सिद्ध गोस्ट में योग मत्त और सिख मत में फर्क
सिद्ध सबा कर आसन बैठे संत सबा जयकारो।।
तिस आगे रेहरास हमारी साचा अपर अपारो।।
मस्तक काट धरी तिस अग्गे तन मन आगे देओ।।
नानक संत मिले सच पाइए सहज भाये जस लियो।।
सारे ही सिद्ध इकठे हो गए और चर्चा करने के लिए अ गए और सब सअपने संतों की जय कार करकर अपनी जगह पर बैठ गए सतगुरु जी ने अपरंपार परमेश्वर आगे अरदास की और सहयोग नहीं किया यह बात यहां पर स्पष्ट है सतगुरु जी करता पुरख के इलावा किसी भी व्यक्ति को अवतार मानने वाले नहीं है और ना ही वह इन जोगियों के ढेंग से प्रभावित होकर इनको संत थे मानने के लिए तैयार है इसलिए गुरु नानक जी ने अकाल पुरुष के आगे अरदास कर कर उनसे अपना विरोधाभास प्रकट किया है वह तो उस अपरंपार परमेश्वर की ही बढ़ाई करते हैं उस परमेश्वर ने योगियों और सिद्धों को भी जन्म देकर अपने हुकुम में बांधा हुआ है कहने से भाग यह है कि गुरमत और योग मत का जयकारा अलग-अलग है जिस पर असर गोश्टी के आरंभ होने से पहले ही कुछ चर्चा चढ़ने का आभास अगली वो पंक्तियों के द्वारा मालूम होता है जोग मत सच के मार्ग से भटक चुका था और सच्चे मार्ग से भटका हुआ रिद्धि-सिद्धि से जुड़ा हुआ होता है सच तो हर हृदय में मौजूद होता है पर सच की प्राप्ति हमेशा अंदर से ही हुआ करती है इसलिए गुरमत ने भी सच को अपने अंदर से ही खोजने की बात की है पर जो लोग अपने हृदय में खोजने की बजाए इस पांच तत्वों के शरीर में ही अपना वजूद मान लेते हैं वह माया के साथ जुड़कर दिशाहीन होकर सच को बाहर जंगलों और पहाड़ो में जा कर जा तीर्थों पर जाकर ढूंढते रहते हैं। और जोगी भी इसी तरह सच की प्राप्ति मे लगे हुए हैं। अब हमें गुरमत और योग मत के बीच में अंतर स्पष्ट दिखाई दे रहा है इस प्रकार अगर सतगुरु जी योगियो की मत के जयकारे से समर्थन कर देते तो गोश्टी का मंतव ही नहीं रहता । क्योंकि गुरु नानक देव जी और सिद्धू की सोच में कोई फिर अंतर ही नहीं रहना था दूसरी बात यह भी की सच्ची मत का धारनी कच्ची मत की किसी भी बात को परवान कर सकता है यह भी सत्य बात हो जानी थी सिद्ध केवल एक वेशभूषा का नाम ही था दूसरी बात यह है सिद्ध उस समय केवल शरीर के साथ ही जुड़े हुए थे जो के व्यक्ति पूजा में भी विश्वास करते थे और संत सभा की जयकार कहने का अर्थ ही परमेश्वर के हुकुम के खिलाफ बगावत ही है ।जो पिछले सभी टीकाकारों ने इस बात को नहीं जाना सतगुरु जी मैं उन के जयकारे के साथ विरोध क्यों प्रकट किया यह हमें आगे की पंक्तियो से स्पष्ट होता है।।
मस्तक काट धरि तिस आगे तन मन आगे देओ।।नानक संत मिले सच पाइए सहज भाये जस लियो।।
यहां पर ऐसे लगता है कि संत सभा की जय ना बोलने के कारण सिद्धू के द्वारा उठाए गए किसी सवाल के उत्तर में सतगुरु जी इस पंक्ति सिद्धों ने इस व्यक्ति की आड़ में अपने आप को ही परमेश्वर मानने का ब्रहम पाल रखा था वह तो अपने आप को ही साक्षात ब्रहमा कहला कर ही दम लेंगे। है और इसकी प्रोक्ता के लिए उन्होंने भक्तों की वाणी को अपना गवाह बना लिया था जिसके जिसके और गुरु नानक से भी उसको सही परवान कर लेने के लिए सवाल किया।
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