बीस बिसवे गुर का मनु मानै ॥ सो सेवकु परमेसुर की गति जानै ॥
गउड़ी सुखमनी 140
बीस बिसवे गुर का मनु मानै ॥
सो सेवकु परमेसुर की गति जानै ॥
बीस बिसवे गुर का मनु मानै ॥
सो सेवकु परमेसुर की गति जानै ॥
बीस बिसवे से भाव है ** पूरा का पूरा**
जो सेवक सतिगुरु का कहा पूरा का पूरा माने वही परमेश्वर की गति जान सकता है । अर्थात परमेश्वर की मर्जी जान सकता है । वह परमेश्वर की मर्जी को समझने लग जाता है ।
सो सतिगुरु जिसु रिदै हरि नाउ ॥
अनिक बार गुर कउ बलि जाउ ॥
केवल वही सतिगुरु है जिसके हृदय में हरि-नाम है । सतिगुरु की पहचान भी आवश्यक है क्योंकि ऐसा न हो कि सतिगुरु के भेष में कोई ठग जो और उसे सेवक अपना मन बेच दे ।
जिसके हृदय में हरि नाम है तो ऐसे सतिगुरु पर से अनेकों बार कुर्बान जाना चाहिए ।
सरब निधान जीअ का दाता ॥
आठ पहर पारब्रहम रंगि राता ॥
सतिगुरु के पास सर्व निधान है वह जीवो को दान देने वाला दाता है । सतिगुरु ही है जो आठों पहर पारब्रहम के रंग में रंगा रहता है । कोई ऐसी दवा नहीं जो उसके पास न हो । यहाँ आत्मा की बात है आत्मा को जो कुछ चाहिए वह सतिगुरु के पास है । यहाँ शरीर की बात नहीं की जा रही । शरीर को जो कुछ चाहिए वह सब कुछ परमेश्वर के पास है । हम शरीर वाला दान मांगते हैं जबकि सतिगुरु के पास केवल आत्मा के लिए दान होता है ।
नानक कै घरि केवल नामु ॥ अंग 1136
लोग गुरद्वारे जाकर माया माँगते हैं जो कि वहाँ नहीं है वहाँ नाम है जो कोई मांगता ही नहीं ।
ब्रहम महि जनु जन महि पारब्रहमु ॥
एकहि आपि नही कछु भरमु ॥
ब्रह्म में ही जन है और जन में ही पारब्रहम है । पारब्रहम-हुक्म जन के हृदय में ही प्रकट है । यह वैसा ही है जैसे पौधे में फल है या बीज है और बीज में पौधा है ।
मन ब्रह्म से पैदा होता है । जब १ हो जाता है तब पारब्रहम स्वरूप बनता है । जन ने ही पारब्रहम बनना है । मन सुरति रूप धारण कर शब्द में लीन होता है । ध्यान ने ही शब्द में लीन होना है । पारब्रहम को ही धारण कर लिया । परमेश्वर की इच्छा को ही अपनी इच्छा बना लिया । जब १ होकर शब्द में समा गया, शब्द में लीन हो गया तब भ्रम वाली कोई बात ही नहीं रहती ।
सहस सिआनप लइआ न जाईऐ ॥
नानक ऐसा गुरु बडभागी पाईऐ ॥३॥
यह जो ज्ञान है किसी भी तरह समझ या चतुराई से नहीं लिया जा सकता । जो अपने आप को बहुत बुद्धिमान समझता हो वह यह ज्ञान प्राप्त नहीं कर सकता । नानक कह रहे हैं कि ऐसा ज्ञान तो बड़े भाग्य होने पर ही मिलता है । कोई स्व्म हासिल नहीं कर सकता ।
जो सेवक सतिगुरु का कहा पूरा का पूरा माने वही परमेश्वर की गति जान सकता है । अर्थात परमेश्वर की मर्जी जान सकता है । वह परमेश्वर की मर्जी को समझने लग जाता है ।
सो सतिगुरु जिसु रिदै हरि नाउ ॥
अनिक बार गुर कउ बलि जाउ ॥
केवल वही सतिगुरु है जिसके हृदय में हरि-नाम है । सतिगुरु की पहचान भी आवश्यक है क्योंकि ऐसा न हो कि सतिगुरु के भेष में कोई ठग जो और उसे सेवक अपना मन बेच दे ।
जिसके हृदय में हरि नाम है तो ऐसे सतिगुरु पर से अनेकों बार कुर्बान जाना चाहिए ।
सरब निधान जीअ का दाता ॥
आठ पहर पारब्रहम रंगि राता ॥
सतिगुरु के पास सर्व निधान है वह जीवो को दान देने वाला दाता है । सतिगुरु ही है जो आठों पहर पारब्रहम के रंग में रंगा रहता है । कोई ऐसी दवा नहीं जो उसके पास न हो । यहाँ आत्मा की बात है आत्मा को जो कुछ चाहिए वह सतिगुरु के पास है । यहाँ शरीर की बात नहीं की जा रही । शरीर को जो कुछ चाहिए वह सब कुछ परमेश्वर के पास है । हम शरीर वाला दान मांगते हैं जबकि सतिगुरु के पास केवल आत्मा के लिए दान होता है ।
नानक कै घरि केवल नामु ॥ अंग 1136
लोग गुरद्वारे जाकर माया माँगते हैं जो कि वहाँ नहीं है वहाँ नाम है जो कोई मांगता ही नहीं ।
ब्रहम महि जनु जन महि पारब्रहमु ॥
एकहि आपि नही कछु भरमु ॥
ब्रह्म में ही जन है और जन में ही पारब्रहम है । पारब्रहम-हुक्म जन के हृदय में ही प्रकट है । यह वैसा ही है जैसे पौधे में फल है या बीज है और बीज में पौधा है ।
मन ब्रह्म से पैदा होता है । जब १ हो जाता है तब पारब्रहम स्वरूप बनता है । जन ने ही पारब्रहम बनना है । मन सुरति रूप धारण कर शब्द में लीन होता है । ध्यान ने ही शब्द में लीन होना है । पारब्रहम को ही धारण कर लिया । परमेश्वर की इच्छा को ही अपनी इच्छा बना लिया । जब १ होकर शब्द में समा गया, शब्द में लीन हो गया तब भ्रम वाली कोई बात ही नहीं रहती ।
सहस सिआनप लइआ न जाईऐ ॥
नानक ऐसा गुरु बडभागी पाईऐ ॥३॥
यह जो ज्ञान है किसी भी तरह समझ या चतुराई से नहीं लिया जा सकता । जो अपने आप को बहुत बुद्धिमान समझता हो वह यह ज्ञान प्राप्त नहीं कर सकता । नानक कह रहे हैं कि ऐसा ज्ञान तो बड़े भाग्य होने पर ही मिलता है । कोई स्व्म हासिल नहीं कर सकता ।
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