सो अंतरि सो बाहरि अनंत ॥ घटि घटि बिआपि रहिआ भगवंत ॥
गउड़ी सुखमनी 179
गउड़ी सुखमनी 179
सो अंतरि सो बाहरि अनंत ॥
घटि घटि बिआपि रहिआ भगवंत ॥
गउड़ी सुखमनी 179
सो अंतरि सो बाहरि अनंत ॥
घटि घटि बिआपि रहिआ भगवंत ॥
यहाँ हुक्म की बात हो रही है । जो अंदर है वही बाहर हो रहा है । जो अंदर
बोल रहा है वही बाहर हो रहा है । जिसने हुक्म को जान लिया उसी को बाहर जो
हो रहा है उसका ज्ञान होता है । उसे जो अपने अंदर हुक्म सुनाई दे रहा है
वही हुक्म रचना में चल रहा है ।
घट – घट में भगवंत व्याप्त है लेकिन एक दुसरे से सम्पर्क नही है ।
धरनि माहि आकास पइआल ॥
सरब लोक पूरन प्रतिपाल ॥
आकास पइआल – मन चित
जो चित और मन है यह दोनों एक साथ ह्रदय में हैं । चित मन एक होना ही पूर्ण ब्रह्म की अवस्था है । जब चित और मन ह्रदय में टिक जाए तो वह पूर्ण प्रतिपाल हो जाता है । सचखंड में सभी ऐसे ही हैं ।
जिसका मन अलग हो और चित अलग वह दुनियावी इंसान होता है ।
बनि तिनि परबति है पारब्रहमु ॥
जैसी आगिआ तैसा करमु ॥
क्या वन क्या पर्वत क्या कोई तिनका जहाँ ब्रह्म है वहां पारब्रह्म (हुक्म ) भी है और ब्रह्म को ज्ञान दे रहा है । ब्रह्म चाहे वन में है चाहे पर्वत पर चाहे पत्थरों में कीड़े के रूप में है सभी जगह ब्रह्म हुक्म की आज्ञा में ही है । आज्ञा अनुसार ही उनका कर्म है । जब सब कुछ आज्ञा अनुसार है तब पुण्य – पाप हो ही नहीं सकता । जो कर्म आज्ञा में किया गया हो उसका पाप पुण्य नहीं हो सकता ।
पउण पाणी बैसंतर माहि ॥
चारि कुंट दह दिसे समाहि ॥
पउण – चित, पाणी – मन
चित पवन रूप है और मन पानी रूप है । जब पवन पानी, जब चित और मन एक होकर अंदर(ह्रदय में) बैठ जाते हैं, तब मन चित में समा जाता है ।
*पानी ही पवन में समाता है पानी का ही रूप बदलता है क्योंकि पानी पैदा ही हवा से हुआ है । *
पवन पानी बैसंतर में सभी जगह हुक्म व्याप्त है । किसी की अपनी कोई मर्जी नहीं है सभी हुक्मानुसार ही चलते हैं ।
तिस ते भिंन नही को ठाउ ॥
गुर प्रसादि नानक सुखु पाउ ॥२॥
हुक्म के बिना कोई जगह नही है । ऐसी कोई जगह नहीं जहाँ हुक्म न हो । कोई ह्रदय नही है जहाँ ब्रह्म न हो । नानक कह रहे हैं कि ज्ञान की कृपा द्वारा सुख प्राप्त करो क्योंकि ज्ञान में ही सुख है । अज्ञानता में सुख नहीं है ।
घट – घट में भगवंत व्याप्त है लेकिन एक दुसरे से सम्पर्क नही है ।
धरनि माहि आकास पइआल ॥
सरब लोक पूरन प्रतिपाल ॥
आकास पइआल – मन चित
जो चित और मन है यह दोनों एक साथ ह्रदय में हैं । चित मन एक होना ही पूर्ण ब्रह्म की अवस्था है । जब चित और मन ह्रदय में टिक जाए तो वह पूर्ण प्रतिपाल हो जाता है । सचखंड में सभी ऐसे ही हैं ।
जिसका मन अलग हो और चित अलग वह दुनियावी इंसान होता है ।
बनि तिनि परबति है पारब्रहमु ॥
जैसी आगिआ तैसा करमु ॥
क्या वन क्या पर्वत क्या कोई तिनका जहाँ ब्रह्म है वहां पारब्रह्म (हुक्म ) भी है और ब्रह्म को ज्ञान दे रहा है । ब्रह्म चाहे वन में है चाहे पर्वत पर चाहे पत्थरों में कीड़े के रूप में है सभी जगह ब्रह्म हुक्म की आज्ञा में ही है । आज्ञा अनुसार ही उनका कर्म है । जब सब कुछ आज्ञा अनुसार है तब पुण्य – पाप हो ही नहीं सकता । जो कर्म आज्ञा में किया गया हो उसका पाप पुण्य नहीं हो सकता ।
पउण पाणी बैसंतर माहि ॥
चारि कुंट दह दिसे समाहि ॥
पउण – चित, पाणी – मन
चित पवन रूप है और मन पानी रूप है । जब पवन पानी, जब चित और मन एक होकर अंदर(ह्रदय में) बैठ जाते हैं, तब मन चित में समा जाता है ।
*पानी ही पवन में समाता है पानी का ही रूप बदलता है क्योंकि पानी पैदा ही हवा से हुआ है । *
पवन पानी बैसंतर में सभी जगह हुक्म व्याप्त है । किसी की अपनी कोई मर्जी नहीं है सभी हुक्मानुसार ही चलते हैं ।
तिस ते भिंन नही को ठाउ ॥
गुर प्रसादि नानक सुखु पाउ ॥२॥
हुक्म के बिना कोई जगह नही है । ऐसी कोई जगह नहीं जहाँ हुक्म न हो । कोई ह्रदय नही है जहाँ ब्रह्म न हो । नानक कह रहे हैं कि ज्ञान की कृपा द्वारा सुख प्राप्त करो क्योंकि ज्ञान में ही सुख है । अज्ञानता में सुख नहीं है ।
यहाँ हुक्म की बात हो रही है । जो अंदर है वही बाहर हो रहा है । जो अंदर
बोल रहा है वही बाहर हो रहा है । जिसने हुक्म को जान लिया उसी को बाहर जो
हो रहा है उसका ज्ञान होता है । उसे जो अपने अंदर हुक्म सुनाई दे रहा है
वही हुक्म रचना में चल रहा है ।
घट – घट में भगवंत व्याप्त है लेकिन एक दुसरे से सम्पर्क नही है ।
धरनि माहि आकास पइआल ॥
सरब लोक पूरन प्रतिपाल ॥
आकास पइआल – मन चित
जो चित और मन है यह दोनों एक साथ ह्रदय में हैं । चित मन एक होना ही पूर्ण ब्रह्म की अवस्था है । जब चित और मन ह्रदय में टिक जाए तो वह पूर्ण प्रतिपाल हो जाता है । सचखंड में सभी ऐसे ही हैं ।
जिसका मन अलग हो और चित अलग वह दुनियावी इंसान होता है ।
बनि तिनि परबति है पारब्रहमु ॥
जैसी आगिआ तैसा करमु ॥
क्या वन क्या पर्वत क्या कोई तिनका जहाँ ब्रह्म है वहां पारब्रह्म (हुक्म ) भी है और ब्रह्म को ज्ञान दे रहा है । ब्रह्म चाहे वन में है चाहे पर्वत पर चाहे पत्थरों में कीड़े के रूप में है सभी जगह ब्रह्म हुक्म की आज्ञा में ही है । आज्ञा अनुसार ही उनका कर्म है । जब सब कुछ आज्ञा अनुसार है तब पुण्य – पाप हो ही नहीं सकता । जो कर्म आज्ञा में किया गया हो उसका पाप पुण्य नहीं हो सकता ।
पउण पाणी बैसंतर माहि ॥
चारि कुंट दह दिसे समाहि ॥
पउण – चित, पाणी – मन
चित पवन रूप है और मन पानी रूप है । जब पवन पानी, जब चित और मन एक होकर अंदर(ह्रदय में) बैठ जाते हैं, तब मन चित में समा जाता है ।
*पानी ही पवन में समाता है पानी का ही रूप बदलता है क्योंकि पानी पैदा ही हवा से हुआ है । *
पवन पानी बैसंतर में सभी जगह हुक्म व्याप्त है । किसी की अपनी कोई मर्जी नहीं है सभी हुक्मानुसार ही चलते हैं ।
तिस ते भिंन नही को ठाउ ॥
गुर प्रसादि नानक सुखु पाउ ॥२॥
हुक्म के बिना कोई जगह नही है । ऐसी कोई जगह नहीं जहाँ हुक्म न हो । कोई ह्रदय नही है जहाँ ब्रह्म न हो । नानक कह रहे हैं कि ज्ञान की कृपा द्वारा सुख प्राप्त करो क्योंकि ज्ञान में ही सुख है । अज्ञानता में सुख नहीं है ।
घट – घट में भगवंत व्याप्त है लेकिन एक दुसरे से सम्पर्क नही है ।
धरनि माहि आकास पइआल ॥
सरब लोक पूरन प्रतिपाल ॥
आकास पइआल – मन चित
जो चित और मन है यह दोनों एक साथ ह्रदय में हैं । चित मन एक होना ही पूर्ण ब्रह्म की अवस्था है । जब चित और मन ह्रदय में टिक जाए तो वह पूर्ण प्रतिपाल हो जाता है । सचखंड में सभी ऐसे ही हैं ।
जिसका मन अलग हो और चित अलग वह दुनियावी इंसान होता है ।
बनि तिनि परबति है पारब्रहमु ॥
जैसी आगिआ तैसा करमु ॥
क्या वन क्या पर्वत क्या कोई तिनका जहाँ ब्रह्म है वहां पारब्रह्म (हुक्म ) भी है और ब्रह्म को ज्ञान दे रहा है । ब्रह्म चाहे वन में है चाहे पर्वत पर चाहे पत्थरों में कीड़े के रूप में है सभी जगह ब्रह्म हुक्म की आज्ञा में ही है । आज्ञा अनुसार ही उनका कर्म है । जब सब कुछ आज्ञा अनुसार है तब पुण्य – पाप हो ही नहीं सकता । जो कर्म आज्ञा में किया गया हो उसका पाप पुण्य नहीं हो सकता ।
पउण पाणी बैसंतर माहि ॥
चारि कुंट दह दिसे समाहि ॥
पउण – चित, पाणी – मन
चित पवन रूप है और मन पानी रूप है । जब पवन पानी, जब चित और मन एक होकर अंदर(ह्रदय में) बैठ जाते हैं, तब मन चित में समा जाता है ।
*पानी ही पवन में समाता है पानी का ही रूप बदलता है क्योंकि पानी पैदा ही हवा से हुआ है । *
पवन पानी बैसंतर में सभी जगह हुक्म व्याप्त है । किसी की अपनी कोई मर्जी नहीं है सभी हुक्मानुसार ही चलते हैं ।
तिस ते भिंन नही को ठाउ ॥
गुर प्रसादि नानक सुखु पाउ ॥२॥
हुक्म के बिना कोई जगह नही है । ऐसी कोई जगह नहीं जहाँ हुक्म न हो । कोई ह्रदय नही है जहाँ ब्रह्म न हो । नानक कह रहे हैं कि ज्ञान की कृपा द्वारा सुख प्राप्त करो क्योंकि ज्ञान में ही सुख है । अज्ञानता में सुख नहीं है ।
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