हुकमि रजाई चलणा नानक लिखिआ नालि ॥१
॥
सहस सिआणपा लख होहि त इक न चलै नालि
यहाँ पर अगर विचार करके देखि जाये तो पाप पूण की विचारधारा अज्ञानता की ही उपज लगती है |पर आज भी
यही विचार धरा भारत में अनेको रूपों में परचारी जाती रही है पर अगर ज्ञान के तल पर इको गहरायी से देखा जाये तो अपने आप में कई सवाल कड़ी करती है |जब से यह विचारधारा बनी है तब से इस पर बहुत से सवाल भी चले अ रहे है उसमे से सवाल यह भी है |असल में यह विचारधारा हुकम के अधीन चलने वालो ने आगे चल कर घड़ ली वो दोनों बातो को सच मानते है एक तरफ सब कुश परमेश्वर भी करता है वो करम सिद्धांत को भी मानते है वो दोनों में ही विशवास रखते है |क्योकि वक्त के धार्मिक लोगो के पास इस बात का कोई जवाब नहीं था की जब सब कुश परमेश्वर ही करता है तो हमारे किये किसे भी कर्म की सजा हमें नहीं मिलनी चाइये तो जे सवाल भी एक तारक था |मगर इस सवाल का हॉल ढूंढे की बजाये उनको नास्तिक ही कहा गिया गुरबानी के अनुसार इस सवाल का जवाब सब से पहली बार कबीर जी ने खोजा था और दुनिआ के आगे इस का जवाब रखा था ||| ॥
बेद की पुत्री सिम्रिति भाई ॥
॥੧॥
सांकल जेवरी लै है आई
जिस का भाव अर्थ भी यही है की अब तुमसे यह सिम्र्ति शास्त्रो का ज्ञान घड़ लिया है और तुम अब इस पाप पूण की विचारधारा से अलग नहीं हो सकते मुक्ति का रास्ता तुम्हारे लिए अब बंद हो चूका है |गुरु नानक भी कह रहे है की करम सिद्धांत जो छोड़ कर हुकम सिद्धांत से ही मुक्ति सम्भव है और माया से छुटकारा सम्भव है |पर दुनिआ की झूठी मते तो माया की प्राप्ति का ही रास्ता दिखा रही है यहाँ पर सिर्फ दुःख की ही प्राप्ति होनी है |नहीं तो फिर <नानक लिख्या नाल >जो करम तुमने मन में अपना मान कर किये है वही अगले जनम का कारन बनने वाले है |और जनम लेना तो दुःख रूप ही है |क्योकि जब जीव ने अपने अंदर इस पाप पूण की विचार को अंदर मन हुआ है तब तक मुक्ति सम्भव नहीं है सुखमनी साहिब में फरमान है |||||
जब इह जानै मै किछु करता
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