गुरमत के अनुसार चार युग |
गुरमत के अनुसार चार युग |
ਪੰਨਾ 346, ਸਤਰ 10
ਸਤਜੁਗਿ ਸਤੁ ਤੇਤਾ ਜਗੀ ਦੁਆਪਰਿ ਪੂਜਾਚਾਰ ॥
सतजुगि सतु तेता जगी दुआपरि पूजाचार ॥
ਤੀਨੌ ਜੁਗ ਤੀਨੌ ਦਿੜੇ ਕਲਿ ਕੇਵਲ ਨਾਮ ਅਧਾਰ ॥੧॥
गुरबानी के अनुसार चार युग क्या है आज हम यह विचार करने वाले है आप ने गुरबानी में चार युग के बारे में पड़ा होगा और गुरमत ने ही सही जानकारी इन युगो के बारे में दी है |गुरबानी कह रही है की सतयुग में केवल सत होता है ,सभी जीव सत सरूप में ही लीन होते है ,सभी आत्माए सुन समाद में ही लीन होती है ,बहार की रचना कोई नहीं होती है न ही कोई माया रुपी संसार होता है क्योकि गुरबानी में सतयुग में सत ही माना है झूठ भरम उस सत्ययुग में नहीं होता है ,न यह दृष्टमान माया रुपी संसार होता है न पुन और पाप ही होता है क्योकि रचना ही नहीं होती ,कोई अवतार भी नहीं होता |यहाँ पर आकर ही गुरबानी ने हिन्दू मत्त वाले सारे ही युगो को काट दिया है क्योकि सनातन धरम ही सृष्टि में ही सतयुग मन गिया है और अवतार भी माने गए है |असल में दुनिया में तीन ही पर्कार का समय है भूत वर्तमान और भविष्य यह तीन ही काल संसार में है चौथा काल तो अकाल है माया से परे है वही सतयुग है |क्योकि माया में सतयुग हो ही नहीं सकता है |हिन्दू संतो को इस चौथे जनि सचखंड का कोई ज्ञान नहीं था इस लिए संसार में सतयुग मान लेना उसकी मज़बूरी थी |गुरबानी ने ब्रह्म ज्ञान को बहुत सूक्ष्म समजाया है |सत युग में सब ही सत में लीन सुन समाद में होते है और अनहद नाद उसके अंदर परगट होता है मन सुन में लीन रहता है |सभी का धयान अपने मूल में होता है |जब त्रेता पैदा होता है तब तीन हिस्सों में सूरत बट जाती है इसी लिए त्रेता कहा गया है |जिनकी सूरत सचखंड से टूट गयी अंतर मुखी से बहार मुखी हो गयी उसको कहा है त्रेता जग्गी ,,यानि जो धयान अंतर धयान था मन सुन में था वो जाग पड़ा उसकी अपनी ईशा पैदा हो गयी हुकम के विपरीत ईशा पैदा हो गयी |जब दिया जलता है तो उसकी रौशनी बहार परगट होती है ऐसे ही जीव का धयान भी बाहर मुखी हो गिया |मन बेकाबू हो गिया |उसका सचखंड के साथ हुकम के साथ मतभेद हो गिया हुकम के साथ मतभेद हो जाता है |त्रेता में दरार पड़ गयी मन और चित के बीच और एक बीच भरम |इस तरह एक जीव का मन चित और विचकार भरम है यह तीन त्रेता है |ਪੰਨਾ 886, ਸਤਰ 6
ਤ੍ਰਿਤੀਏ ਮਹਿ ਕਿਛੁ ਭਇਆ ਦੁਤੇੜਾ ॥
त्रितीए महि किछु भइआ दुतेड़ा ॥
त्रेता में यही दरार है जिसने मन और चित को दो हिस्सों में बाँट दिया है |भरम की लकीर ही दो करती है तभी हम कहते है एक तो मेरा मन यह कहता है पर मुझे यह भी लगता है यही भरम है दुबिदा में रहना ही भरम है
अब बात दुआपरि की बात चल पड़ी है अब समझना होगा द्वापुर गुरबानी में क्या है अब त्रेता के बाद द्वापुर में केवल पूजा चार जनि पूजा कर आचार है |पूजा का अर्थ होता है समर्पित होना
ਪੰਨਾ 525, ਸਤਰ 14
ਤਨੁ ਮਨੁ ਅਰਪਉ ਪੂਜ ਚਰਾਵਉ ॥
तनु मनु अरपउ पूज चरावउ ॥ यहाँ यह गर्भ काल की अवस्था को ही द्वापुर कहा गया है क्योकि यहाँ पर पूज तन और मन से जीव परमेश्वर के हुकम के अनुसार ही जी रहा है जो कुश खाने पीने को मिल रहा है वह पर कोई मर्जी नहीं जैसे परमेश्वर रख रहा है वैसे ही रह रहा है |यहाँ पर आकर ही हमारी चेतना दो हिस्से में समा जाती है एक तो मन है जो सरीर के साथ जुड़ा रहा है |सरीर धारण कर रहा है ताकि जो सतयग में ज्ञान पूरा था उसी को पूरा कर के घर वापिस जा सके |यह काल द्वापुर का काल है यहाँ पर कल्पना नहीं होती है |यहाँ पर चेतना दो हिस्सों में लीन होती है एक मन सरीर के साथ बाकि चेतना शुद्ध चेतन बाकि सरीर को चलाता है तभी हम स्वाश नहीं लेते अपने आप चलता है दिल अपने आप धड़कता है किडनी लीवर सब अपने आप काम कर रहा है इसमें से हम कुश नहीं कर रहे क्योकि आधा ही धयान मन का बाहर है बाकि अंतर आत्मा चित ही यह सब कुश करता है |मन का धयान दिमाग के आकर ही ज्ञान लेता है वो भी इस लिए के हम कल्पना से रहत हो तो द्वापुर में चेतना दो हिस्सों में समा जाती है गुरबानी में लिखा है जैसे
ਦੁਤੀਆ ਅਰਧੋ ਅਰਧਿ ਸਮਾਇਆ ॥
दुतीआ अरधो अरधि समाइआ ॥ ਪੰਨਾ 886, ਸਤਰ ६
दुतिया जनि द्वापुर में ही अधि अधि चेतना हो जाती है |अब जो यह दरार पड़ गयी है उसी को मिटने के लिए इस लिए परमेश्वर ने यह जनम इसको दिया है |यह संसार एक तरह की हॉस्पिटल ही है और यहाँ का वैद गुरु गोबिंदा परमेश्वर है जो हमे ठीक कर रहा है पिशली सभी योनि जो यह जीव भोग कर आया है वो यही उपचार का हिस्सा ही है अब मनुष्य की योनि में पूर्ण रूप से अपना मूल पहचान सकता है जो की जोत सरूप है |मन तू जोत सरूप है अपना मूल पछाण|| अब यह तीन ही युग है यहाँ से अब जनम ले चुका है |यानि पैदा हो चुका है |अब यहाँ पर गुरबानी विचार से ज्ञान आगे बढ़ाना है | पर गुरबानी विचार तभी हो सकता है जब वह गर्भ काल की अवस्था में रहे क्योकि वह पर सारी शर्तो को माना हुआ है जैसे परमेश्वर बचे को रखता है वैसे ही रहता है कोई अपनी मर्जी नहीं जो खाने को मिलता है वही खा पी रहा है कोई मर्जी नहीं है |
ਤੀਨੌ ਜੁਗ ਤੀਨੌ ਦਿੜੇ ਕਲਿ ਕੇਵਲ ਨਾਮ ਅਧਾਰ ॥੧॥
तीनौ जुग तीनौ दिड़े कलि केवल नाम अधार ॥१॥ अब कलयुग जनि सरीर में कल्पना तभी जा सकती है जा नाम को आधार बना ले नाम क्या है गुरबानी के ज्ञान को ही नाम कहा गया है हुकम भी नाम है हुकम को समझना ज्ञान से ही सम्भव है |इस पर्कार गुरबानी के यह चार युग है जो घाट के अंदर ही घटे है तभी इन्हे बूजने के लिए कहा था क्योकि गुरबानी ने ही युग को असली रूप में समजजय है जैसे गुरबानी ने कहा है |
ਗੁਪਤੇ ਬੂਝਹੁ ਜੁਗ ਚਤੁਆਰੇ ॥
गुपते बूझहु जुग चतुआरे ॥
ਘਟਿ ਘਟਿ ਵਰਤੈ ਉਦਰ ਮਝਾਰੇ ॥
घटि घटि वरतै उदर मझारे ॥
ਪੰਨਾ 346, ਸਤਰ 10
ਸਤਜੁਗਿ ਸਤੁ ਤੇਤਾ ਜਗੀ ਦੁਆਪਰਿ ਪੂਜਾਚਾਰ ॥
सतजुगि सतु तेता जगी दुआपरि पूजाचार ॥
ਤੀਨੌ ਜੁਗ ਤੀਨੌ ਦਿੜੇ ਕਲਿ ਕੇਵਲ ਨਾਮ ਅਧਾਰ ॥੧॥
गुरबानी के अनुसार चार युग क्या है आज हम यह विचार करने वाले है आप ने गुरबानी में चार युग के बारे में पड़ा होगा और गुरमत ने ही सही जानकारी इन युगो के बारे में दी है |गुरबानी कह रही है की सतयुग में केवल सत होता है ,सभी जीव सत सरूप में ही लीन होते है ,सभी आत्माए सुन समाद में ही लीन होती है ,बहार की रचना कोई नहीं होती है न ही कोई माया रुपी संसार होता है क्योकि गुरबानी में सतयुग में सत ही माना है झूठ भरम उस सत्ययुग में नहीं होता है ,न यह दृष्टमान माया रुपी संसार होता है न पुन और पाप ही होता है क्योकि रचना ही नहीं होती ,कोई अवतार भी नहीं होता |यहाँ पर आकर ही गुरबानी ने हिन्दू मत्त वाले सारे ही युगो को काट दिया है क्योकि सनातन धरम ही सृष्टि में ही सतयुग मन गिया है और अवतार भी माने गए है |असल में दुनिया में तीन ही पर्कार का समय है भूत वर्तमान और भविष्य यह तीन ही काल संसार में है चौथा काल तो अकाल है माया से परे है वही सतयुग है |क्योकि माया में सतयुग हो ही नहीं सकता है |हिन्दू संतो को इस चौथे जनि सचखंड का कोई ज्ञान नहीं था इस लिए संसार में सतयुग मान लेना उसकी मज़बूरी थी |गुरबानी ने ब्रह्म ज्ञान को बहुत सूक्ष्म समजाया है |सत युग में सब ही सत में लीन सुन समाद में होते है और अनहद नाद उसके अंदर परगट होता है मन सुन में लीन रहता है |सभी का धयान अपने मूल में होता है |जब त्रेता पैदा होता है तब तीन हिस्सों में सूरत बट जाती है इसी लिए त्रेता कहा गया है |जिनकी सूरत सचखंड से टूट गयी अंतर मुखी से बहार मुखी हो गयी उसको कहा है त्रेता जग्गी ,,यानि जो धयान अंतर धयान था मन सुन में था वो जाग पड़ा उसकी अपनी ईशा पैदा हो गयी हुकम के विपरीत ईशा पैदा हो गयी |जब दिया जलता है तो उसकी रौशनी बहार परगट होती है ऐसे ही जीव का धयान भी बाहर मुखी हो गिया |मन बेकाबू हो गिया |उसका सचखंड के साथ हुकम के साथ मतभेद हो गिया हुकम के साथ मतभेद हो जाता है |त्रेता में दरार पड़ गयी मन और चित के बीच और एक बीच भरम |इस तरह एक जीव का मन चित और विचकार भरम है यह तीन त्रेता है |ਪੰਨਾ 886, ਸਤਰ 6
ਤ੍ਰਿਤੀਏ ਮਹਿ ਕਿਛੁ ਭਇਆ ਦੁਤੇੜਾ ॥
त्रितीए महि किछु भइआ दुतेड़ा ॥
त्रेता में यही दरार है जिसने मन और चित को दो हिस्सों में बाँट दिया है |भरम की लकीर ही दो करती है तभी हम कहते है एक तो मेरा मन यह कहता है पर मुझे यह भी लगता है यही भरम है दुबिदा में रहना ही भरम है
अब बात दुआपरि की बात चल पड़ी है अब समझना होगा द्वापुर गुरबानी में क्या है अब त्रेता के बाद द्वापुर में केवल पूजा चार जनि पूजा कर आचार है |पूजा का अर्थ होता है समर्पित होना
ਪੰਨਾ 525, ਸਤਰ 14
ਤਨੁ ਮਨੁ ਅਰਪਉ ਪੂਜ ਚਰਾਵਉ ॥
तनु मनु अरपउ पूज चरावउ ॥ यहाँ यह गर्भ काल की अवस्था को ही द्वापुर कहा गया है क्योकि यहाँ पर पूज तन और मन से जीव परमेश्वर के हुकम के अनुसार ही जी रहा है जो कुश खाने पीने को मिल रहा है वह पर कोई मर्जी नहीं जैसे परमेश्वर रख रहा है वैसे ही रह रहा है |यहाँ पर आकर ही हमारी चेतना दो हिस्से में समा जाती है एक तो मन है जो सरीर के साथ जुड़ा रहा है |सरीर धारण कर रहा है ताकि जो सतयग में ज्ञान पूरा था उसी को पूरा कर के घर वापिस जा सके |यह काल द्वापुर का काल है यहाँ पर कल्पना नहीं होती है |यहाँ पर चेतना दो हिस्सों में लीन होती है एक मन सरीर के साथ बाकि चेतना शुद्ध चेतन बाकि सरीर को चलाता है तभी हम स्वाश नहीं लेते अपने आप चलता है दिल अपने आप धड़कता है किडनी लीवर सब अपने आप काम कर रहा है इसमें से हम कुश नहीं कर रहे क्योकि आधा ही धयान मन का बाहर है बाकि अंतर आत्मा चित ही यह सब कुश करता है |मन का धयान दिमाग के आकर ही ज्ञान लेता है वो भी इस लिए के हम कल्पना से रहत हो तो द्वापुर में चेतना दो हिस्सों में समा जाती है गुरबानी में लिखा है जैसे
ਦੁਤੀਆ ਅਰਧੋ ਅਰਧਿ ਸਮਾਇਆ ॥
दुतीआ अरधो अरधि समाइआ ॥ ਪੰਨਾ 886, ਸਤਰ ६
दुतिया जनि द्वापुर में ही अधि अधि चेतना हो जाती है |अब जो यह दरार पड़ गयी है उसी को मिटने के लिए इस लिए परमेश्वर ने यह जनम इसको दिया है |यह संसार एक तरह की हॉस्पिटल ही है और यहाँ का वैद गुरु गोबिंदा परमेश्वर है जो हमे ठीक कर रहा है पिशली सभी योनि जो यह जीव भोग कर आया है वो यही उपचार का हिस्सा ही है अब मनुष्य की योनि में पूर्ण रूप से अपना मूल पहचान सकता है जो की जोत सरूप है |मन तू जोत सरूप है अपना मूल पछाण|| अब यह तीन ही युग है यहाँ से अब जनम ले चुका है |यानि पैदा हो चुका है |अब यहाँ पर गुरबानी विचार से ज्ञान आगे बढ़ाना है | पर गुरबानी विचार तभी हो सकता है जब वह गर्भ काल की अवस्था में रहे क्योकि वह पर सारी शर्तो को माना हुआ है जैसे परमेश्वर बचे को रखता है वैसे ही रहता है कोई अपनी मर्जी नहीं जो खाने को मिलता है वही खा पी रहा है कोई मर्जी नहीं है |
ਤੀਨੌ ਜੁਗ ਤੀਨੌ ਦਿੜੇ ਕਲਿ ਕੇਵਲ ਨਾਮ ਅਧਾਰ ॥੧॥
तीनौ जुग तीनौ दिड़े कलि केवल नाम अधार ॥१॥ अब कलयुग जनि सरीर में कल्पना तभी जा सकती है जा नाम को आधार बना ले नाम क्या है गुरबानी के ज्ञान को ही नाम कहा गया है हुकम भी नाम है हुकम को समझना ज्ञान से ही सम्भव है |इस पर्कार गुरबानी के यह चार युग है जो घाट के अंदर ही घटे है तभी इन्हे बूजने के लिए कहा था क्योकि गुरबानी ने ही युग को असली रूप में समजजय है जैसे गुरबानी ने कहा है |
ਗੁਪਤੇ ਬੂਝਹੁ ਜੁਗ ਚਤੁਆਰੇ ॥
गुपते बूझहु जुग चतुआरे ॥
ਘਟਿ ਘਟਿ ਵਰਤੈ ਉਦਰ ਮਝਾਰੇ ॥
घटि घटि वरतै उदर मझारे ॥
ਪੰਨਾ 1026, ਸਤਰ 16 की यह युग तो गुप्त रूप से होते है और घट हिरदे को कहते
है हिरदे में होते है अब हमारी चेतना कल्पना कलयुग में है इसी को सचखंड
सतयुग में जाना है सरीर तो माया का है यही रहता है |अब यह गुरबानी के युग
है सचखंड में सतयुग द्वापुर गर्भ में ,त्रेता जनम से पहले जा मौत के baad
की अवस्था कलयुग जनि सरीर में कल्पना |अगर जीते जी पूर्ण gyan prapt नहीं
हुआ नाम नहीं मिला तो जीव इन्ही तीनो अवस्थाओ में घूमता रहता और सरीर धारण
करता रहता है
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