हलतु पलतु दुइ लेहु सवारि ॥ राम नामु अंतरि उरि धारि ॥
गउड़ी सुखमनी 175
हलतु पलतु दुइ लेहु सवारि ॥
राम नामु अंतरि उरि धारि ॥
हलतु पलतु दुइ लेहु सवारि ॥
राम नामु अंतरि उरि धारि ॥
हलतु – मन (जो स्थिर नहीं है ) पलतु – चित जो स्थिर है ।
मन और चित दोनों को ही संवार लो । क्योंकि दोनों में ही नुक्स है । चित में हौं है उसे भी सवारना है । जैसे जैसे राम-नाम को ह्रदय में धारण करते है वैसे वैसे मन और चित दोनों ही सँवर जाते हैं ।
पूरे गुर की पूरी दीखिआ ॥
जिसु मनि बसै तिसु साचु परीखिआ ॥
पूरे गुर – जिसके पास पूरा ज्ञान हो, जो पूरा ज्ञानवान हो । यहाँ व्यक्ति की बात हो रही है । बताई हुई बात दीक्षा है । जो उसमे ज्ञान है वह शिक्षा है । पूरे गुर की बात पूरी होती है उसमे कोई कमी नहीं होती । जिसके मन में दीक्षा पूरी हो जाए वही सच की परीक्षा दे सकता है । जिसने पूरे गुर की पूरी शिक्षा ग्रहण की हो और मानी हो वही सच की परीक्षा के काबिल होता है । जिसके मन ही नहीं बसी उसकी परीक्षा नहीं ली जाती ।
मनि तनि नामु जपहु लिव लाइ ॥
दूखु दरदु मन ते भउ जाइ ॥
मन तन द्वारा नाम जपो । यहाँ तन से भाव चित है । मन उस तन रुपी चित का ही अंग है । एक मन एक चित होकर नाम जपो पूरा ध्यान लगाना नाम जपो । जो ऐसा करे उसका दुःख दर्द चला जाता है । उसके मन से भय चला जाता है ।
सचु वापारु करहु वापारी ॥
दरगह निबहै खेप तुमारी ॥
सच का व्यापार करो, ताकि तुम्हारी खेप दरगाह में परवान हो जाए । गुरबानी का ज्ञान दरगाह में परवान है । इसे रद्द नहीं किया जा सकता ।
एका टेक रखहु मन माहि ॥
नानक बहुरि न आवहि जाहि ॥६॥
नानक कह रहे हैं कि मन चित का आधार केवल सच को बनाओ । जहाँ एक टेक है वहां सच की ही टेक है जहाँ २ हैं वहां सच और झूठ दोनों हैं । केवल सच का ही सहारा लेना है । माया का सहारा लेने की आवश्यकता नहीं है । झूठ का सहारा नहीं लेना । यदि टेक एक ही होगी केवल गुरबानी पर टेक होगी तब दोबारा आना जाना नहीं होगा । यदि माया की टेक होगी तो आना जाना होगा ।
मन और चित दोनों को ही संवार लो । क्योंकि दोनों में ही नुक्स है । चित में हौं है उसे भी सवारना है । जैसे जैसे राम-नाम को ह्रदय में धारण करते है वैसे वैसे मन और चित दोनों ही सँवर जाते हैं ।
पूरे गुर की पूरी दीखिआ ॥
जिसु मनि बसै तिसु साचु परीखिआ ॥
पूरे गुर – जिसके पास पूरा ज्ञान हो, जो पूरा ज्ञानवान हो । यहाँ व्यक्ति की बात हो रही है । बताई हुई बात दीक्षा है । जो उसमे ज्ञान है वह शिक्षा है । पूरे गुर की बात पूरी होती है उसमे कोई कमी नहीं होती । जिसके मन में दीक्षा पूरी हो जाए वही सच की परीक्षा दे सकता है । जिसने पूरे गुर की पूरी शिक्षा ग्रहण की हो और मानी हो वही सच की परीक्षा के काबिल होता है । जिसके मन ही नहीं बसी उसकी परीक्षा नहीं ली जाती ।
मनि तनि नामु जपहु लिव लाइ ॥
दूखु दरदु मन ते भउ जाइ ॥
मन तन द्वारा नाम जपो । यहाँ तन से भाव चित है । मन उस तन रुपी चित का ही अंग है । एक मन एक चित होकर नाम जपो पूरा ध्यान लगाना नाम जपो । जो ऐसा करे उसका दुःख दर्द चला जाता है । उसके मन से भय चला जाता है ।
सचु वापारु करहु वापारी ॥
दरगह निबहै खेप तुमारी ॥
सच का व्यापार करो, ताकि तुम्हारी खेप दरगाह में परवान हो जाए । गुरबानी का ज्ञान दरगाह में परवान है । इसे रद्द नहीं किया जा सकता ।
एका टेक रखहु मन माहि ॥
नानक बहुरि न आवहि जाहि ॥६॥
नानक कह रहे हैं कि मन चित का आधार केवल सच को बनाओ । जहाँ एक टेक है वहां सच की ही टेक है जहाँ २ हैं वहां सच और झूठ दोनों हैं । केवल सच का ही सहारा लेना है । माया का सहारा लेने की आवश्यकता नहीं है । झूठ का सहारा नहीं लेना । यदि टेक एक ही होगी केवल गुरबानी पर टेक होगी तब दोबारा आना जाना नहीं होगा । यदि माया की टेक होगी तो आना जाना होगा ।
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