बिसमन बिसम भए बिसमाद ॥ जिनि बूझिआ तिसु आइआ स्वाद ॥

गउड़ी सुखमनी 129

बिसमन बिसम भए बिसमाद ॥
जिनि बूझिआ तिसु आइआ स्वाद ॥
परमेश्वर कर्ता है लेकिन प्रकट नहीं है । और हमें जो करता हुआ दिखाई देता है वह कर्ता है नहीं । जिसे हम देख सकते हैं वह परमेश्वर के करवाने पर ही कुछ करता है । जो यह समझ लेता है वह विस्माद में चला जाता है । उसे फिर केवल सच दिखाई देने लग जाता है । जब मन चकित हो जाता है जब यह ज्ञानवान हो जाता है तब यह विस्माद में चला जाता है । जब तक जीव यह मानता है कि वह कुछ कर सकता है तब तक यह अहंकारी होता है ।
जिसने यह सच जान लिया की कर्ता कौन है, कौन है जिसकी मर्जी से सब हो रहा है, जो जान ले कि जो कर रहा है वह कर्ता नहीं है और जो कर्ता है वह दिखाई देने वाला नहीं है जो यह समझ लेता है उसे हुक्म का स्वाद आ जाता है वही नाम का स्वाद चखता है ।

प्रभ कै रंगि राचि जन रहे ॥
गुर कै बचनि पदारथ लहे ॥
यदि जन प्रभ के रंग में रचा रहे, सच के रंग से रंगा रहे तो गुरबानी द्वारा चारों पदार्थ प्राप्त हो जाते हैं । गुर की शिक्षा द्वारा सभी पदार्थों की प्राप्ति हो जाती है ।

ओइ दाते दुख काटनहार ॥
जा कै संगि तरै संसार ॥
वह दाता सारी दुनिया के दुख काट रहा है । दुख देकर भी दुख काट रहा है । जिन्हे हम दुख मानते हैं असल में वे दुख नहीं है । जिन्हे हम सुख मानते हैं वे सुख है नहीं । यहीं से भक्तों और सांसारियों का मेल नहीं बैठता । गुरबानी अनुसार दुख दारू है और सुख रोग है लेकिन हम इसके विपरीत मानते है । संसारी सुखों को परलोक में रोग माना जाता है । जितनी आज सुख-सुविधाएं ज्यादा है उतने ही रोग अधिक है ।
जिसकी संगति से संसार तर रहा है वह दाता दुखों को काटने वाला है । सभी के अंदर अंतरात्मा भी दुख को काटने वाली है लेकिन अंतरात्मा की कोई सुनता ही नहीं है । अंतरात्मा के सुनकर बहुत से दुख कट सकते हैं ।
जन का सेवकु सो वडभागी ॥
जन कै संगि एक लिव लागी ॥
जो सारी जनता का सेवक है जो हर किसी को, हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई को एक आँख से देखता है वह बड़ा भाग्यशाली है । सभी को अंदर की आँखों से देखने वाले को सभी एक ही दिखाई देते हैं लेकिन बाहरी आँखों से देखने वाले को सभी अलग ही दिखाई देते हैं । केश, कृपाण, धोती, टीका, माला, वेषभूषा सब बाहरी आँखों से ही दिखाई देता है । अंदर की आँखें केवल सोच देखते हैं कि किसकी सोच कैसी है । बाहरी भेष नहीं बल्कि विचारधारा में ईमानदारी चाहिए, नियत साफ होनी चाहिए । जिनकी नियत में खोट होती है वही बाहरी पहनावे, खानपान में दूसरों को उलझा कर रखते हैं ।
जन का सेवक बड़ा भाग्यवान होता है । जन की संगति द्वारा एक चित एक मन होकर लिव लग जाती है ।

गुन गोबिद कीरतनु जनु गावै ॥
गुर प्रसादि नानक फलु पावै ॥८॥१६॥
जन गोबिन्द वाले गुणों केवल गायन ही नहीं धारण भी करता है । जन गोबिन्द के गुणों की किर्ति भी करता है । नानक कह रहे हैं कि ज्ञान की कृपा द्वारा फल की प्राप्ति होती है । गुण धारण कर जो ज्ञान प्राप्त होता है वही गुर प्रसादि है ।
ओंकार सति नामु करता पुरखु निरभउ निरवैरु अकाल मूरति अजूनी सैहभं
यह आठ गुण विचार कर ही गुर प्रसादि रूपी फल प्राप्त होता है ।

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