परमेश्वर खुदा की पूजा भगति इबादत क्या है।।
असंख जप असंख भाऊ।।असंख पूजा असंख तप ताओ।।असंख ग्रन्थ मुख वेद पाठ।।असंख जोग मन रहे उदास।।असंख भक्त गुण गियान विचार।।असंख सती असंख दातार।।
इससे पहले सतगुरु जी ने गुरसिख की अवस्था के बारे में जिक्र किया था जो कि गुरमत के अंदर का ज्ञान प्राप्त कर कर दरगाह में परवान हुआ है यह अवस्था उसको केवल इसलिए ही प्राप्त हुई है क्योंकि उसने गुरमत की भक्ति मार्ग अपना कर दरगाह में प्रमाणित भक्ति को अपनाया है नहीं तो संसार में कई प्रकार के मत बे पन्थ है।कई प्रकार के जपो को जपने वाले प्रकार के प्रेम श्रद्धा भाव से जप कर रहे हैं। अब यह असंख प्रकार के जाप का सिर्फ असंख ही लोग कर रहे रहे हैं जो के आसन कई के प्रकार की दिशाओं में इनके दिशानिर्देश करते। हैं यह ठीक है कि कुछ बातें सभी धर्मों में एक जैसी मिलती जुलती हो सकती हैं पर फिर वही सभी धर्म एक दूसरे के अंतर्विरोध ख्यालों को अपने अंदर समाए हुए हैं। यह प्कीरमेश्वर पूजा भी अपने अपने ढंग से अलग अलग ही होती है इसलिए यहां पर तप करने के तरीके भी अलग अलग हैं कुछ ऐसे तप हैं जिनमें अक्सर शरीर को तपाने तक ही सीमित रखा जाता है। यह भी बहुत ही पर्कार के है की तप हैं ।संसार में धर्म ग्रंथ भी इतने हैं कि उनकी गिनती करना संभव नहीं पर अगर किधर भी किसी भी ग्रंथ में कोई ब्रहम ज्ञान की बात हो तो उसको स्वीकार कर लेना और योग महत्त्व देना किसी भी प्रभु प्रेमी के लिए जो सच के मार्ग में चलना चाहता है अति जरूरी है।।
आगे गुरु साहिब फरमा रहे हैं कि इस संसार में परमेश्वर के साथ जुड़ने वालों की जा जो जुड़ना चाहते हैं उनकी गिनती भी इतनी ज्यादा है कि बताना मुश्किल है जो कि परमेश्वर के साथ जुड़ने के लिए माया के मोह से उदास रहने में लगे रहते हैं यहां तक की वह संसार में असंख प्रकार के भक्ति भी लोग कर रहे हैं जो के असल में एक ही प्रकार की है और वह है केवल परमेश्वर के गुणों की विचार करनी उन गुणों को गहराई से समझना और उन गुणों को अपने भीतर धारण करना ही प्रभु भक्ति है। क्योंकि किसी वस्तु या व्यक्ति को समझने के लिए उसके गुणों उसके अवगुणों का गहरा अध्ययन बहुत जरूरी है। उस व्यक्ति का असली रूप होता है यही गुरमत का मार्ग भक्ति मार्ग है और यही केवल एक ही विधि है जो आदि काल से सृष्टि पर रही है और केवल यह गुरमत बिधी ही भवसागर से उतरने की एकमात्र विधि है बाकी सभी धर्म केवल संतोष तक ले जाते हैं अर्थात माया से पार नहीं जाते और ना ही किसी के पास माया से पार का ज्ञान है बाकी सब प्रकार के किस भक्ति जब तक पूजा नमाज पढ़ना रोज रखना पाठ करना नेम और व्रत करना संसार में जीवो को माया में रखने वाले ही हैं ।असंख व्यक्ति भगत इस विधि गुरु ज्ञान विचार की विधि से भवसागर को पार कर चुके हैं वैसे तो संसार में सत्यवादी भी अनगिनत ही हैं और अब भी हैं जो के परमेश्वर की दात को अपनी समझ कर आगे और जीवो को बांट रहे हैं और अपने अंदर खुद दातार होने का भरम पाल रहे हैं
Comments
Post a Comment