गुरु कौन है।।।

गुरमत के हिसाब से हुकम ही गुरु है। गुरबाणी ज्ञान गुरु है । १० सतगुर साहिबान में से किसी ने भी खुद को गुरु नहीं कहलवाया । उन्हें तो भगत ,  दास, दासन दास कहलवाने में ख़ुशी होती थी । दसम पातिशाह ने तो ऐलान किया था कि

"जो हम को परमेश्वर उचरि है ॥ ते सभ नरकि कुण्ड महि परि है ॥

मैं हो परम पुरख को दासा ॥ देखनि आयो जगत तमाशा ॥ पन्ना ३२

  इस सब के बावजूद भी अगर हम उन्हें गुरु कहें, तो ये हमारी मुर्खता ही मानी जाएगी । आज कल के खुद को संत, गुरु , ब्रह्मज्ञानी कहलवाने वाले ढोंगी और पाखंडियों को जब गुरमत ज्ञान के तराजू में तोला जाता है तो उनका पलड़ा खाली निकलता है | गुरमत की कसौटी पर वो कहीं पर भी खरे नहीं उतरते परन्तु वो खुद को श्री श्री १००८, संत महापुरख , ब्रह्मज्ञानी और पता नहीं कितनी ही उपाधियों से प्रमाणित करते हैं और बोर्डो और इश्तिहारों में लिखवाते हैं ।

लोगों को अपने भ्रम जाल में फ़साने के लिए खुद को किसी भी कीमत पर कम नहीं आंकते । दरगाह (सचखंड) में वो सभी पंच परवान माने जाते हैं जिनके पास १ जैसा ब्रह्मगिआन और ध्यान हो परन्तु इन पाखंडियों का सब का गिआन भी अलग अलग है और ध्यान भी माया इकट्ठी करने के अलग अलग तरीकों में है |
- धरम सिंघ निहंग सिंघ

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