खेम कुसल सहज आनंद ॥ साधसंगि भजु परमानंद ॥

गउड़ी सुखमनी 187
खेम कुसल सहज आनंद ॥
साधसंगि भजु परमानंद ॥
यदि दुनिया की वाहवाई को त्याग दिया, अपने अहंकार को त्याग दिया, अपने अंदर क्षमा आ गयी तो इसमें कुशल ही कुशल है इसी में सहजता और आनंद है । जिसके अंदर क्षमा है वह परमेश्वर का ही रूप है ।
अपने मन को साध लो क्योंकि मन छोटा नहीं होना चाहता, जब इसे साध लिया जायेगा तभी परमानन्द की अवस्था प्राप्त होगी । केवल सधा हुआ मन ही त्यागी होता है तब यह सब कुछ त्याग देता है ।
नरक निवारि उधारहु जीउ ॥
गुन गोबिंद अम्रित रसु पीउ ॥
जो सोच नरक की तरफ ले जा रही है उसे त्याग दो और जीव का उद्धार करो । माया के रसों का त्याग कर गोविन्द के गुण गाओ और अमृत रस पीओ ।
चिति चितवहु नाराइण एक ॥
एक रूप जा के रंग अनेक ॥
यदि कोई यदि कोई इच्छा करनी भी है तो केवल एक नारायण की इच्छा करो यदि कोई चित्रण करना है तो केवल एक नारायण का ही चित्रण करो । एक नारायण क्या है उसे कैसे ढूँढा जाए उसी की रूप रेखा बनाओ । नारायण एक ही है उसका रूप एक ही है लेकिन रंग अनेक है । नारायण जहाँ अँधेरा-रात्री –स्वप्न-अज्ञानता न हो । जाग्रत अवस्था ही नारायण की अवस्था है । नारायण पूर्ण ब्रह्म ही है । नारायण गुणवाचक नाम है ।
**नारायण और गुरु का अर्थ एक ही है । नारायण जो अँधेरा ना रहने दे। गुरु जो अँधेरे को प्रकाश करदे । **
उसका रूप एक ही है लेकिन उसके रंग अनेक हैं, उसके ज्ञान अनेक हैं । संसारी ज्ञान बहुरंगी है जो निराकारी ज्ञान है वह एक रंग का ही है ।
गोपाल दामोदर दीन दइआल ॥
दुख भंजन पूरन किरपाल ॥
गोपाल - जितनी भी आत्माएँ है उन्हें पालने वाला (गो का अर्थ है आत्मा), सोयी हुई आत्मा को जगाने वाला ।
दामोदर – उदर में स्वास लेने वाला
दीन दइआल – दीन पर दया करने वाला । जो दीन है उस पर दया करता है लेकिन जो अहंकारी है उसके अहंकार पर प्रहार करने वाला भी है ।
वह गोपाल दामोदर दीन दयाल अपने दासों के दुःख दूर करता है और पूरी कृपा करता है ।
सिमरि सिमरि नामु बारं बार ॥
नानक जीअ का इहै अधार ॥२॥
नानक कह रहे हैं कि बार बार उसी के हुक्म का सिमरन करना चाहिए । उसके सिमरन के बीच और कुछ नही आना चाहिए अन्यथा सिमरन टूट जायेगा । इसलिए लगातार सिमरन करना चाहिए । कहीं कोई गलती न हो गयी हो,कहीं दिशा गलत न हो गयी हो इसलिए बार बार सिमरन आवश्यक है । बार बार विचार करना अच्छा है ताकि गलत रस्ते पर न चले जाएँ । अपने आधार को हमेशा परखते रहना चाहिए । क्योंकि कमजोर आधार जीव को डूबा देगा । नाम को ही अपना आधार बनाओ ।

Comments

Popular posts from this blog

सोचै सोचि न होवई जे सोची लख वार ॥ चुपै चुप न होवई जे लाइ रहा लिव तार

अकाल पुरख का सवरूप और उसके गुण

गिआन अंजनु गुरि दीआ अगिआन अंधेर बिनासु ॥ हरि किरपा ते संत भेटिआ नानक मनि परगासु ॥१॥