तिस ते दूरि कहा को जाइ ॥ उबरै राखनहारु धिआइ ॥
गउड़ी सुखमनी 176
तिस ते दूरि कहा को जाइ ॥
उबरै राखनहारु धिआइ ॥
तिस ते दूरि कहा को जाइ ॥
उबरै राखनहारु धिआइ ॥
सच को छोड़कर कोई दूर कैसा जा सकता है । ¬¬¬¬सच का ध्यान कर ही उभरा है जो
पहले बहुत गहरा डूबा हुआ था। जो राखनहारु का ध्यान कर ही उभरा है वह उसे
छोड़ कहाँ जायेगा । सच के सहारे ही डूबा हुआ उभर सकता है । जो राखनहारु है
वह स्वम् डूबा हुआ नहीं है वह बचाने वाला है । जब ध्यान राखनहारु में हो तब
कोई डूबता नहीं है बल्कि उभर आता है ।
सच को त्याग स्वम् ही माया में आदमी डूबता है यदि ध्यान सच में होगा तभी उभर सकता है । जब ध्यान त्रिकुटी में होगा तब यह डूबेगा ही । जब तक त्रिकुटी के सहारे कोई कार्य करेगा तब तक चिंता रहती है । त्रिकुटी में ही चिंता है ।
निरभउ जपै सगल भउ मिटै ॥
प्रभ किरपा ते प्राणी छुटै ॥
जब निर्भय जो जप लेता है जब यह भय मुक्त को जप लेता है । जब आदमी भयमुक्त को समझ लेता है, जब यह समझ लेता है कि आदमी भयमुक्त कैसे हो सकता है तब यह भयमुक्त हो भी जाता है । कोई दूसरा व्यक्ति भयमुक्त क्यों और कैसे हो गया जिस दिन इसे पता चलता है यह भी भयमुक्त हो जाता है । भयमुक्त सभी होना चाहते हैं लेकिन भयमुक्त कैसे हुआ जा सकता है इसका ज्ञान नही होता । निर्भय की संगति द्वारा निर्भय आसानी से हुआ जा सकता है । कुछ सहारा मिल जाए और कुछ अपनी कोशिश हो तो भयमुक्त हुआ जा सकता है । प्रभ के सहारे प्राणी छूट जाता है । प्रभ के सहारे से और अपने प्रयास द्वारा प्राणी छूट जाता है ।
जिसु प्रभु राखै तिसु नाही दूख ॥
नामु जपत मनि होवत सूख ॥
जिसकी रक्षा प्रभ करता है उसे कोई दुःख नहीं लगता । यदि कोई उसे दुःख देना भी चाहे तब भी उसे दुःख नहीं लगता । उसे लिए संसार में कोई भी दुःख नहीं रह जाता । वह तो स्वम् संसार को त्यागना चाहता है ।
जिसने नाम जपा हुआ है उसके मन को सुख ही सुख है । दुःख यदि हो भी तब भी जिसने नाम जपा हो उसे वह दुःख दुःख नहीं लगता । उसे दुःख महसूस नहीं होता । दुःख सुख केवल मन की बर्दाश्त करने की क्षमता ही है । नाम द्वारा हर चीज़ को बर्दाश्त करने की क्षमता बढ़ती है । जिसके प्रभ साथ हो उसे कोई दुःख नहीं लगता ।
चिंता जाइ मिटै अहंकारु ॥
तिसु जन कउ कोइ न पहुचनहारु ॥
इस अवस्था में चिंता मिटती है । चिंता भी एक बुरी बीमारी की तरह ही है । जिस दिन चिंता चली गयी उस दिन अहंकार भी चला जायेगा । चिंता – अहंकार साथ साथ चलते आते हैं ।
**पूरी गुरबानी सुनकर भी अहंकार टस से मस नहीं होता । अहंकारी भी गुरबानी सुनते हैं लेकिन उन्हें असर नहीं होता । जिसका नाम से ही विरोध हो उसे फर्क नहीं पड़ता । **
जिस दिन चिंता चली गयी उस दिन अहंकार भी चला जायेगा । चिंता का हमें पता लगता है । चिंता ही अहंकार की जड़ है । लेकिन अहंकार का पता नहीं चलता । जिसे जितनी चिंता होती है उसे अहंकार भी उतना ही होता है । स्वम् को चिंता का पता चलता है और दुसरे को उसके अहंकार का पता चलता है ।
वह जन जिसकी चिंता चली जाये अहंकार मिट जाये, वह जन जिसने अहंकार को जीत लिया हो, जो चिंता मुक्त हो गया हो उसके बराबर कोई भी नहीं है । इस जन से बड़ी कोई पदवी ही नही है ।
सिर ऊपरि ठाढा गुरु सूरा ॥
नानक ता के कारज पूरा ॥७॥
ठाढा – बड़ा
वह जन जिसका अहंकार मिट गया हो वह गुरु सूरा को अपने ऊपर समझता है । उसका सेवक बनकर रहता है । नानक कह रहे हैं कि जिसका सतिगुर सबसे बड़ा शक्तिशाली है उसे सभी कारज पूरे होते हैं ।
सच को त्याग स्वम् ही माया में आदमी डूबता है यदि ध्यान सच में होगा तभी उभर सकता है । जब ध्यान त्रिकुटी में होगा तब यह डूबेगा ही । जब तक त्रिकुटी के सहारे कोई कार्य करेगा तब तक चिंता रहती है । त्रिकुटी में ही चिंता है ।
निरभउ जपै सगल भउ मिटै ॥
प्रभ किरपा ते प्राणी छुटै ॥
जब निर्भय जो जप लेता है जब यह भय मुक्त को जप लेता है । जब आदमी भयमुक्त को समझ लेता है, जब यह समझ लेता है कि आदमी भयमुक्त कैसे हो सकता है तब यह भयमुक्त हो भी जाता है । कोई दूसरा व्यक्ति भयमुक्त क्यों और कैसे हो गया जिस दिन इसे पता चलता है यह भी भयमुक्त हो जाता है । भयमुक्त सभी होना चाहते हैं लेकिन भयमुक्त कैसे हुआ जा सकता है इसका ज्ञान नही होता । निर्भय की संगति द्वारा निर्भय आसानी से हुआ जा सकता है । कुछ सहारा मिल जाए और कुछ अपनी कोशिश हो तो भयमुक्त हुआ जा सकता है । प्रभ के सहारे प्राणी छूट जाता है । प्रभ के सहारे से और अपने प्रयास द्वारा प्राणी छूट जाता है ।
जिसु प्रभु राखै तिसु नाही दूख ॥
नामु जपत मनि होवत सूख ॥
जिसकी रक्षा प्रभ करता है उसे कोई दुःख नहीं लगता । यदि कोई उसे दुःख देना भी चाहे तब भी उसे दुःख नहीं लगता । उसे लिए संसार में कोई भी दुःख नहीं रह जाता । वह तो स्वम् संसार को त्यागना चाहता है ।
जिसने नाम जपा हुआ है उसके मन को सुख ही सुख है । दुःख यदि हो भी तब भी जिसने नाम जपा हो उसे वह दुःख दुःख नहीं लगता । उसे दुःख महसूस नहीं होता । दुःख सुख केवल मन की बर्दाश्त करने की क्षमता ही है । नाम द्वारा हर चीज़ को बर्दाश्त करने की क्षमता बढ़ती है । जिसके प्रभ साथ हो उसे कोई दुःख नहीं लगता ।
चिंता जाइ मिटै अहंकारु ॥
तिसु जन कउ कोइ न पहुचनहारु ॥
इस अवस्था में चिंता मिटती है । चिंता भी एक बुरी बीमारी की तरह ही है । जिस दिन चिंता चली गयी उस दिन अहंकार भी चला जायेगा । चिंता – अहंकार साथ साथ चलते आते हैं ।
**पूरी गुरबानी सुनकर भी अहंकार टस से मस नहीं होता । अहंकारी भी गुरबानी सुनते हैं लेकिन उन्हें असर नहीं होता । जिसका नाम से ही विरोध हो उसे फर्क नहीं पड़ता । **
जिस दिन चिंता चली गयी उस दिन अहंकार भी चला जायेगा । चिंता का हमें पता लगता है । चिंता ही अहंकार की जड़ है । लेकिन अहंकार का पता नहीं चलता । जिसे जितनी चिंता होती है उसे अहंकार भी उतना ही होता है । स्वम् को चिंता का पता चलता है और दुसरे को उसके अहंकार का पता चलता है ।
वह जन जिसकी चिंता चली जाये अहंकार मिट जाये, वह जन जिसने अहंकार को जीत लिया हो, जो चिंता मुक्त हो गया हो उसके बराबर कोई भी नहीं है । इस जन से बड़ी कोई पदवी ही नही है ।
सिर ऊपरि ठाढा गुरु सूरा ॥
नानक ता के कारज पूरा ॥७॥
ठाढा – बड़ा
वह जन जिसका अहंकार मिट गया हो वह गुरु सूरा को अपने ऊपर समझता है । उसका सेवक बनकर रहता है । नानक कह रहे हैं कि जिसका सतिगुर सबसे बड़ा शक्तिशाली है उसे सभी कारज पूरे होते हैं ।
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