पूरन पूरि रहे दइआल ॥ सभ ऊपरि होवत किरपाल ॥
गउड़ी सुखमनी 172
पूरन पूरि रहे दइआल ॥
सभ ऊपरि होवत किरपाल ॥
पूरन पूरि रहे दइआल ॥
सभ ऊपरि होवत किरपाल ॥
वह स्वम् तो पूर्ण है, दूसरों को भी पूर्ण कर रहा है । पूर्ण ब्रह्म
ब्रह्म को पूरा कर रहा है । स्वम् तंदरुस्त है दूसरों को भी रोग मुक्त कर
रहा है । सभी के लिए कृपालु है । सभी से भाव विभिन्न जोनों को भोगने वाले
जीवों से है । केवल आदमी की बात नहीं की जा रही । यहाँ सभी जीव जन्तुओं की
बात की जा रही है । परमेश्वर सभी पर कृपालु होता है ।
अपने करतब जानै आपि ॥
अंतरजामी रहिओ बिआपि ॥
जो कुछ करता है, जो करतब है वह स्वम् जानता है । वह करतब करना जानता है जब मर्जी करतब करदे । रचना में कितना कुछ है कोई नहीं जान सकता । वह जो चाहे करदे ।
वह अन्तर्यामी सभी में व्याप्त है सभी के ह्रदय में व्याप्त है । जहाँ जीवात्मा है वह है । जिसे उपदेश देना है वहां बैठा है । जो यह कहते हैं की वह कण कण में बैठा है वह गलत है । वह सभी के अंदर की जानता है लेकिन हम उसके अंदर की नहीं जानते ।
प्रतिपालै जीअन बहु भाति ॥
जो जो रचिओ सु तिसहि धिआति ॥
जिसने रचना रची है वही बहुत प्रकार से जीवों की प्रतिपाल करता है । जिस जिस की रचना की है वे उसी का ध्यान करते हैं । सभी का ध्यान उसी से जुड़ा हुआ है । आदमी के अलावा जीवों का ध्यान जुड़ा है इसलिए वे अपने से ऊपर की जौन में चले जाते हैं । वे सभी हुक्म में चलते है और हुक्म में खुश रहते हैं । वे कभी शिकायत नहीं करते वे उसकी रजा में राजी है ।
जिसु भावै तिसु लए मिलाइ ॥
भगति करहि हरि के गुण गाइ ॥
जिसे उसका हुक्म भा जाता है जिसे सच भा जाता है उन्हें सच्चे अपने साथ सचखंड ले जाते हैं । जिसके मन को सच भा जाता है वह सचियारा हो जाता है और सचखंड चला जाता है । जब तक झूठ से प्यार है तब तक माया में रहता है ।
पके हुए फलों को वे सचखंड ले जाते हैं ।
हरि का गुण गायन करना ही भक्ति है । माला पकड़कर की जाने वाली भक्ति नहीं है ।
मन अंतरि बिस्वासु करि मानिआ ॥
करनहारु नानक इकु जानिआ ॥३॥
श्रध्दा भक्ति नहीं है विश्वास कर मानना ही भक्ति है । जिसने विश्वास कर नहीं माना वह सिख ही नहीं है । श्रद्धावान सिख होता ही नहीं है ।
जब मन में विश्वास आ जाता है जो मन अंदर विश्वास कर माने तभी करनहारु इकु जो जान सकेगा , अर्थात हुक्म को जान सकेगा । नानक कह रहे हैं कि मैंने भी पहले परखा है फिर विश्वास किया है तभी यह सब कहा है ।
अपने करतब जानै आपि ॥
अंतरजामी रहिओ बिआपि ॥
जो कुछ करता है, जो करतब है वह स्वम् जानता है । वह करतब करना जानता है जब मर्जी करतब करदे । रचना में कितना कुछ है कोई नहीं जान सकता । वह जो चाहे करदे ।
वह अन्तर्यामी सभी में व्याप्त है सभी के ह्रदय में व्याप्त है । जहाँ जीवात्मा है वह है । जिसे उपदेश देना है वहां बैठा है । जो यह कहते हैं की वह कण कण में बैठा है वह गलत है । वह सभी के अंदर की जानता है लेकिन हम उसके अंदर की नहीं जानते ।
प्रतिपालै जीअन बहु भाति ॥
जो जो रचिओ सु तिसहि धिआति ॥
जिसने रचना रची है वही बहुत प्रकार से जीवों की प्रतिपाल करता है । जिस जिस की रचना की है वे उसी का ध्यान करते हैं । सभी का ध्यान उसी से जुड़ा हुआ है । आदमी के अलावा जीवों का ध्यान जुड़ा है इसलिए वे अपने से ऊपर की जौन में चले जाते हैं । वे सभी हुक्म में चलते है और हुक्म में खुश रहते हैं । वे कभी शिकायत नहीं करते वे उसकी रजा में राजी है ।
जिसु भावै तिसु लए मिलाइ ॥
भगति करहि हरि के गुण गाइ ॥
जिसे उसका हुक्म भा जाता है जिसे सच भा जाता है उन्हें सच्चे अपने साथ सचखंड ले जाते हैं । जिसके मन को सच भा जाता है वह सचियारा हो जाता है और सचखंड चला जाता है । जब तक झूठ से प्यार है तब तक माया में रहता है ।
पके हुए फलों को वे सचखंड ले जाते हैं ।
हरि का गुण गायन करना ही भक्ति है । माला पकड़कर की जाने वाली भक्ति नहीं है ।
मन अंतरि बिस्वासु करि मानिआ ॥
करनहारु नानक इकु जानिआ ॥३॥
श्रध्दा भक्ति नहीं है विश्वास कर मानना ही भक्ति है । जिसने विश्वास कर नहीं माना वह सिख ही नहीं है । श्रद्धावान सिख होता ही नहीं है ।
जब मन में विश्वास आ जाता है जो मन अंदर विश्वास कर माने तभी करनहारु इकु जो जान सकेगा , अर्थात हुक्म को जान सकेगा । नानक कह रहे हैं कि मैंने भी पहले परखा है फिर विश्वास किया है तभी यह सब कहा है ।
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