सृष्टि रचना का मूल और परमेश्वर की रचना क्या है।।
कीता पसाऊ एकोक वाओ।।तिस्ते होये लख दरिआओ।।कुदरत कवन कहा विचार।।वारिया न जावा एक वार।।
एकोक+एको+एक=केवल एक ही।।
इसका अर्थ यह है कि परमेश्वर ने यह सारी सृष्टि केवल एक हवा तत्व में से पैदा की है ते हवा में एस्से ही पसाऊ यानी पसीना यानी के नमी पैदा करके फिर उसको पानी का रुप ले कर जाने के लिए बादल के रूप में उसको वर्षा करवा कर पानी के रूप में ही पहले पैदा किया जिससे सृष्टि के ऊपर लाखों ही दरिआ और नदियां पैदा कर दी जिससे आगे समुंदर ने जन्म लिया गुरबानी का प्रमाण है
पहला पानी जियो है जित हरिया सब कोई।।पन्ना 472।।
इस प्रकार सृष्टि बन गई भाग के सृष्टि से पहले प्रभु परमेश्वर का प्रकट किया हुआ ज्ञान स्वरुप पवन यानी के हवा ही है यह बात गुरुवाणी के इन महावाक से स्पष्ट हो जाती है
साचे ते पवना पिया पवने ते जल होये।।
जल ते त्रिभवन साजिआ घट घट जोत स्मोए।।
अंत में है सतगुरु जी उसे सदा सलामत निरंकार की कुदरत को देखकर इस बात की अवस्था में पहुंचे उन हुए बोल रहे हैं कि हे परमेश्वर तुम्हारी शक्ति के ऊपर से मैं बार-बार कुर्बान जाता हूं मैं मैं अपना सब कुछ तुम्हारे लिए अर्पण कर दूं और तेरे हुकुम में रहने के इलावा और कोई भी काम मुझे अच्छा नहीं लगता।।
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