जब होवत प्रभ केवल धनी ॥ तब बंध मुकति कहु किस कउ गनी ॥

गउड़ी सुखमनी 163
जब होवत प्रभ केवल धनी ॥
तब बंध मुकति कहु किस कउ गनी ॥
जब तक यह जीव पूर्ण ज्ञानवान होता है, ब्रह्मज्ञानी होता है, सारा ज्ञान इसके पास होता है, जब इसके पास नाम का खजाना होता है नाम-धन होता है तब यह बंधन में कैसे हो सकता है । मुक्ति भी नाम से नीचे है । पहले बंधन है, फिर मुक्ति है उसके बाद नाम आता है । जिसके पास नाम धन होता है वह इन सब से ऊपर होता है ।
जब एकहि हरि अगम अपार ॥
तब नरक सुरग कहु कउन अउतार ॥
जब हरि आप १ है और कोई है ही नहीं । सभी में एकता है । यहाँ रचना से पहले की बात है । सारे ही साबत सूरत है सभी एक ही है, तब यह अगम अपार है जो बुद्धि से परे है ।
तब न कोई नरक है ना स्वर्ग है और न कोई देह या अवतार है ।
स्मृति शास्त्रों में अपनी मर्जी से लिखा हुआ है कि विष्णु ने सृष्टि पैदा की । लेकिन वेद ऐसा नहीं मानता । वेद स्वर्ग-नरक को नहीं मानता ।
जब निरगुन प्रभ सहज सुभाइ ॥
तब सिव सकति कहहु कितु ठाइ ॥
जब निरगुन प्रभ जो सुन – समाधि में था जब वह सहज अवस्था में आ जाता है तब वह पारब्रह्म हो जाता है और सृष्टि की रचना के लिए तैयार हो जाता है । जब तक कोई सोया है तब तक सोया है जब जागता है तब कुछ करता है या करने की सोचता है तब शिव और पार्वती कहाँ थे ? वे तो पैदा भी नहीं हुए थे । स्वर्ग नरक तो थे ही नहीं रचना थी ही नहीं तब शिव-पार्वती कहाँ थे ? वह कौनसी जगह थी जहाँ वे थे ?
जब आपहि आपि अपनी जोति धरै ॥
तब कवन निडरु कवन कत डरै ॥
जब अपनी ज्योत अपने अंदर ही है जब तक अंतर्मुखी है, कुछ भी सोचता नहीं है । यहाँ उस अवस्था की बात है जब यह जाग्रत भी है लेकिन कुछ सोच भी नहीं रहा । कोई भी इच्छा नहीं है । यही आराधना की अवस्था है । नाम पाने की भी कोई कोशिश नहीं है कोई सोच भी नहीं है क्योंकि कोशिश से नाम पाया नहीं जा सकता । इस अवस्था में कौन निडर है और कौन डरता है ? यहाँ तो १ ही है । अकेले को किसका डर होता है । दो हों तब दर हो सकता है । जब है ही १ तो डर कैसा । डर तो मुक्ति मिलते ही खत्म हो जाता है । यह तो मुक्ति से आगे की अवस्था है ।
आपन चलित आपि करनैहार ॥
नानक ठाकुर अगम अपार ॥२॥
यह जितने भी चलित करता है आप ही करता है । जो कुछ करता है मन आप ही करता है । मन स्वम् ही डर पैदा करता है । अपनी ज्योत जब अपने अंदर नहीं टिकाता तभी समस्या होती है । जब अपने मन को खुला छोड़ देता है तब समस्या पैदा होती है । यदि अपना मन अपने काबू में हो तब कोई डर नहीं जिसका मन काबू में नहीं होगा तब डर पैदा होगा, मन बेकाबू होगा तभी वही गलत काम करेगा और डर पैदा होगा ।
नानक कह रहे हैं कि जो ठाकुर है वह अगम अपार है । उसकी बराबरी यह नहीं कर सकता । उसे जीत नहीं सकता । लेकिन अपना नुक्सान जरुर कर लेता है । परमेश्वर को इससे कोई खतरा नहीं है । परमेश्वर को केवल इनमे आये बिगाड़ की चिंता होती है ।

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