दसम ग्रन्थ में जाप साहिब की व्यख्या

चक्र चिहन और बर्न जात और पात नाहिंन जिह।।
रूप रंग और रेख भेख कोउ केहन न सकत किह।।

पहली पंक्ति का अर्थ यह है कि हे परमेश्वर ना तो तुम्हारा कोई चक्कर और बहन है और ना ही तुम्हारी कोई शरीर है और ना ही तुम्हारी कोई जात पात है जैसे हम मनुष्य लोगों की है तुम इन सब से न्यारे हो और न्यारे ही रहते हो।।
शोध कसम बादशाह का उपदेश है कि परमेश्वर का रूप और रंग इन आंखों से देखने से परे है और उसका रूप रंग बयान करना बहुत कठिन है क्योंकि संसार में इस जैसी कोई और चीज नहीं है जिसकी मिसाल दी जा सके प्रभु तुम्हारा सब रूप कैसा है जिसको कोई भी दुनिया का व्यक्ति कदम नहीं कर सकता अर्थात कोई भी बयान नहीं कर सकता।।

अचल मूरत अनुभव प्रकाश अमितोज कहिजे।।
कोट इंद्र इंद्रायण शाह शाहण गनिजे।।त्रिभवन महीप सुर नर असुर नेत नेत बण तृण कहत।।

अर्थात करोड़ों ही इंद्र जैसे राजे महाराज और शाह के साथ तीनो भवनो त्रेता द्वापिर और कलयुग के राजे एलारा जोगणियां सूरत अमोंग भी जीव और वनस्पति जैसे बड़े पेड़ घास के तिनके भी तुमको अनंत  ही बताते हैं।।

तव सरब नाम कथे कवन बरनत सुमत।।

अर्थात फिर भी वह परमेश्वर के सभी नाम कौन कह सकता है हम तो केवल तुम्हारे कर्म नामों का ही वह वह हमारी बुद्धि के मुताबिक करते हैं और वह भी अपनी अपनी भाषा में जैसे जैसे मुसलमान उसको रहीम करीम कहते हैं और हिंदू उसको परमेश्वर कहते हैं पर इन सब नामों से लगती है क्योंकि यह सब तो तुम्हारे गुणवाचक नाम है और वह भी हमारी बुद्धि नामों का कथन नहीं कर सकती

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