ੴ सति नामु करता पुरखु निरभउ निरवैरु अकाल मूरति अजूनी सैभं गुर प्रसादि

ੴ सति नामु करता पुरखु निरभउ निरवैरु अकाल मूरति अजूनी सैभं गुर प्रसादि ,,,सिख धरम का सबसे पहला मूलमंत्र jisme पूर्ण ब्रहम के जनि जिससे इस जगत की उत्पति हुई है इसके गुणों के बारे में बताया गिया है ,,एक जनि जिसे सारी दुनिआ एक मानती है कोई खुद अल्लाह इस्वर परमेश्वर उससे कहता है वे असल में कौन है क्या है यह गुरबानी का विशा है जो एक है वो क्या है एक ही ब्रहम है पूर्ण ब्रहम है जनि की जिससे सब पूर्ण बुध हो ,,,लेकिन जो संसार में है वो एक नहीं वो जीव है और दो हिस्सों में हो गिया है अपनी मर्जी पैदा की है अपनी मर्जी पैदा होने की वजह से ही जन्म मरण में आया हुआ है ,ओंकार क्या है एक है ऊ जो की जूट है पूर्ण जोत को ऊ कहा गया है आगे है ओंकार जनि ऊ का आकार जनि इसकी ईशा शक्ति जनि की शब्द ,,,ओंकार ईशा शक्ति है पूर्ण ब्रहम की जिससे यह संसार पैदा हुआ है और सभी जीव ज्ञान की और आगे बड़ रहे है ,,,,पूर्ण ब्रहम जो संसार से परे है जो संसार में आये हुए अधूरे ब्रहम है जनि जीव है उनको पूरा कर रहा है ताकि सब उसी अवस्था में अ जाये जिसे सचखंड कहा जाता है ,उसकी जनि सचखंड की ईशा शक्ति से ही संसार पैदा हुआ है ,सतनाम का अर्थ है जिसका नाम जनि हुकम नाम का अर्थ हुकम है जो की सच है सच्चा है ,तीनो कालो में रेहने वाला है और जब यह तीन काल नहीं रहते तब भी वह रहता है उसी हुकम के द्वारा ही यह तीन काल होंद में आते है ,करता पुरख आगे यह शब्द है करता का अर्थ है वे सब सृष्टि का करता है ,,,करता तो जीव भी है पर जितनी इसकी अपनी बुद्धि है यह उतना ही कर सकता है ,,क्योकि पूर्ण बुद्धि है परमेश्वर की इस लिए उसकी किया भी पूरा है उसमे कुश भी अधूरा नहीं होता है मगर हमे यह अधूरा लग सकता है क्योकि हमारी तो बुद्धि पूर्ण नहीं है अभी ,,पूर्ण के साथ जनि अपने मूल के साथ ही जुड़ कर बुद्धि पूर्ण हो सकती है ,निरभउ ,,,निरभउ कर अर्थ है किसी भी भय से दूर है उसको किसी का भय नहीं है भय हमें है सरीर के नष्ट होने का पर उसका ऐसा कोई सरीर ही नहीं है ,वो तो पूर्ण जोत सरूप है ,इस लिए कोई भय उसमे नहीं है ,,निर्वैर जनि किसी के साथ उसका वैर विरोध नहीं है विरोध तब होगे जा उसके सामान कोई हो उसका किसे से कोई दुश्मनी नहीं है सब को एक सामान ही देखता है सब के लिए दया है हमेशा ही ऐसा नहीं की उसकी नज़र में कोई मुस्मां सिख हिन्दू है वो इस सब से परे है यह तो मानव की ही बनायीं हुए धारणाये है ...अकाल मूरत जनि की समय की पहच से परे समय की हदबंदी से परे क्योकि समय का प्रभाव सरीर के ऊपर ही पड़ता है समय के अंदर माया है जो माया से जुड़ा है वो पुराना हो जाता है नष्ट हो जाता है पर जोत हमेशा समय के प्रभाव से दूर रहती है जोत पर इसका कोई असर नहीं होता है ,,,पर वे मूर्ती मान है यानि समयः से पार उसकी होंद है मूर्तिमान तो है पर अकाल मूरत है जनि समय से परे है ,,ऐसा नहीं की उसकी कोई होंद ही नहीं जोत की होंद है पर वह पर यह पांच तत्व नहीं है क्योकि यह समय के अंदर बने है ,,,अजूनी ,जनि की वो कभी जनम नहीं लेता जब तक पूर्ण जोत है वे अजूनी रहता है एक हमेशा ही अजूनी रहता है कभी उसको जनम नहीं लेना पड़ता है ,,,जनम किसको लेना पड़ता है आगे लफ्ज़ स्वे भंग जनि पूर्ण ब्रहम को कोई खंडित नहीं कर सकता पर स्वेम को वो दो टुकड़ो में कर लेता है यह गन हमेशा ही ब्रहम के पास रहता है अब भी हमारे अंदर यह दो तरह की कल्पना चलती रहती है ,,जिन्होंने अपने आप कोई दो टुकड़ो में कर लिया जनि मन और चित की अलग ईशा हो गयी उसका ही यहाँ पर जनम हुआ है ,,,वे सब जीव है माया में फसे हुए उन्होंने ने ही यह ज्ञान लेकर एक होना है ,,,,,,,जीव की यात्रा ही एक होना है यह गुरबानी में एक के आठ गुण है जिसको दुनिया एक कहती है,,,,आगे है गुरप्रसाद जनि ज्ञान की किरपा द्वारा ही यह अवस्था प्राप्त हो सकती है ,,गुर का अर्थ ज्ञान है और परसाद का अर्थ किरपा ज्ञान के द्वारा ही उससे जाना जाता है ज्ञान से ही धयान जुड़ता है ,,,,,,,,,,,,,यह गुरबानी में एक की बात है सभी जीव सो संसार में आये हुए है वे सभी दो टुकड़ो में होने की वजह से आये है ,,,,,,और जो सभी जागे हुए पूर्ण ब्रहम है वो सबको जगा रहे है ,,उनकी ईशा शक्ति एक है जिससे परमेश्वर कहा गया है ,,एक इस्वर है एक परमेश्वर है इस्वर जो पूर्ण है जिसका मन चित एक है सचखंड में है ,,जैसे सागर क्या है पानी की बूंदों का नाम सागर है बूँद बूँद मिल कर सागर कहलाती है ऐसे ही पूर्ण ब्रहम मिल कर सरे जनि इस्वर मिल कर उनका सभी की ईशा शक्ति परमेश्वर कहलाती है ,,,,,,,,,इस्वर परमेश्वर हिन्दू मत में एक ही अर्थ रखते है मगर केवल गुरबानी ने इससे डिफाइन किया है

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