इहु निधानु जपै मनि कोइ ॥ सभ जुग महि ता की गति होइ ॥

गउड़ी सुखमनी 192
इहु निधानु जपै मनि कोइ ॥
सभ जुग महि ता की गति होइ ॥
यह ज्ञान का निधान है अर्थात यह ज्ञान का खजाना है जिसे कोई कोई अपने मन में जपता है कोई कोई ही मन में इस ज्ञान को समझता है । जपै से भाव समझना है । ज्ञान को समझा जाता है ।
इस निधान को जो जप ले, उस बुद्धि की गति उस बुद्धि का विकास हर युग में होती है ।
गुण गोबिंद नाम धुनि बाणी ॥
सिम्रिति सासत्र बेद बखाणी ॥
गुरबानी ही नाम है और यही धुन बाणी है । गुरबाणी ही गोविन्द के गुण हैं । शुद्ध मन के गुण हैं । मन का शुद्ध भाग माया में नहीं है जितना भाग अशुद्ध है वही माया में है । माया में आने का कारण अशुद्ध को शुद्ध करना ही है ।
गोविन्द के गुण हैं उन्ही की विचार द्वारा उसे समझना है, उसी के स्वभाव जैसा अपना स्वभाव बनाना है । इसका बखान स्मृति शास्त्र वेद में भी किया गया है ।
सगल मतांत केवल हरि नाम ॥
गोबिंद भगत कै मनि बिस्राम ॥
दुनिया में जितनी भी मतें है उतनी ही मान्यताएँ, विचारधाराएं है और उतने ही लोगों में झगड़े ज्यादा हैं इनका अंत केवल हरि नाम है । सभी मतों का अंत है और केवल हरि नाम ही अंत में रहने वाला है । सभी झूठी मतों का अंत निश्चित है और जिसका अंत नहीं होगा वह केवल नाम है । नाम अंत विहीन है । आदमी की बनायीं हुई मतें खत्म हो जायेंगी भले ही उसके अनुयायी कितने ही क्यों न हों । गोविन्द के भक्तों के मन में विश्राम नाम ही करता है । नाम ही टिकाव देता है ।
कोटि अप्राध साधसंगि मिटै ॥
संत क्रिपा ते जम ते छुटै ॥
हुक्म के खिलाफ सोचना ही अपराध है, हुक्म का विरोध ही अपराध है । जहाँ जहाँ हुक्म हमें अच्छा नहीं लगा वहां हमने अपराध किया है । कोई दूसरा अपराध हम कर ही नहीं सकते क्योंकि गुरबानी अन्य किसी कर्म को अपराध नहीं मानती क्योंकि गुरबानी कर्म को ही नहीं मानती ।
करोड़ों अपराधों की मैल मन को ही लगी हुई होती है यदि मन को साध लिया जाए तो उसकी यह मैल दूर हो जाती है । कलंकित हुआ मन नाम द्वारा ही धोया जा सकता है । मन को साध कर ही करोड़ों अपराध मिट जाते हैं ।
संत की शरण द्वारा ही यम छूट जाता है । यदि संत अपने साथ मिला ले तो यम से छुटकारा हो सकता है । संत सदैव जाग्रत रहने वाला है, इसका(मन) सो जाना ही इसकी मौत है । संत की कृपा द्वारा इसे नींद नहीं आती । त्रिकुटी छोड़ संत की शरण में चले जाने से इसे नींद नहीं आती । संत की कृपा द्वारा ही इसे संत के घर में प्रवेश मिलता है ।
जा कै मसतकि करम प्रभि पाए ॥
साध सरणि नानक ते आए ॥७॥
नानक कह रहे हैं कि जिस पर प्रभ की कृपा हो जाए, जिस पर परमेश्वर की दया दृष्टि हो जाए तभी यह साध की शरण में आता है । स्वम् सब कुछ जानते हुए भी साध की शरण नहीं जाता । सब कुछ समझ लेता है सुन लेता है लेकिन फिर भी मानता नहीं ।

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