जो जानै तिसु सदा सुखु होइ ॥ आपि मिलाइ लए प्रभु सोइ ॥

गउड़ी सुखमनी 185
जो जानै तिसु सदा सुखु होइ ॥
आपि मिलाइ लए प्रभु सोइ ॥
जो यह सब मान ले, जो दरगाह के किये को कबूल करे उसे सदेव सुख होता है । जो हुक्म में आ जाये उसे प्रभ हुक्म में ही समा लेता है ।
ओहु धनवंतु कुलवंतु पतिवंतु ॥
जीवन मुकति जिसु रिदै भगवंतु ॥
वही धनवान है अच्छी कुल वाला है इज्जत वाला है । यहाँ गुरमुख की बात हो रही है । यहाँ पूर्ण ब्रह्म की बात हो रही है । जिसके ह्रदय में भगवंत है वही जीवन मुक्त है । मन ही भगवंत है जब यह सच्चा होकर मरता तब भाग्यशाली है यदि झूठा ही मरता है तब अभागा ही है ।
जीवन मुक्त अवस्था पाने वाला मन ही भाग्यशाली है ।
धंनु धंनु धंनु जनु आइआ ॥
जिसु प्रसादि सभु जगतु तराइआ ॥
धन्य है वो जन जिसने नाम रुपी प्रसाद पाया है ।
वही प्रसादि जो कबीर और नानक को मिला वही उन्होंने दूसरों को दिया और सारे संसार को बाँट दिया और उसी प्रसाद द्वारा ही संसार को तरा है ।
जन आवन का इहै सुआउ ॥
जन कै संगि चिति आवै नाउ ॥
जन के आने का यही उद्देश्य है वह प्रसाद लेने आया था और उसने यह प्रसाद ले लिया । नाम ही प्रसाद है ।
जन की संगति द्वारा ज्ञान चित में टिक जाता है । आत्मज्ञान चित में टिक जाता है । यही जन की निशानी है । जन के जन्म का मनोरथ भी यही था कि उनके अंदर नाम और मजबूत हो जाए । जिसके अंदर सच हो उसका सच मजबूत हो जाता है । जिसके अंदर झूठ हो उसकी पहले झूठ की मैल उतरती है ।
आपि मुकतु मुकतु करै संसारु ॥
नानक तिसु जन कउ सदा नमसकारु ॥८॥२३॥
जो स्वम् मुक्ति पा ले , जो मन को काबू कर ले, जो विकारों पर काबू पा ले वही मुक्त है । मन को काबू में करना ही मुक्ति है । जो स्वम् मुक्त है वही दूसरों को मुक्ति का मार्ग बता सकता है । वह केवल मुक्ति की विधि बता सकता है मुक्त नहीं कर सकता ।
नानक कह रहे हैं कि ऐसे जन को सदा नमस्कार है ।

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