ततु बीचारु कहै जनु साचा ॥ जनमि मरै सो काचो काचा ॥

गउड़ी सुखमनी 149
ततु बीचारु कहै जनु साचा ॥
जनमि मरै सो काचो काचा ॥
भयमुक्त होकर ही तत-विचार की बात कर सकता है अन्यथा तत विचार नहीं कर सकता । जब तक भयमुक्त न हो तब तक सच बोल नहीं सकता । सच्चा जन इसलिए है क्योंकि अविनाशी है । इसलिए ऐसे जन को साचा कहा गया है क्योंकि वह माया से ऊपर उठा हुआ है । इस अवस्था में आकर ही तत-विचार की बात कर सकता है । जो अभी जन्म मरण में ही है वह कच्चा ही है । और उसकी की गयी बातें भी कच्ची ही होती है ।
आवा गवनु मिटै प्रभ सेव ॥
आपु तिआगि सरनि गुरदेव ॥
यह आवागमन प्रभ सेव द्वारा मिटता है, तत विचार द्वारा मिट जाता है । प्रभ सेव, तत विचार ही है । तत विचार ही उसकी खुराक है यही सेवा है यही लंगर है ।
अपनी मर्जी त्याग कर गुरदेव की शरण द्वारा ही आवागमन मिटता है ।
इउ रतन जनम का होइ उधारु ॥
हरि हरि सिमरि प्रान आधारु ॥
इस प्रकार जो यह रत्न के समान कीमती मनुखा जन्म हमें मिला है उसका उद्धार होगा । इस प्रकार इसका पूरा मूल्य हमें हासिल होगा । हरि जो प्राणों का आधार है उसका सिमरन करते रहो, हर पल उसे स्मरण करते रहो ।
****जब तक हरि का सिमरन चलता है तब तक प्राण चलते हैं । यदि हरि का सिमरन रुक जाये तो –
आखा जीवा विसरै मरि जाऊ ॥ अंग 9
सिमरन रुकते ही नींद आ जाती है, स्वप्न शुरू हो जाता है ।
अनिक उपाव न छूटनहारे ॥
सिम्रिति सासत बेद बीचारे ॥
यदि हरि विसर गया फिर किसी भी उपाय द्वारा छुटकारा नहीं होगा । किसी भी उपाय द्वारा उस नींद की अवस्था से जागा नहीं जा सकता । फिर चाहे जितने मर्जी स्मृति शस्त्र वेदों को विचारता रहे ।
हरि की भगति करहु मनु लाइ ॥
मनि बंछत नानक फल पाइ ॥४॥
यदि छुटकारा चाहिए तो मन लगाकर हरि की भक्ति करो । मूल की भक्ति करो । हरि के संत बन जाओ । अपने मूल से जुड़ जाओ, तभी मनवांछित फल की प्राप्ति होगी । जिस इच्छा के लिए जन्म लिया था वह इच्छा पूरी हो जाएगी ।

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