बेद पुरान सिम्रिति महि देखु ॥ ससीअर सूर नख्यत्र महि एकु ॥

गउड़ी सुखमनी 180
बेद पुरान सिम्रिति महि देखु ॥
ससीअर सूर नख्यत्र महि एकु ॥
वेद पुराण स्मृति चन्द्रमा सूर्य नक्षत्र सभी में हुक्म ही है । क्या जड़ क्या चेतन सभी में हुक्म है । चाहे हो अधिक ज्ञान वाला हो चाहे कोई कम ज्ञान वाला हो सभी हुक्म के अंदर हैं । सारी रचना पर नियंत्रण हुक्म का ही है ।
बाणी प्रभ की सभु को बोलै ॥
आपि अडोलु न कबहू डोलै ॥
बाणी प्रभ की – अंतरात्मा की आवाज़
जो अंतरात्मा की आवाज अनुसार बोलते हैं वे चाहे कोई भी हों, वे अडोल रहते हैं कभी डोलते नहीं है । जो सच पे खड़ा होता है वह कभी नहीं डोलता । सच कोई भी बोले वह अडोल रहता है ।
चार वर्णों को बनाने वाले यही कहते थे कि केवल ब्राह्मण को ही मन्त्रों का फल मिलेगा दूसरा कोई बोले उसे कोई फल नहीं मिलेगा । लेकिन गुरमत अनुसार बाणी कोई भी बोले वह अडोल हो जायेगा ।
सरब कला करि खेलै खेल ॥
मोलि न पाईऐ गुणह अमोल ॥
जीव सभी प्रकार की कला करता है । कोई गलत काम नहीं जो जीव ना करता हो और कोई सही काम नहीं जो जीव ना करता हो । जीव अपनी हर कला का इस्तेमाल संसार में करता ही है ।
जो जीव को यह खेल खिला रहा है उसके गुण का मूल्य पाया नहीं जा सकता । सभी जीवो को अकेला ही खेल खिला रहा है उसके गुण अमूल्य ही है ।
सरब जोति महि जा की जोति ॥
धारि रहिओ सुआमी ओति पोति ॥
सभी में जो ज्योत है ( मन और बुद्धि ) वह विवेक बुद्धि का ही अंश है । कोई ऐसी बुद्धि नहीं जो विवेक बुद्धि से बाहर हो ।
जो सबका स्वामी है वह सब में औत प्रोत है । हमारे पास जो कुछ भी है जितना भी ज्ञान है उसे सब पता है लेकिन उसके पास कितना है यह हमें पता नहीं है । वह हमारी बुद्धि में वृद्धि करता है ।
गुर परसादि भरम का नासु ॥
नानक तिन महि एहु बिसासु ॥३॥
नानक कह रहे हैं कि ज्ञान की कृपा द्वारा भ्रम का नाश होता है । भ्रम से ही सारी अज्ञानता पैदा होती है । सभी विकार काम क्रोध लोभ मोह अहंकार भ्रम से पैदा होते हैं । सभी मतें इन पाँचों का इलाज कर रही है लेकिन जहाँ से ये पैदा हुए हैं उनका इलाज नहीं कर रहीं । जब तक भ्रम का इलाज नहीं होता तब तक किसी रोग का उपचार नहीं हो सकता ।

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