खेम सांति रिधि नव निधि ॥ बुधि गिआनु सरब तह सिधि ॥
गउड़ी सुखमनी 191
खेम सांति रिधि नव निधि ॥
बुधि गिआनु सरब तह सिधि ॥
खेम सांति रिधि नव निधि ॥
बुधि गिआनु सरब तह सिधि ॥
खेम – त्याग (क्षमा)
रिधि- माया का ज्ञान
हृदय में जब तक माया अग्नि जल रही हो तब तक शांति नहीं हो सकती । यदि किसी बर्तन में अग्नि हो यदि उसे बर्तन से निकाल दिया जाए तो शांति आ जाती है । अग्नि निकाल देने के बाद भी जो तपिश बर्तन में होती है वह रहती ही है लेकिन वह लगातार गर्म होना बंद हो जाता है । उस ह्रदय रुपी बर्तन से माया का ज्ञान निकाल कर नाम रुपी नया खजाना डालना है । पहले ह्रदय को साफ़ करना आवश्यक है । अन्यथा यदि नाम की बूँद पद भी गयी तो वही जलती हुई भट्ठी में पानी की बूँद गिरने के समान ही होगी । लोगों का ह्रदय उसी भट्ठी के समान जल रहा है वहां गुरबानी की सुनी एक आधी बात का कोई असर ही नहीं होता । जब ह्रदय रुपी धरती शांत होगी वहां जब नाम रुपी जल बरसेगा तभी वहां कुछ पैदा होगा ।
जहाँ खेम शांति रिधि नव निधि होती है वहां ऐसा बुद्ध और ज्ञान होता है जिसमे सारी दुनिया की ही समझ होती है तीनों लोको का ज्ञान होता है । तीनों लोको की समझ होती है ।
बिदिआ तपु जोगु प्रभ धिआनु ॥
गिआनु स्रेसट ऊतम इसनानु ॥
यदि विद्या, तप, जोग सही हो तभी जाकर प्रभ से ध्यान जुड़ता है । तब जाकर वहां से श्रेष्ठ ज्ञान प्राप्त होता है । उसी श्रेष्ठ ज्ञान में मन को धोया जाए तभी उत्तम स्नान है । यही अमृत सरोवर का स्नान है ।
पानी में डुबकी लगाना स्नान नहीं है । शरीर को धोना स्नान नहीं है, यह अविद्या है । जिन्होंने बाहर अमृतसर में सरोवर बना लिया उन्होंने केवल दूसरों से फरेब ही किया है । उत्तम स्नान को छुपा अमृतसर सरोवर के स्नान को ही उत्तम स्नान कह दिया ।
चारि पदारथ कमल प्रगास ॥
सभ कै मधि सगल ते उदास ॥
यहाँ आकर ही चार पदार्थ मिलते हैं । पहले चार पदार्थ मांगे थे ।
जब मन में खेड़ा हो, सरब तह सिधि हो, सभी इच्छाएँ पूरी हो चुकी हो सब कुछ होते हुए ही भी सब कुछ का त्यागी हो तब इससे पता चलता है कि चार पदार्थ मिल गए हैं ।
सुंदरु चतुरु तत का बेता ॥
समदरसी एक द्रिसटेता ॥
उसकी हर बात में सुन्दरता चतुरता होती है । सच सुन्दर और चतुर ही होता है । झूठ कुरूप होता है । जो निराकारी शरीर है वह तत का बेता होता है उसका स्वरुप ही सुंदर होता है और वही चतुर होता है । वह तत को जानता है । वह आत्मदर्शी होता है, आत्म ज्ञानी होता है । वह समदर्शी होता है और वह सभी को एक नज़र से देखता है । उसे सभी मतें एक जैसी ही लगती है ।
इह फल तिसु जन कै मुखि भने ॥
गुर नानक नाम बचन मनि सुने ॥६॥
गुर नानक कह रहे हैं कि जिन्होंने नाम वचन सुन लिए, जिन्होंने दरगाह की बातें सुन ली, जिसने धुर दरगाह से नाम सुना हो वही यह सब बोल सकते है । हर कोई यह कथन नहीं कर सकता । पहले मन से गुरबाणी सुने फिर सीधा बाणी सुने तब जाकर वह यह सब बोलने के काबिल होता है ।
रिधि- माया का ज्ञान
हृदय में जब तक माया अग्नि जल रही हो तब तक शांति नहीं हो सकती । यदि किसी बर्तन में अग्नि हो यदि उसे बर्तन से निकाल दिया जाए तो शांति आ जाती है । अग्नि निकाल देने के बाद भी जो तपिश बर्तन में होती है वह रहती ही है लेकिन वह लगातार गर्म होना बंद हो जाता है । उस ह्रदय रुपी बर्तन से माया का ज्ञान निकाल कर नाम रुपी नया खजाना डालना है । पहले ह्रदय को साफ़ करना आवश्यक है । अन्यथा यदि नाम की बूँद पद भी गयी तो वही जलती हुई भट्ठी में पानी की बूँद गिरने के समान ही होगी । लोगों का ह्रदय उसी भट्ठी के समान जल रहा है वहां गुरबानी की सुनी एक आधी बात का कोई असर ही नहीं होता । जब ह्रदय रुपी धरती शांत होगी वहां जब नाम रुपी जल बरसेगा तभी वहां कुछ पैदा होगा ।
जहाँ खेम शांति रिधि नव निधि होती है वहां ऐसा बुद्ध और ज्ञान होता है जिसमे सारी दुनिया की ही समझ होती है तीनों लोको का ज्ञान होता है । तीनों लोको की समझ होती है ।
बिदिआ तपु जोगु प्रभ धिआनु ॥
गिआनु स्रेसट ऊतम इसनानु ॥
यदि विद्या, तप, जोग सही हो तभी जाकर प्रभ से ध्यान जुड़ता है । तब जाकर वहां से श्रेष्ठ ज्ञान प्राप्त होता है । उसी श्रेष्ठ ज्ञान में मन को धोया जाए तभी उत्तम स्नान है । यही अमृत सरोवर का स्नान है ।
पानी में डुबकी लगाना स्नान नहीं है । शरीर को धोना स्नान नहीं है, यह अविद्या है । जिन्होंने बाहर अमृतसर में सरोवर बना लिया उन्होंने केवल दूसरों से फरेब ही किया है । उत्तम स्नान को छुपा अमृतसर सरोवर के स्नान को ही उत्तम स्नान कह दिया ।
चारि पदारथ कमल प्रगास ॥
सभ कै मधि सगल ते उदास ॥
यहाँ आकर ही चार पदार्थ मिलते हैं । पहले चार पदार्थ मांगे थे ।
जब मन में खेड़ा हो, सरब तह सिधि हो, सभी इच्छाएँ पूरी हो चुकी हो सब कुछ होते हुए ही भी सब कुछ का त्यागी हो तब इससे पता चलता है कि चार पदार्थ मिल गए हैं ।
सुंदरु चतुरु तत का बेता ॥
समदरसी एक द्रिसटेता ॥
उसकी हर बात में सुन्दरता चतुरता होती है । सच सुन्दर और चतुर ही होता है । झूठ कुरूप होता है । जो निराकारी शरीर है वह तत का बेता होता है उसका स्वरुप ही सुंदर होता है और वही चतुर होता है । वह तत को जानता है । वह आत्मदर्शी होता है, आत्म ज्ञानी होता है । वह समदर्शी होता है और वह सभी को एक नज़र से देखता है । उसे सभी मतें एक जैसी ही लगती है ।
इह फल तिसु जन कै मुखि भने ॥
गुर नानक नाम बचन मनि सुने ॥६॥
गुर नानक कह रहे हैं कि जिन्होंने नाम वचन सुन लिए, जिन्होंने दरगाह की बातें सुन ली, जिसने धुर दरगाह से नाम सुना हो वही यह सब बोल सकते है । हर कोई यह कथन नहीं कर सकता । पहले मन से गुरबाणी सुने फिर सीधा बाणी सुने तब जाकर वह यह सब बोलने के काबिल होता है ।
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