ही होता है क्योकि निराकार मन बुद्धि से परे है इस लिए विकार भी शे है पांच नहीं क्योकि बुद्धि भी चेतन जब जड़ दिमाग से जुड़ती है तभी बाहर का ज्ञान लेती है जैसे बेहोश आदमी कोई भी ज्ञान नहीं ले सकता क्योकि चेतना ब्रेन में नहीं है ,पहला दिमाग में चेतना आती है उसके बाद ही दुसरे ज्ञान इन्द्रो में आती है ,,,,अब दुसरे है समाधी लगाकर चुप करके रहने वाले अब मन इस तरह चुप नहीं कर सकता है क्योकि जो समाधी के मद्धम से चुप योगी मानते है ऐसा नहीं हो सकता है ,,,,,क्योकि योगी मानते है की बैठे ने आँखे बंद करके मन चुप हो सकता है पर मन खली छोड़ दिया मन की कल्पना बिना ज्ञान के दूर होना सम्भव नहीं है ,,उसका तरीका भी फेल है ,,,,मन तभी चुप रह सकता है यब को समज रहा हो फिर अपने आप ही इसकी कपलना शांत रहती है इस लिए गुरबानी कहती है की २४ घंटे ही गुरबानी की विचार तुम्हारे मन में चलती रहनी चाइये ,,चुप तो मन करने ही नहीं आया यह कुश ज्ञान लेने आया है कुश प्राप्त करने आया है चुप रहने में क्या परापति है कुश भी नहीं ,,चुप तो मन ने जब मौत आती है आप ही कर जाता है ,क्या फिर ज्ञान हो जाता है नहीं ऐसा नहीं मन तो जनम से पहला चित में ही लीन था सुन में था अगिनता की गहरी नींद में था जैसे नींद में भी मन सुन हो जाता है पर कोई ज्ञान नहीं लेता नींद में ज्ञान लेना सम्भव ही नहीं है ,,अंतरि सुंनं बाहरि सुंनं त्रिभवण सुंन मसुंनं ॥ਪੰਨਾ 943, ਸਤਰ १५ गुरबानी कह रही है जी मन तो सुन ही रहता है मौत के बाद अगर ऐसा सुन ही होना तो जनम ही क्यों हुआ क्योकि जनम से पहले मन सुन ही होता है चेतना जब सरीर के साथ गरब में जुड़ती है तब ही उसकी होंद परगट होती है ,,,तो इसको तो गुरबानी का ज्ञान देना था ज्ञान से ही इसकी कल्पना शांत होनी थी पर योगी तो गलत रास्ता अपना लिया ,,,इस लिए जब तक गुरबानी की खोज करता है मन अपने आप ही चुप रहता है इस की कल्पना ही इसका बोलना है ,,,,तो गुरबानी की शब्द विचार से ही इसका चुप करना सम्भव है ,,न किसी माला फेरने से न किसी समाधी से न किसे जप से न किसी तप से जो संसारी लोग कर रहे है ,,,,,,,गुरबानी का जप तप सिमरन सब कुश अलग है
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