संगि न चालसि तेरै धना ॥ तूं किआ लपटावहि मूरख मना ॥

गउड़ी सुखमनी 150
संगि न चालसि तेरै धना ॥
तूं किआ लपटावहि मूरख मना ॥
यह जो संसारी धन है यह तेरे साथ जाने वाला नहीं है । आदमी जानता भी है लेकिन फिर भी इसी के पीछे भागता है । मन को उपदेश है कि यह धन तेरे साथ जाने वाला नहीं है तो तू क्यों इससे लिपटा हुआ है ।
सुत मीत कुट्मब अरु बनिता ॥
इन ते कहहु तुम कवन सनाथा ॥
पुत्र, बच्चे, मित्र, परिवार, रिश्तेदार और पत्नी इनमे से कौन है जो तेरा साथ देने वाला है । कौन है जो तेरे साथ चलने वाला है ।
इनमे से कोई भी तेरे साथ चलने वाला नहीं है ।
राज रंग माइआ बिसथार ॥
इन ते कहहु कवन छुटकार ॥
राज, रंग माया के विस्तार से कहो किसका छुटकारा हुआ है । इनसे किसी का छुटकारा नहीं होता ।
असु हसती रथ असवारी ॥
झूठा ड्मफु झूठु पासारी ॥
अश्व, हाथी, रथ इत्यादि सवारियाँ यह सब झूठ का ही पसारा है । इनके साथ तेरा छुटकारा नहीं है ।
जिनि दीए तिसु बुझै न बिगाना ॥
नामु बिसारि नानक पछुताना ॥५॥
नानक कह रहे हैं कि जिसने तुझे यह सब दिये तू उसी को भूल गया, उसी से बेगाना हो गया । जो तेरे कुछ नहीं है उनका बाप, भाई, मित्र, रिश्तेदार बन गया और जो तेरा सब कुछ है उसी को बेगाना बना दिया । स्व्म किसी का बन गया, दूसरों को अपना बना लिया लेकिन जिसने यह सब दिये उसी को पराया कर दिया ।
दाति पिआरी विसरिआ दातारा ॥ अंग 676
नानक कह रहे हैं कि जिस किसी ने भी नाम को, सच को भुलाया है वह पछताया है । यहाँ नानक संकेत दे रहे हैं कि तुमने पछताना है या नहीं पछताना, यह अब तुम्हारे हाथ में है ।

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