जह निरमल पुरखु पुरख पति होता ॥ तह बिनु मैलु कहहु किआ धोता ॥
गउड़ी सुखमनी 165
जह निरमल पुरखु पुरख पति होता ॥
तह बिनु मैलु कहहु किआ धोता ॥
जह निरमल पुरखु पुरख पति होता ॥
तह बिनु मैलु कहहु किआ धोता ॥
निरमल पुरखु – चित
पुरख – मन
जब निर्मल पुरख ने पुरख को मना लिया अर्थात चित ने मन को मना लिया । मन ने चित को स्वामी स्वीकार कर लिया । मन चित का अनुसारी हो गया । चित ने अपना मन समझा लिया । बड़ा वही है जिसने मन को मना लिया । बड़े ने छोटे को समझा लिया । तब मन में मैल है ही नहीं तो बताओ बिना मैल फिर किसी धोया । मन में मैल है ही नहीं फिर वह संसार में क्यों आएगा । मन जब मलीन होता है तब यह माया के पीछे भागता है जब यह अपनी मलीनता त्याग निर्मल हो जाता है तब यह हरि के अनुसार चलता है ।
जह निरंजन निरंकार निरबान ॥
तह कउन कउ मान कउन अभिमान ॥
जब यह निरंजन ही है जब केवल ज्योत ही है । जब केवल निरंजन निरंकार निर्वाण है जब कोई इच्छा ही नहीं है तब कहो वहां कैसा मान और कैसा अभिमान ।
निर्वाण – जब कोई इच्छा ही नहीं रहती ।
यहाँ पूर्ण ब्रह्म की अवस्था की ही बात हो रही है । वहां चित को मान नहीं है और न मन को अभिमान है ।
जह सरूप केवल जगदीस ॥
तह छल छिद्र लगत कहु कीस ॥
जब केवल जगदीश का ही स्वरुप है फिर छल और छिद्र कैसे और किसे लगा । अलग अलग ग्रंथों और मतों में पूर्ण-ब्रह्म को अलग अलग नामो से संबोधित किया गया है । उन सभी को यहाँ एक साथ लिया गया है । जब केवल एक जगदीश ही है तब कौन छला गया और किसने किसको छला । पूर्ण ब्रह्म – जगदीश के अलावा कोई और है ही नहीं फिर कौन छला गया ।
जह जोति सरूपी जोति संगि समावै ॥
तह किसहि भूख कवनु त्रिपतावै ॥
जब ज्योत स्वरुप मन अपने मूल से जुड़ा हुआ ही होता है, मन चित में ही समाया हुआ होता है तब कहो भूख किसे लगती है ? मन जब अपने मूल से अलग होता है तब ही इसे भूख लगती है । जब तक मन मूल के साथ है तब तक उसे रस मिलता रहता है । जब अलग होता है तभी उसे कमी महसूस होती है । जब तक मूल में समाया रहता है तब तक भूख लगती ही नहीं है , भूख को मिटाने का यत्न करने की आवश्यकता ही नहीं है ।
लिव छुड़की लगी त्रिसना माइआ अमरु वरताइआ ।। अंग 921
मन की लिव छूटने पर ही उसे भूख लगती है जब तक लिव लगी रहती है उसे भूख नहीं लगती।
करन करावन करनैहारु ॥
नानक करते का नाहि सुमारु ॥४॥
यही करन करावन करनैहारु है, यह अपने मूल को अपनी मर्जी से छोड़ कर परे हो जाता है, यह स्वम् ही गलती करता है । नानक कह रहे हैं कि कर्ते की कला को कोई अंत नहीं है बस यही अपनी कलाकारी के कारण ही फसा हुआ है । इसकी अपनी बुद्धि ने ही इसे फसाया है ।
पुरख – मन
जब निर्मल पुरख ने पुरख को मना लिया अर्थात चित ने मन को मना लिया । मन ने चित को स्वामी स्वीकार कर लिया । मन चित का अनुसारी हो गया । चित ने अपना मन समझा लिया । बड़ा वही है जिसने मन को मना लिया । बड़े ने छोटे को समझा लिया । तब मन में मैल है ही नहीं तो बताओ बिना मैल फिर किसी धोया । मन में मैल है ही नहीं फिर वह संसार में क्यों आएगा । मन जब मलीन होता है तब यह माया के पीछे भागता है जब यह अपनी मलीनता त्याग निर्मल हो जाता है तब यह हरि के अनुसार चलता है ।
जह निरंजन निरंकार निरबान ॥
तह कउन कउ मान कउन अभिमान ॥
जब यह निरंजन ही है जब केवल ज्योत ही है । जब केवल निरंजन निरंकार निर्वाण है जब कोई इच्छा ही नहीं है तब कहो वहां कैसा मान और कैसा अभिमान ।
निर्वाण – जब कोई इच्छा ही नहीं रहती ।
यहाँ पूर्ण ब्रह्म की अवस्था की ही बात हो रही है । वहां चित को मान नहीं है और न मन को अभिमान है ।
जह सरूप केवल जगदीस ॥
तह छल छिद्र लगत कहु कीस ॥
जब केवल जगदीश का ही स्वरुप है फिर छल और छिद्र कैसे और किसे लगा । अलग अलग ग्रंथों और मतों में पूर्ण-ब्रह्म को अलग अलग नामो से संबोधित किया गया है । उन सभी को यहाँ एक साथ लिया गया है । जब केवल एक जगदीश ही है तब कौन छला गया और किसने किसको छला । पूर्ण ब्रह्म – जगदीश के अलावा कोई और है ही नहीं फिर कौन छला गया ।
जह जोति सरूपी जोति संगि समावै ॥
तह किसहि भूख कवनु त्रिपतावै ॥
जब ज्योत स्वरुप मन अपने मूल से जुड़ा हुआ ही होता है, मन चित में ही समाया हुआ होता है तब कहो भूख किसे लगती है ? मन जब अपने मूल से अलग होता है तब ही इसे भूख लगती है । जब तक मन मूल के साथ है तब तक उसे रस मिलता रहता है । जब अलग होता है तभी उसे कमी महसूस होती है । जब तक मूल में समाया रहता है तब तक भूख लगती ही नहीं है , भूख को मिटाने का यत्न करने की आवश्यकता ही नहीं है ।
लिव छुड़की लगी त्रिसना माइआ अमरु वरताइआ ।। अंग 921
मन की लिव छूटने पर ही उसे भूख लगती है जब तक लिव लगी रहती है उसे भूख नहीं लगती।
करन करावन करनैहारु ॥
नानक करते का नाहि सुमारु ॥४॥
यही करन करावन करनैहारु है, यह अपने मूल को अपनी मर्जी से छोड़ कर परे हो जाता है, यह स्वम् ही गलती करता है । नानक कह रहे हैं कि कर्ते की कला को कोई अंत नहीं है बस यही अपनी कलाकारी के कारण ही फसा हुआ है । इसकी अपनी बुद्धि ने ही इसे फसाया है ।
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