एको जपि एको सालाहि ॥ एकु सिमरि एको मन आहि ॥

गउड़ी सुखमनी 153
एको जपि एको सालाहि ॥
एकु सिमरि एको मन आहि ॥
१ को ही जपना है १ को ही समझना है । आदि ग्रंथ में जो १ है वह क्या है उसी को समझना है । १ का ही गुण गायन करना है । एक मन एक चित होकर उसी एक को ही सिमरना है । यहाँ आत्मज्ञान की ही बात की जा रही है । ज्योत को ही समझना है ज्योत का ही गुण गायन करना है । जात तो माया है, शरीर तो माया है, उसका गुण गायन नहीं करना । यहाँ उस १ की बात हो रही है जो सबके अंदर हैं । जीव स्व्म भी १ ही है । आत्मा सभी के अंदर है किसी में भ्रम ज्यादा है किसी में कम है । भ्रम की वजह से ही दो हिस्से हैं । जितने हिस्से में रोशनी है वह चित है और जितने हिस्से में भ्रम है वह मन है । जितना अंधेरा है उतना मन है जितनी रोशनी है उतना चित है । जब तक १ नहीं होता तब तक १ को जान भी नहीं सकता । इसने स्व्म ही १ होना है । जिस दिन स्व्म १ हो गया उस दिन १ की समझ आ जाएगी ।
विवेक बुद्धि का गुणगान करना है किसी व्यक्ति का गुणगान नहीं करना । चाहे वह व्यक्ति स्व्म विवेक बुद्धि वाला ही क्यों न हो । गुर अंगद ने गुर नानक की सिफ्त-सलाह , गुण गायन नहीं किया उन्होने विवेक बुद्धि का गुणगान किया है । जहां से नानक ने विवेक पाया उसी का गुणगान करना है ।
एकस के गुन गाउ अनंत ॥
मनि तनि जापि एक भगवंत ॥
भगवंत – गुरमुख,
एकस के ही गुणों का गायन करना चाहिए । एकस हमेशा रहने वाला है । उसके गुण भी अनंत है वह स्व्म भी अनंत है । माया का अंत है सच का अंत नहीं है । इसलिए झूठ के गुण नहीं गाने चाहिए । सच के अनंत गुणो को गाओ ।
भगवंत का मन तन से जाप करो । गुरमुख कौन है उसे समझो । गुरमुख ही बनना है इसलिए गुरमुख को ही समझना है । एक शब्द यहाँ बहुवचन के रूप में आया है ।
एको एकु एकु हरि आपि ॥
पूरन पूरि रहिओ प्रभु बिआपि ॥
हरि सभी में एक रूप में है ।
घट घट मै हरि जू बसै ॥ अंग 1427
हरि का रंग रूप एक ही है । हरि के आधार पर हम सभी एक ही हैं । लेकिन मन के आधार पर हम सभी अलग अलग हैं । हरि केवल खरा है खोट मन के कारण है । जो भाग खरा है उसके हिसाब से सभी एक तरह के ही हैं । लेकिन जहां खोट है जिस भाग में खोट है वहाँ आकर सभी अलग अलग हो जाते हैं ।
जो हरि को पूरा करने वाला है, वह पूर्ण है वह शब्द गुरु है । वही दूसरों को पूरा कर रहा है । जितने भी घट घट में बसने वाले हरि हैं उन सब से प्रभु (शब्द गुरु) का संपर्क है । वह सबमें व्यापक है । हरि हृदय में है, उसका क्षेत्र सीमित है । लेकिन शब्द गुरु सर्व व्यापक है । हरि अनेक है । लेकिन शब्द गुरु एक ही है । हुक्म एक ही है ।
अनिक बिसथार एक ते भए ॥
एकु अराधि पराछत गए ॥
पहले सभी एक ही थे । सचखण्ड में सभी एक ही थे । एक का ही विस्तार हुआ है । जितने भी जीव है सभी एक ही थे सभी पहले साबत ही थे । साबत से ही दो टुकड़े हुए हैं ।
एकु अराधि – हुक्म(नाम) की आराधना ।
जिन्होने हुक्म की आराधना की है वे यहाँ से बाजी जीतकर जाते हैं अर्थात मन को हराकर यहाँ से जाते हैं । वे अपने घर – सचखण्ड पहुँच जाते हैं । यहाँ आकर मवासी राजा बने हुए थे लेकिन यहाँ से अपना आप हार कर जाते हैं । जो मावासी राजा थे वे दास बन गए तब जाकर यहाँ से छूटे हैं । हुक्म से पराजित होकर , हुक्म को स्वीकार कर यहाँ से गए हैं । अपने अवगुणों का प्राश्चित कर हुक्म की आराधना कर दास बनकर यहाँ से गए ।
मन तन अंतरि एकु प्रभु राता ॥
गुर प्रसादि नानक इकु जाता ॥८॥१९॥
जिसने एक मन तन होकर, जिसने एक होकर हृदय पर सच का रंग चढ़ाया है, जो सच के रंग में रंग गया, जो एक होकर हृदय में टिक गया उसी ने ज्ञान की कृपा द्वारा एकु को जाना है उसी ने हुक्म को समझा है ।
जब स्व्म १ हो गया तब जाकर एकु का पता चला । १ क्या है उसी को समझता समझता स्व्म ही १ हो गया । मन तन बुद्धि द्वारा १ जानने से भाव यही है की वह स्व्म १ हो गया और उसने १ को जान लिया ।

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