मुक्ति का मार्ग क्या है।।
साच शब्द बिन मुक्त न कोई केमहावक अनुसार पूरे गुरू उपदेश जनि साच शब्द के बिना मुक्ति की प्राप्ति हो जाये इस सम्भव नहीं है गुरमत का मार्ग ज्ञान का मार्ग है। इस में गुरु नानक जोगिओ के मुखी को कह रहे है की।। शब्दे का निबेड़ा तू सुन आउँदो बिन नावे जोग न होई।।। जयसे भाव यह है की इस साडी चर्चा की समाप्ति हम इस बात पर करते है की आत्म ज्ञान की बिना परमेश्वर से मिलाप होना सम्भह नहीं है।।नाम जनि की ज्ञान की प्राप्ति पूरे गुरु के उपदेश जनि साच शब्द के बिना और किसी भी तरीके से नहीं हो सकती है।।
साच शब्द बिन मुकत न कोई।।
इस पंक्ति के अनुसार सतगुरु जी ने साच शब्द के बिना मुक्ति क8 परापति हो जाना सम्भव नहीं मन है।। असल में तो असल में तो मुक्ति की प्राप्ति के लिए ब्रम्ह ज्ञान की जिस के हृदय में पूर्ण ज्ञान का वास नहीं हुआ है वह हरदा अभी सच्चे ज्ञान के बिना ही है अगर सिर्फ गुरबानी पढ़ने या सुनने से ही सोने से ही मुक्ति प्राप्त हो जाए ऐसा गुरबानी नहीं मानती इसीलिए गुरबाणी कहती है।
बिन नावे जोग न होई।।
इसलिए यह सतगुरु जी ने जोगियों से बैठा है की संसार उनमें से अपने आप को किस तरीके से अलग किया जाए ताकि फिर से यह जीव परमेश्वर में लीन हो जाए है और माया में से किस प्रकार यह जीव अलग होगा क्योंकि सच्चा जीवन तो सास के बिना प्राप्त नहीं हो सकता आसमां यार आप ईमेल तो ब्रम्ह ज्ञान के बिना अधूरी ही नहीं जा सकती अर्थात किस तरीके से आप अपने मन को उल्टा कर परमेश्वर के साथ जोड़ेंगे ब्रहम ज्ञान की दुनिया में यह एक आम धारणा बनी रहती है कि दुनिया से मुड़कर ही परमेश्वर के साथ जुड़ा जा सकता है और इसी धारणा का कथन जोगी भी करते हैं किसी धार ना तो कथन करना और उस को मान लेना यह दोनों अलग बातें हैं गुरबाणी इसलिए कहती है
क्या पढ़िए क्या गुणिये।। क्या वेद पुराना सुनिए।।पढे सुने क्या होई।। जो सहज न मिलियो सोई।।
कहने का भाव अर्थ यह है कि जुबान से तो जोगी भी गुरमत की ही बातें बोलते रहते थे पर असल में वह गुरबाणी की धारणा से उस दिशा की ओर जा रहे थे इसलिए सत्य गुरु जी ने गुरमत की इस धारणा के अनुसार योग केसे गोष्टी करने का एक प्रोग्राम बनाया है आप लोगों को अपने ज्ञान के द्वारा बड़े ही 100 के ढंग से गलत और जाता हुआ सिद्ध कर दिया इसलिए अब जोगियों के पास जा तो जिंदा नाम से खून कहो ना दे रजा फिर गुरबाणी के ज्ञान को मान लेना दोनों में से एक को ही मांगना था इस संसार से पलटकर परमेश्वर की प्राप्ति तो योगी भी मानते थे इसीलिए है वह साथ गुरु गुरु नानक देव जी से मुफ्ती के बारे में पूछ रहे हैं कि आप किस तरीके से संसार में से अपने मन को अलग कर लेने के दावे करते हो
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