गुरु और गुर शब्द मेँ भेद गुरबाणी के अनुसार गुरु कौन हैँ

गुरबाणी के अनुसार शरीर धारण करने वाला चाहे कोई भी हो उसने निराकार की बराबरी नहीँ की जा सकती क्योंकि वह सर्वव्यापी सर्वशक्तिमान अर्जुनी अविनाशी आदि गुणोँ से संपन्न नहीँ होता गुरुवाणी की दृष्टि मेँ भेदभाव रहित सच स्वरुप विवेक बुद्धि दृष्टी है यह दृष्टि किसी भी झूठी ईमान बड़ाई को और उसके धर्म को और करने वाली दृष्टि नहीँ बल्कि यह हैँ उसकी अज्ञानता का नाश करते ज्ञान का प्रकाश करने वाली दृष्टि है वह लोग जिनको सतगुरु जी उपदेश कर रहे हैँ अनेक तरह की अज्ञानता के अंधकार मेँ भटक रहे दिखाई दे रहे हैँ वह आदमी को ही परमेश्वर जानकर उनकी पूजा कर रहे हैँ उनके  गुरु जो की अज्ञानता रुपी अंधकार मेँ ही डूबे हुए गुरु हैँ उंहोन्ने ही परमेश्वर की सत्ता को आदमी तक सीमित कर दिया है उपरोक्त शब्दोँ मेँ सतगुरु जी इसी अज्ञानता को अपने उपदेश के राही काट रहे हैँ उनका कहना है कि गुर भाव विष्णु गुर गोरख गोरखनाथ और गुर ब्रम्हा असल मेँ तो निराकार के ही नाम थे  पर बाद मेँ इनको मनुष्य के नाम के प्रथा के साथ जोड़ दिया  आने लग पड़ा पर हम यह देखते हैँ कि आदमी शरीर धारी होने के कारण ना तो अजूनी है ना ही अविनाशी है निराकार के आठ मूल गुण इसके अंदर नहीँ है इसलिए उपरोक्त तीन व्यक्ति ब्रम्हा विष्णु महेश निराकार की बराबरी नहीँ कर सकते पर कुछ ज्ञानवान होने के कारण यह आम जनता मेँ ए ज्यादा ज्ञानवान उतना ज्यादा ज्ञान होने के कारण उनको उपदेशक गुर कहा जा सकता है पर परमेश्वर नहीँ यहाँ एक  यह भी बात है के यहाँ पर गुरु जी शिव जी शिव का नाम जान बूझ कर नहीँ कर रहे क्योंकि इसके दो कारन  लग रहे हैँ पहले तो सतगुरु जी किसी भी शिव भक्त के साथ अगर चर्चा हुई है तो वह गोरख के चेले के साथ हुई हुई है जिसका हमेँ गुरबाणी से संकेत मिलता है दूसरा कारण यह है की इस पंक्ति मेँ सतगुरु जी पार्वती माँ का नाम भी लिखते हैँ हिंदू मत मेँ पार्वती को शिव की पत्नी के एवज मेँ ना समझ लिया जाए इसलिए हे गुरुजी इस जगह पर पार्वती के साथ शिव का कोई भी शब्द नहीँ लिख रहे या उंहोन्ने जान बूझकर किया है की  कहीँ उनके अर्थ करने मेँ अज्ञानता का शिकार ना हो जाए पर फिर भी टीकाकार ने इस बात को कम ही समझा नजर आता है भाभ के पार्वती को ब्रम्हा विष्णु और महेश और गोरख की माता के ए रुप मेँ गुरबाणी मेँ सबीकार  किया है पार्वती के अर्थ गुरमत के अनुसार ही विचार ने की जरुरत है इस बात को पूरी दुनिया के विद्वान मानते हैँ किसी भी भाषा को ठीक तरह से समझने के लिए और उसके व्याकरण का जानना अति ज़रुरी है पर गुरबाणी पर केवल व्याकरण का सहारा ही काफी नही हइस के लिए वेद् व्याकरण का जानकर होना भी अति ज़रुरी है वेद व्याकरण का अर्थ है के शब्दोँ का मूल मेँ अर्थ क्या है अब इस लिहाज से देखा जाए तो पार्वती के अर्थ हम विचार सकते है
(पार+बत+ई) जिसका भावार्थ यह है एके यह है कि जो मति पारदर्शी होवे ऐसी दृष्टि जो माया पर ना अटके बल्कि माया को चीरती हुई उसके दायरे को तोड़ती हुई हृदय को प्रकाशित करते हुए मेरा निराकारी  रुपी राम को देख ले ऐसी दृष्टि केवल गुरमत रुपी दृष्टि ही है गुरमत के अंदर मत को माता और संतोष को पिता माना गया है इसलिए यहाँ पर पार्वती माई के अर्थ पारदर्शी मत यानी माया से पार करने वाली बुद्धि के रुप मेँ किए गए हैँ अब उपरोक्त विचार की रोशनी है गुर गुरु गोरख  पार्वती माँ के अर्थ सतगुरु ने अपनी खोज के मुताबिक विष्णु गोरख और ब्रम्हा को एक ही मत के धरणी माना है इसलिए वह पार्वती माई को अपनी माता मानते हैँ  ऐसा कह दिया जाए कि वह किसी गुरमत  जा वेद बाणी को ही मानने वाले है। क्योंकि सिख धर्म  मत धर्म जा वेद धर्म जो की  मार्ग ध्रुव  नारद  प्रहलाद कबीर त्रिलोचन तभी से ही चला आ रहा है चाहे ब्रम्हा विष्णु महेश को इस बात का पूरा ज्ञान प्राप्त नहीँ हो सका और जितना भी ज्ञान उनको प्राप्त हुआ  उस ज्ञान के कारण ही ब्रम्हा विष्णु और गोरख के साथ गुर शब्द जुड़ा हुआ है ।।।

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