सहस सिआणपा लख होहि त इक न चलै नालि ॥

जपजी साहिब
ਸਹਸ ਸਿਆਣਪਾ ਲਖ ਹੋਹਿ ਤ ਇਕ ਨ ਚਲੈ ਨਾਲਿ ॥
सहस सिआणपा लख होहि त इक न चलै नालि ॥

ਏ ਮਨ ਚੰਚਲਾ ਚਤੁਰਾਈ ਕਿਨੈ ਨ ਪਾਇਆ ॥
ए मन चंचला चतुराई किनै न पाइआ ॥

इस का भाव अर्थ भी यही है की दुनिआ में जितनी भी पर्कार की बुद्धि है वे बुद्धि नाशवंत है हमेशा
रहने वाली नहीं है क्योकि यह ज्ञान तो संसारी ज्ञान होता है चाहे जितना मर्जी इकठा कर लो यह सरीर के खत्म होने से साथ ही जड़ बुद्धि भी खत्म हो जाती है |जनम और मृत्यु की परकिरिा भी उतनी देर तक ही चलती है जब तक यह बुद्धि नाशवंत है |जब यह बुद्धि ब्रहम ज्ञान प्राप्त कर ले जो की अमर ज्ञान है तो यह बुद्धि भी अमर हो जाती है |सुखमनी साहिब में फरमान है ,,,,

ਅੰਤਰਿ ਹੋਇ ਗਿਆਨ ਪਰਗਾਸੁ ॥
अंतरि होइ गिआन परगासु ॥
ਉਸੁ ਅਸਥਾਨ ਕਾ ਨਹੀ ਬਿਨਾਸੁ ॥
उसु असथान का नही बिनासु

अब यह बुद्धि पहले वाली बुद्धि नहीं रही है अब तो यह खुद परमेश्वर की ही बुद्धि का रूप हो गयी है अब यह बुद्धि सदाचारी बुद्धि है ,दूसरी तरफ गुरबानी कह रही है की चाहे कोई दुनिआ का कितना भी ज्ञान कितनी भी बुद्धि प्राप्त कर ले लाखो सिआणप रुपी ज्ञान प्राप्त कर ले एक भी ज्ञान उसके साथ जाने वाला नहीं है |क्योकि सरीर को छोड़ते ही सारा ज्ञान नष्ट हो जाने वाला है |मरते समय जिस बुद्धि में भय और अन्धकार छा जाये वह बुद्धि नष्ट होया जा करती है |क्योकि दुनिआ के सभी ज्ञान भी मौत के भय को नष्ट नहीं कर सकते इस लिए बुद्धि अन्धकार में मरते समय डूब जाती है और इसी बुद्धि को जगाने के लिए इसको अगला जनम लेना पड़ता है |जीव का सांसारिक मोह ही ऐसा है जीव कदाचित भी इस संसार को छोड़ना नहीं चाहता है यही मोह रुपी जंजीर जा अज्ञानता है यहाँ बार बार सरीर धारण करवाती है |यह तो गुरबानी का सतगुर रुपी उपदेश ही जीव को ब्रहम ज्ञान का खजाना बक्श करके इसके यहाँ से निकलने की कोशिश करा रहा है ता की यह अपने निज सरूप में अभेद हो जाये तभी इसका मौत का भय हमेशा के लिए दूर हो जायेगा और निर्भय पद की उसको प्राप्ति हो जाएगी | असल में तो जीव कभी मरा ही नहीं मरते समय मरने के भय से पैदा हुई अज्ञानता की वजह से ही जीव अंध्कार में डूब जाता रहा और अगला सरीर धारण करने से डरता रहा पर जब पूर्ण ज्ञान हो गिया उसको तभ इस को पता चला की यहाँ कुश भी पैदा नहीं होता न कुश मरता है जैसे की गुरबानी का फरमान है ||
ਨਹ ਕਿਛੁ ਜਨਮੈ ਨਹ ਕਿਛੁ ਮਰੈ ॥
नह किछु जनमै नह किछु मरै पेज २८१

यह तो एक भरम ही था तभी इतने जनम इसी भरम अज्ञानता के कारन हो जीव को लेने पड़े अब इस का भरम दूर हो गिया और मरने का भय दूर हो गिया साथ ही अगला जनम भी अब बंद हो गिया |

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