भुखिआ भुख न उतरी जे बंना पुरीआ भार ॥
भुखिआ भुख न उतरी जे बंना पुरीआ भार ॥
गुरु नानक देव जी की अनुपम रचना जपजी साहिब में ब्रहम ज्ञान समाया हुआ है | गुरु नानक देव जी कह रहे है की दुनिआ में जितनी भी मते है जो मनोकामना को पूरा करने कादावा करती है और संसारी सुखो में ही रहना चाहती है मुक्ति प्राप्ति बे बाधा है एक तरफ तो वो प्रचार करती है की फलाने उपाए करने से यह सुख धन संतान सुख आदि की प्राप्ति हो जाएगी और दूसरी तरफ मुक्ति का प्रचार करती है | यह सभी मते विरोध भास से भरी पड़ी है |गुरबानी यही कह रही है की मुक्ति तो तब ही सम्भव है जब तुम्हारा मन कल्पना से रहत होकर मूल के साथ जुड़े पर उसके लिए पहले इसके ऊपर माया से जुड़ा हुआ रंग उतारना पड़ता है |जब तक मन में माया की भूख है तुम मुक्ति का सपना कैसे ले सकते हो |एक तरफ तो तुम कामना को छोड़ना चाहते हो और प्रचार आज के सिख प्रचारक संत सभी कामनाओ को पूरा करने को कह रहे है यह गुरबानी से उलट प्रचार है |
बिना संतोख नहीं कोउ राजे || सुखमनी साहिब ,,,,,,
संतोख के बिना मन को तृप्ति नहीं आ सकती है गुरबानी कह रही है की तुम चाहे जिनते भी संसारी पदार्थ इकठे कर लो चाहे जितनी भी सृषिट का धन तुम्हे दे दिया जाये तुम्हारी तृप्ति नहीं हो सकती यहाँ पर उन सभी संसारी धर्मो सनातनी मतो पर चोट की है जो कामना प्राप्ति का प्रचार करती है और मुक्ति की भी बात करती है |माया की ईशा मन में रख कर मुक्ति की बात कोई मूरख जा लोभी जिसने दुनिया को लोभ देना हो वही कर सकता है |गुरबानी ने सारी ही हिन्दू और दुनिआ की मतो को यहाँ खंडित किया है जो किसे देवी देवते से कुश संसारी वास्तु की प्राप्ति होने की ईशा रखती है | एक तरह तुम संसार को दुखो का घर कहते हो और उसी में धन की आशा रख कर मुक्ति भी मांग रहे हो |यह कैसे सम्भव है की आग के सागर में कोई शांत रह सके ||गुरबानी ने यही कहा है ज्ञान के द्वारा समजाया है की संतोख के बिना गुरबानी पर नहीं चला जा सकता है यह मार्ग संसारी लोगो का नहीं है |क्योकि गुरबानी की विचार तो मन तब करेगा जब इसकी माया की भूख शांत हो तो गुरबानी ने ज्ञान से ही माया के अवगुण के बारे में समजाया है | क्योकि हमारा मन चेतन है माया जड़ वस्तु है |यह माया तो सरीर की जरुरत थी पर मन सरीर के साथ जुड़ा होने की वजह से इसमें रस ढूंढ़ता है | माया जा संसारी पदार्थो से मन कभी शांत नहीं हुआ और जब तक मन शांत नहीं होगा गुरबानी का ज्ञान नहीं समझता | जैसे आकाश में कितनी चीजे है कितने ग्रह है तारे है हमारे सूरज से भी बड़े सूरज है पर फिर भी आकाश कितना खाली है कोई भी चीज इस आकाश को आज तक भर नहीं सकती |पर प्रकाश ऐसी चीज है जब आकाश में फैल जाता है तो सारा आकाश इससे भर जाता है |इसी तरह मन भी आकाश की ही तरह है यह किसी प्रार्थ से नहीं भरता इसको तो केवल ज्ञान की रौशनी से ही भरा जा सकता है |यही गुरबानी समजा रही है की जब तक संतोख नहीं होगा गुरबानी समज में आना सम्भव नहीं है चलना तो दूर की बात है और पुहंच जाना यह तो परमेश्वर की ही किरपा से सम्भव है |
ਬ੍ਰਹਮ ਗਿਆਨੀ ਕੈ ਮਨਿ ਹੋਇ ਪ੍ਰਗਾਸੁ ॥
ब्रहम गिआनी कै मनि होइ प्रगासु ॥
ਜੈਸੇ ਧਰ ਊਪਰਿ ਆਕਾਸੁ ॥
जैसे धर ऊपरि आकासु ॥ ਪੰਨਾ 272, ਸਤਰ १६ गुरबानी ने यही कहा की की ज्ञान ब्रहम ज्ञानी के पास इतना ज्ञान है उसके मन में इतना परगास है की जैसे धरती के ऊपर आकाश है और इसी ज्ञान |की रौशनी इस मन रुपी आकाश को भर देती है |गुरबानी उस सभी संसारी मतो को शिक्षा दे रही है |जो मुक्ति और कामना दोनों का प्रचार कर रही है |गुरबानी जे कहा है की बिना संतोख के मुक्ति प्राप्ति सम्भव नहीं है इस लिए संतोख ही इस भूख का इलाज़ है और कोई पदार्थ जितना मर्जी इकठा कर लो वहा से चिंता भय यह सब चीजे ही उपजती है |नाम की भूख जिसके अंदर पैदा ही नहीं हुए है वो तो अभी माया धारी है और मायाधारी को गुरबानी अँधा और बोला कह रही है |और अँधा बोला मन गुरबानी कैसे सुन और समज सकता है |इस लिए संतोख के बिना कोई इलाज़ नहीं है इसका |
ਪੰਨਾ 734, ਸਤਰ 14
ਜੋ ਦੂਜੈ ਭਾਇ ਸਾਕਤ ਕਾਮਨਾ ਅਰਥਿ ਦੁਰਗੰਧ ਸਰੇਵਦੇ ਸੋ ਨਿਹਫਲ ਸਭੁ ਅਗਿਆਨੁ ॥੨॥
जो दूजै भाइ साकत कामना अरथि दुरगंध सरेवदे सो निहफल सभु अगिआनु ॥२॥
गुरु नानक देव जी की अनुपम रचना जपजी साहिब में ब्रहम ज्ञान समाया हुआ है | गुरु नानक देव जी कह रहे है की दुनिआ में जितनी भी मते है जो मनोकामना को पूरा करने कादावा करती है और संसारी सुखो में ही रहना चाहती है मुक्ति प्राप्ति बे बाधा है एक तरफ तो वो प्रचार करती है की फलाने उपाए करने से यह सुख धन संतान सुख आदि की प्राप्ति हो जाएगी और दूसरी तरफ मुक्ति का प्रचार करती है | यह सभी मते विरोध भास से भरी पड़ी है |गुरबानी यही कह रही है की मुक्ति तो तब ही सम्भव है जब तुम्हारा मन कल्पना से रहत होकर मूल के साथ जुड़े पर उसके लिए पहले इसके ऊपर माया से जुड़ा हुआ रंग उतारना पड़ता है |जब तक मन में माया की भूख है तुम मुक्ति का सपना कैसे ले सकते हो |एक तरफ तो तुम कामना को छोड़ना चाहते हो और प्रचार आज के सिख प्रचारक संत सभी कामनाओ को पूरा करने को कह रहे है यह गुरबानी से उलट प्रचार है |
बिना संतोख नहीं कोउ राजे || सुखमनी साहिब ,,,,,,
संतोख के बिना मन को तृप्ति नहीं आ सकती है गुरबानी कह रही है की तुम चाहे जिनते भी संसारी पदार्थ इकठे कर लो चाहे जितनी भी सृषिट का धन तुम्हे दे दिया जाये तुम्हारी तृप्ति नहीं हो सकती यहाँ पर उन सभी संसारी धर्मो सनातनी मतो पर चोट की है जो कामना प्राप्ति का प्रचार करती है और मुक्ति की भी बात करती है |माया की ईशा मन में रख कर मुक्ति की बात कोई मूरख जा लोभी जिसने दुनिया को लोभ देना हो वही कर सकता है |गुरबानी ने सारी ही हिन्दू और दुनिआ की मतो को यहाँ खंडित किया है जो किसे देवी देवते से कुश संसारी वास्तु की प्राप्ति होने की ईशा रखती है | एक तरह तुम संसार को दुखो का घर कहते हो और उसी में धन की आशा रख कर मुक्ति भी मांग रहे हो |यह कैसे सम्भव है की आग के सागर में कोई शांत रह सके ||गुरबानी ने यही कहा है ज्ञान के द्वारा समजाया है की संतोख के बिना गुरबानी पर नहीं चला जा सकता है यह मार्ग संसारी लोगो का नहीं है |क्योकि गुरबानी की विचार तो मन तब करेगा जब इसकी माया की भूख शांत हो तो गुरबानी ने ज्ञान से ही माया के अवगुण के बारे में समजाया है | क्योकि हमारा मन चेतन है माया जड़ वस्तु है |यह माया तो सरीर की जरुरत थी पर मन सरीर के साथ जुड़ा होने की वजह से इसमें रस ढूंढ़ता है | माया जा संसारी पदार्थो से मन कभी शांत नहीं हुआ और जब तक मन शांत नहीं होगा गुरबानी का ज्ञान नहीं समझता | जैसे आकाश में कितनी चीजे है कितने ग्रह है तारे है हमारे सूरज से भी बड़े सूरज है पर फिर भी आकाश कितना खाली है कोई भी चीज इस आकाश को आज तक भर नहीं सकती |पर प्रकाश ऐसी चीज है जब आकाश में फैल जाता है तो सारा आकाश इससे भर जाता है |इसी तरह मन भी आकाश की ही तरह है यह किसी प्रार्थ से नहीं भरता इसको तो केवल ज्ञान की रौशनी से ही भरा जा सकता है |यही गुरबानी समजा रही है की जब तक संतोख नहीं होगा गुरबानी समज में आना सम्भव नहीं है चलना तो दूर की बात है और पुहंच जाना यह तो परमेश्वर की ही किरपा से सम्भव है |
ਬ੍ਰਹਮ ਗਿਆਨੀ ਕੈ ਮਨਿ ਹੋਇ ਪ੍ਰਗਾਸੁ ॥
ब्रहम गिआनी कै मनि होइ प्रगासु ॥
ਜੈਸੇ ਧਰ ਊਪਰਿ ਆਕਾਸੁ ॥
जैसे धर ऊपरि आकासु ॥ ਪੰਨਾ 272, ਸਤਰ १६ गुरबानी ने यही कहा की की ज्ञान ब्रहम ज्ञानी के पास इतना ज्ञान है उसके मन में इतना परगास है की जैसे धरती के ऊपर आकाश है और इसी ज्ञान |की रौशनी इस मन रुपी आकाश को भर देती है |गुरबानी उस सभी संसारी मतो को शिक्षा दे रही है |जो मुक्ति और कामना दोनों का प्रचार कर रही है |गुरबानी जे कहा है की बिना संतोख के मुक्ति प्राप्ति सम्भव नहीं है इस लिए संतोख ही इस भूख का इलाज़ है और कोई पदार्थ जितना मर्जी इकठा कर लो वहा से चिंता भय यह सब चीजे ही उपजती है |नाम की भूख जिसके अंदर पैदा ही नहीं हुए है वो तो अभी माया धारी है और मायाधारी को गुरबानी अँधा और बोला कह रही है |और अँधा बोला मन गुरबानी कैसे सुन और समज सकता है |इस लिए संतोख के बिना कोई इलाज़ नहीं है इसका |
ਪੰਨਾ 734, ਸਤਰ 14
ਜੋ ਦੂਜੈ ਭਾਇ ਸਾਕਤ ਕਾਮਨਾ ਅਰਥਿ ਦੁਰਗੰਧ ਸਰੇਵਦੇ ਸੋ ਨਿਹਫਲ ਸਭੁ ਅਗਿਆਨੁ ॥੨॥
जो दूजै भाइ साकत कामना अरथि दुरगंध सरेवदे सो निहफल सभु अगिआनु ॥२॥
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