हुकमी होवनि आकार हुकमु न कहिआ जाई ॥

ਹੁਕਮੀ ਹੋਵਨਿ ਆਕਾਰ ਹੁਕਮੁ ਨ ਕਹਿਆ ਜਾਈ ॥
हुकमी होवनि आकार हुकमु न कहिआ जाई ॥
सारी ही साकार रुपी रचना जितनी भी आँखों से हमें दिख रही है यह सब परमेश्वर के हुकम से ही यहाँ पर
परगट होती है |जो भी रचना हमें दिखाई दे रही है वो सब उसके हुकम के द्वारा की पैदा हुए है |अब हमे यह देखना है की हुकम किसको दिया है किसने दिया है कैसे दिया है |जैसे हम संसार में भी देखते है की किसी भी काम को करने के लिए बुधि जा अक्ल की जरूरत होती है ||जब भी हम कोई काम करना चाहते है तो मन बुधि को हुकम करता है बुधि मन के ईशा पर विचार करके सरीर के द्वारा वो काम करवाती है |गुरबानी का फुरमान है ||मन का कहिआ मनसा करे ||
तो इस प्रकार हम य्याही नतीजा निकल सकते है की मन के आदेश देने से ही बुधि सरीर के द्वारा काम करती है सरीर उसको परगट रूप ही देता है पर होती वो मन की ईशा ही है |मन के इस हुकम के पीशे भी उसका ज्ञान काम करता है मन के पास जितना ज्ञान अधिक होगा उतनी ही उस आदमी की बुधि निर्मल होगी और उतना ही वो अपने काम को अचे ढंग से करेगा |||
हुकम जो गुरबानी के अंदर आया है पहले इस के अर्थो को समझना बहुत आवश्यक है |||इस तरीका से सारी ही सृषिट उस परमश्वर के हुकम के द्वारा ही परगट हुए है असल में यह सारी रचना ही उस परमेश्वर के ज्ञान का परगट रूप ही है |
ਹਉ ਆਪਹੁ ਬੋਲਿ ਨ ਜਾਣਦਾ ਮੈ ਕਹਿਆ ਸਭੁ ਹੁਕਮਾਉ ਜੀਉ ॥
हउ आपहु बोलि न जाणदा मै कहिआ सभु हुकमाउ जीउ ॥ पेज ७६३
जा ऐसे कह लिया जाये की यह ह ऊकम का परगट रूप है |और गुरबानी भी उस परमेश्वर के हुकम का ही परगट रूप है |जिससे स्पष्ट हो जाता है की गुरबानी की रचना के पीछे भी उसी ब्रहम ज्ञानी परमेश्वर का ही ज्ञान काम करता है | ਗੁਰਬਾਣੀ ਇਸੁ ਜਗ ਮਹਿ ਚਾਨਣੁ ਕਰਮਿ ਵਸੈ ਮਨਿ ਆਏ ॥੧॥
गुरबाणी इसु जग महि चानणु करमि वसै मनि आए ॥१ पेज ६७
इस लिए गुरबानी ने इस सृषिट का बनना हुकम के द्वारा ही माना है |और इन सब आकारो को परमेश्वर के ज्ञान सरूप का परगट सरूप माना है क्योकि ज्ञान से ही किसी चीज को आकार म िलता है इस लिए यह सृष्टि भी उसी निराकार के ज्ञान का साकार रूप ही है |
ਜੋ ਦੀਸੈ ਸੋ ਤੇਰਾ ਰੂਪੁ ॥
जो दीसै सो तेरा रूपु ॥ पेज 724
यही बात गुरु जे ने हुकमी होवण आकार कह कर समझायी है |पर संसार के अंदर किसी भी तरह का हुकम बोल कर ही परगट किया जाता है इस लिए सतगुर जी ने संसारी हुकम से अलग इस हुकम को बताया है की यह हुकम कोई ऐसा संसारी हुकम नहीं है यह इलाही हुकम है |जिस पर्कार संसार के अंदर बोल कर जा लिख कर कोई हुकम परगट करना पड़ता है इस तरीके से यह रब्बी हुकम इलाही हुकम को बोला जा कहिआ नहीं जा सकता है जा बोला नहीं जाता है |क्योकि पहली बात तो यह है की हाकाम जो हुकम दे रहा है वो सरीरधारी जा देहधारी नहीं है न उसका कोई पांच तत्व का जिस्म है |दूसरी बात संसारी शब्द पैदा करने के लिए कम से कम दो चीजो की जरुरत पड़ती है दो तत्व के टकराव से ही यह आवाज पैदा होती है भाव यह है की संसार के अंदर अव्वाज उस शामे पैदा हुए जिहड़ी की हमे कानो से सुनाई देती है जो की ह्मर्रे कानो के पकड़ में है जैसे हवा आकाश से जा पेड़ पोधो से टकराये तो आवाज़ पैदा होती है |पहले परमेश्वर ने हवा को आकाश से अलग करके आगे सृष्टि की रचना की वो अव्वाज़ पहली आवाज़ थी |
ਬੋਲੈ ਪਵਨਾ ਗਗਨੁ ਗਰਜੈ ॥
बोलै पवना गगनु गरजै ९४३ पेज
पर यहाँ पर केवल निराकार का ही सरूप हो माया के यह पांच तत्व भी वह पर न हो वह पर माया का कोई तत्व नहीं यहाँ वहां पर ऐसी आवाज़ का पैदा होना संम्भव नहीं है जो की कानो की पकड़ में अ सके |इस लिए निराकारी हुकम को धुर की बानी जा आकाश बानी जा इलाही हुकम को न तो इन कानो से सुना जाता है न ही बोल कर उससे न आँखों से देखा जा सकता है |
ਅਖੀ ਬਾਝਹੁ ਵੇਖਣਾ ਵਿਣੁ ਕੰਨਾ ਸੁਨਣਾ ॥
अखी बाझहु वेखणा विणु कंना सुनणा ॥ पेज १३९
अब बात स्पष्ट हो गयी की रब्बी हुकम ऐसा हुकम नहीं है जिस को जैसे बहुत से आदमी बोल कर कोई हुकम कर रहे हो और यह सारी सृष्टि चल रही हो |क्योकि परमेश्वर तो हर हिरदे के अंदर हर जीव के अंदर khud ही विराजमान है |इस तरीके से वो सब के साथ ही जुड़ा हुआ है वह आप ही सब जीवो से प्रेरणा दे के जीवो से काम करवाता रहता है |पर यह भी बात अलग है की उसने खुद ही जीव को संसारी भरम जाल में फसा रखा है और वही भगति की और भी सब की ले जा रहा है |
ਇਕਿ ਭਰਮਿ ਭੁਲਾਏ ਇਕਿ ਭਗਤੀ ਰਾਤੇ ਤੇਰਾ ਖੇਲੁ ਅਪਾਰਾ ॥पेज ६३५
इकि भरमि भुलाए इकि भगती राते तेरा खेलु अपारा ॥
उस का हुकम ही मन को प्रेरणा देकर सीधा मन से काम करवाता रहता है |मन और परमेश्वर के बीच कोई भी दीवार नहीं है जा ऐसा कह लो की परमेश्वर को मन तक अपना हुकम पुहचाने के लिए किसी भी सरीर रुपी इंद्री साधन की जरुरत नहीं पड़ती है |जबकि हमें कोई भी ज्ञान मन तक पुहचाने के लिए सरीर की जरुरत होती है जा सरीर की किसी इंद्री की जरुरत होती है |

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