उतम सलोक साध के बचन ॥ अमुलीक लाल एहि रतन ॥

गउड़ी सुखमनी 188
उतम सलोक साध के बचन ॥
अमुलीक लाल एहि रतन ॥
जब आदमी को समझ आ जाती है तब जो कुछ वह बोलता है वह ऊँची अवस्था की बात होती है, जो वह बोलता है वे उत्तम सलोक होते हैं, उसका उपदेश उच्चतम होता है । साध की आत्मिक अवस्था की बात है ना कि उसके बाहरी भेष की या उम्र की । साध के वचन उच्चतम होते हैं । वह स्वम् मुक्त होता है तथा दूसरों को मुक्ति के बारे में बताता है इसलिए उसके वचन उच्चतम होते हैं । जिसकी शिक्षा द्वारा मुक्ति प्राप्त हो जाए, उससे उच्चतम और कुछ हो ही नहीं सकता । उपदेश में जो गुण होते हैं वे अमुल्य होते हैं उनका कोई मोल नहीं होता । साध के वचन को सुनकर ऐसे गुण पैदा होते हैं जिनका कोई मोल नहीं होता । साध द्वारा दिए उपदेश या मत में अमुल्य लाल रत्न जड़े होते हैं । गुरबानी साध के वचन ही हैं ।
सुनत कमावत होत उधार ॥
आपि तरै लोकह निसतार ॥
गुरबानी केवल सुनकर उद्धार नहीं हो सकता । गुरबानी सुनकर समझकर मानकार ही उद्धार हो सकता है । गुरबानी अनुसार जीवन जीन ही कमायी है । वाहेगुरु वाहेगुरु का रटन करना कमायी नहीं है । गुरबानी की शिक्षा पर अमल करना ही कमायी है ।
जो सुनकर कमाई करता है उसी का उद्धार होता है । जिसने सुनकर कमा लिया वही साध है । साध स्वम् तर जाता है और दूसरों को जो सच और झूठ की दुविधा में फँसे हुए होते हैं उन्हें सच और झूठ स्पष्ट कर देता है । जो जप तप भक्ति सिमरन दरगाह में परवान है उसके बारे में दूसरों को बताता है । साध स्वम् मुक्त होता है दूसरों को मुक्ति का राह दिखाता है ।
सफल जीवनु सफलु ता का संगु ॥
जा कै मनि लागा हरि रंगु ॥
जिसका अपना जीव सफल हो गया, जिसने अपना जीवन सफल कर लिया उसकी संगति करना ही सफल है । जो स्वम् डूब गया उसके संगति द्वारा कोई क्या हासिल कर लेगा । जो नकली संत स्वम् डूबे हुए हैं वे दूसरों का क्या भला करेंगे । स्वम् को संत महापुरुष कहलवाने वाला साकत ही है । साकत दूसरों को अपने साथ लेकर डूबता है ।
जिसे जीवन में सफलता मिल गयी हो, जिसने मुक्ति पा ली हो उसी की संगति करने में भलाई है । यदि कोई ऐसा न मिले तो गुरबानी की खोज द्वारा विचार द्वारा भी बचा जा सकता है ।
जिसके मन पर हरि - नाम का रंग चढ़ा हो उसी का जीवन सफल है, उसी की संगति सफल है । जिस पर स्वम् कोई असर नहीं हुआ उसकी संगति द्वारा किसी कोई कोई लाभ नहीं हो सकता ।
जै जै सबदु अनाहदु वाजै ॥
सुनि सुनि अनद करे प्रभु गाजै ॥
जिस पर गुरबानी का रंग चढ़ जाता है उसके अंदर धुर की बाणी प्रगट होती है । अनाहद नाद उसी के अंदर पैदा होता है ।
जब अंदर शब्द-गुरु प्रगट होता है जब अंदर धुर की बाणी प्रगट होती है तो उसे सुनकर आनंद पैदा होता है और प्रभ स्वम् गरजता है सच बोलता है । बोलने वाला गुरदेव ही प्रभ है । फिर सच अकेला ही दुनिया के पाखण्ड के खिलाफ बोलता है । गुरमुख ही ऐसा कर सकता है मनमुख ऐसा नहीं कर सकता ।
प्रगटे गुपाल महांत कै माथे ॥
नानक उधरे तिन कै साथे ॥३॥
महांत :- महा-अंत ( राम गर्भ का अंत ) , सबसे बड़ा अंत । जन्म मरण से छुटकारा । इसके बाद कोई देहि नहीं मिलती ।
देहांत :- केवल (बाहरी) देह का अंत ( जन्म मरण से छुटकारा नहीं हुआ केवल देह(बाहरी शरीर) का अंत हुआ है और जीव अभी भी राम गर्भ में ही है)
जिसे जीवन मुक्त आवस्था हासिल हो जाए, जिसका महा अंत हो जाए उसके ह्रदय में शब्द-गुरु प्रगट हो जाता है । नानक कह रहे हैं कि जिसका महा-अन्त हो जाए, जिसने दोबारा जन्म नहीं लेना उसके साथ जुड़कर उद्धार हो सकता है ।

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