गुरबानी ने पथर पूजा और पाखंड वाद पर प्रहार कैसे किया है ।
अकाल उसतति 005 भाग २
बीर अपार बडे बरिआर अबिचारहि सार की धार भछ्या ॥
तोरत देस मलिंद मवासन माते गजान के मान मल्या ॥
अपार बल वाले सूरमा हों, बड़ी जोर से गर्जन करने वाले सूरमा हों, एक से बढ़कर एक सूरमा हों, सामने से आने वाले वारों को झेल कर आगे ही बढ़ने वाले हों,
बड़े बड़े देशों के राजाओं के अहंकार का नाश कर देने वाले हों ।
बड़े सूरमाओं को हाथी ही माना जाता था । एक प्रकार से राज का स्तम्भ माना जाता था । ऐसे हाथिओं के समान मस्त सूरमाओं का अहंकार तोड़ने वाले हों,
गाड़्हे गड़्हान को तोड़नहार सु बातन हीं चक चार लव्या ॥
साहिबु स्री सभ को सिरनाइक जाचक अनेक सु एक दिव्या ॥६॥२६॥
बहुत मजबूत किलों को तोड़ देने वाले, बातों से ही जीत लेने वाले, वार्तालाप द्वारा ही जीत लेने वाले हों, अपनी बातों द्वारा ही दूसरों को भयभीत कर देने वाले हों, अपनी बातों द्वारा ही दूसरों को अपने अधीन कर लेने वाले हों ।
परमेश्वर सभी का मालिक है, उसका हुक्म पूरी सृष्टि पर चलता है, देने वाला वह अकेला है और मांगने वाले अनेकों ही हैं । बड़े बड़े राजा भी उसके ही सामने मांगने वाले हैं । राजा स्वम् किसी को देने वाला नहीं है, देने वाला परमेश्वर ही है राजा तो केवल एक जरिया है ।
ददा दाता ऐकु है सभ कउ देवनहार ।। ( आदि ग्रन्थ )
चाहे कोई कितना ही बड़ा राजा क्यों ना हो कितना भी बड़ा सूरमा ही क्यों न हो लेकिन परमेश्वर के सामने वह केवल याचक ही है भिखारी ही है ।
दानव देव फनिंद निसाचर भूत भवि्ख भवान जपैंगे ॥
जीव जिते जल मै थल मै पल ही पल मै सभ थाप थपैंगे ॥
दानव- जो देवताओं के धर्म को ना मानता हो, अंतरात्मा का विरोधी, जो अंतरात्मा की बात ही ना सुने।
देव- अंतरात्मा को ही देव कहा गया है ।
फनिंद- बिगड़ा हुआ, मनमुख, साकत, झूठ का जानबूझ कर प्रचार करने वाला, सच को जानते हुए भी झूठ का प्रचार कर लोगो को माया में फंसाने वाला, जैसे सांप हमेशा अँधेरा ही चाहता है क्योंकि रौशनी में उसे खतरा होता है वैसे ही ये लोग भी अँधेरा अज्ञानता ही चाहते हैं ।
निसाचर- थोड़ा बहुत ज्ञान देने वाला, पूरा ज्ञान भले ही न हो लेकिन जितना अपने पास होता है उतना ज्ञान दुसरो को देने वाले, सूर्य के समान
ऐसे लोग हुए हैं और आगे भी होते ही रहेंगे, इन सभी को समझना है, जो पहले हुए पाखंडी संत हैं उन्हें समझकर ही उनके चेलों की समझ आएगी । अन्यथा आज जो संत बने हुए हैं उनका ज्ञान कैसे होगा कि कौन खरा है और कौन खोटा है । पहले को पाखंडी संत करते आये हैं भविष्य में इनके चेले भी यही कुछ करेंगे । इसलिए इन्हें समझना चाहिए ।
पल पल, जल और थल में जितने भी जीव हैं वे पैदा भी हो रहे हैं और मर भी रहे हैं । कौन है जो यह सब कर रहा है जो यह समझ लेगा वही सिख है ।
पुंन प्रतापन बाढ जैत धुन पापन के बहु पुंज खपैंगे ॥
साध समूह प्रसंन फिरैं जग सत्र सभै अवलोक चपैंगे ॥७॥२७॥
पुण्य – हुक्म में चलना, हुक्म को ख़ुशी से स्वीकार करना ही पुण्य है । इसी पुण्य के प्रताप से, पुण्य के बढ़ने से विकार कमजोर होने लगते हैं ।
पाप – हुक्म का विरोध ही पाप है ।
पुण्य के प्रताप से पाप छूट जाता है । उसे समझ आ जाती है कि जो करता है परमेश्वर करता है ।
साध समूह – गुरमुख, गुरमत को मानने वाले, हुक्म में चलने वाले
साध समूह जग में प्रसन्न रहेंगे चाहे उन्हें कोई पूछे या न पूछे, वे चाहे अकेले ही हों, उनके पास भले ही संसारी संपत्ति ना हो लेकिन वे प्रसन्न ही रहेंगे । उन्हें शत्रु मानने वाले, उनके प्रचार से ईर्ष्या करने वाले, जो गुरमत के विरोधी हैं उनका नाश हो जाएगा । सच का विरोध करने वालों का कुछ नहीं बचेगा ।
मानव इंद्र गजिंद्र नराधप जौन त्रिलोक को राज करैंगे ॥
कोटि इसनान गजादिक दान अनेक सुअमबर साज बरैंगे ॥
मानव- आदमी
गजिंद्र- इंद्र से भी बड़ा, इंद्र को भी जीत लेने वाले, अहंकारी
नराधप- कुबेर
मानव इंद्र गजिंद्र नराधप जो तीनों लोकों पर राज करने वाले हैं । जल में रहने वाला जीव अन्य छोटे जीवों को खा जाता है वह उसका राज ही है । उसी प्रकार आदमी ने भी समुद्रों पहाड़ों और धरती की संपत्ति को अपना मान रखा है । इन सभी से निकलने वाली खनिज सम्पदा का मालिक वही है जिसका उस क्षेत्र पर राज है । इस प्रकार वे इन तीनों लोकों पर अपना राज करते हैं ।
करोंड़ों स्नान करने वाले हैं, करोड़ों गज आदिक दान करने वाले हैं सोना हाथी आदि दान देने वाले हैं, अनेकों स्वम्वरों में वरने वाले हैं स्वम्वरों को जीतने वाले हैं ।
ब्रहम महेसर बिसन सचीपित अंत फसे जम फासि परैंगे ॥
जे नर स्री पति के प्रस हैं पग ते नर फेर न देह धरैंगे ॥८॥२८॥
ब्रह्मा महेश विष्णु, इंद्र आदि (संसारी राजा) सभी जम के फास में हैं अर्थात सभी जन्म मरण में हैं । यदि कोई इनसे जुड़ा हुआ है वह भी जन्म मरण में ही रहेगा । इन्हें छोड़ यदि कोई हुक्म से जुड़ गया, जो अंतरात्मा से जुड़ गया वह नर फिर देह धारण नहीं करेगा । वह मुक्त हो जाएगा ।
कहा भयो जो दोउ लोचन मूंद कै बैठि रहिओ बक धिआन लगाइओ ॥
न्हात फिरिओ लीए सात समुद्रनि लोक गयो परलोक गवाइओ ॥
क्या हो गया यदि तू दोनों आँखे बंद कर बैठ गया और बगुले के समान समाधि लगाकर बैठा हो, नदियों में स्नान छोड़ो सभी नदियाँ समुद्रों में चली जाती है सातों समुद्रों में ही नहा लिया हो फिर भी इससे कोई फर्क नहीं पड़ता इससे कुछ प्राप्ति नहीं है बल्कि लोक परलोक दोनों गँवाये जाते हैं । इनका कोई लाभ नहीं है ।
बास कीओ बिखिआन सो बैठ कै ऐसे ही ऐसे सु बैस बिताइओ ॥
साचु कहों सुन लेहु सभै जिन प्रेम कीओ तिन ही प्रभ पाइओ ॥९॥२९॥
जब बैठता है माया की बाते करता है और ऐसे ही सारी जिन्दगी बिता दी । माया से बचने की बात ही नहीं करता बस करता है तो केवल लोभ की, माया की
सच कह रहा हूँ सभी सुन लो जिसने प्रेम किया है उसी ने प्रभ-मूल पाया है । झूठे पाखंडियों ने प्रेम पैदा किया अपने से जबकि अंतरात्मा से प्रेम करने के लिए कहना था । अंतरात्मा को प्रेम करने से ही चित-मन की एकता होती है । लेकिन इन्होने लोगों को अपने स्वार्थ के लिए अपने से जोड़ लिया । बाहर किसी से जुड़ने से प्रभ नहीं मिलता अपनी अंतरात्मा से प्रेम करने से ही प्रभ मिलता है ।
काहू लै पाहन पूज धरयो सिर काहू लै लिंग गरे लटकाइओ ॥
काहू लखिओ हरि अवाची दिसा महि काहू पछाह को सीसु निवाइओ ॥
कोई पत्थर रख उसकी पूजा करने लगा, पत्थर को शिवलिंग बना कर उसकी पूजा करने लगा, किसी ने पत्थर को चांदी में मढ़कर गले में (प्रतीक के रूप में ) लटका लिया,
हिन्दू कहते हैं कि वह दक्षिण दिशा में है मुस्लिम कहते हैं कि वह पश्चिम में है कोई आगे को शीश झुका रहा है कोई पीछे को अर्थात को पश्चिम की तरफ शीश झुका सजदा कर रहा है ।
दखन देसि हरि का बासा पछिमि अलह मुकामा ।।
दिल महि खोजि दिलै दिलि खोजहु ऐही ठऊर मुकामा ।। (आदि ग्रन्थ)
कोई कहता है कि वह दक्षिण में है कोई कहता है कि वह पश्चिम में है लेकिन हरि ह्रदय में है ।
कोउ बुतान को पूजत है पसु कोउ म्रितान को पूजन धाइओ ॥
कूर क्रिआ उरिझओ सभ ही जग स्री भगवान को भेदु न पाइओ ॥१०॥३०॥
कोई पशु बुत को पूजता है कोई मरे हुओं को पूजता है । पशु शब्द बुद्धिहीन के लिए प्रयोग किया गया है । पत्थर बुत पूजने से अच्छा है किसी पशु की ही सेवा कर ली जाए ।
यह सारी कूर क्रिआ ही है । सारा जग इसी में उलझा हुआ है । धरम का काम चाहे कोई भी करता है चाहे कोई माला फेरता हो चाहे कोई लंगर चला रहा है चाहे कोई वाहेगुरु वाहेगुरु कर रहा है चाहे कोई कीर्तन दरबार लगा रहा है लेकिन यदि स्री भगवान का भेद नहीं पाया तो उसके द्वारा किया सब कुछ व्यर्थ ही है । जिस क्रिया द्वारा स्री भगवान का भेद पाया जा सकता है उसे छोड़ अन्य सब कुछ कूर क्रिआ ही है । गुरबानी की विचार द्वारा ही स्री भगवान का भेद पता चलता है । स्री भगवान कौन है कैसा है कहाँ रहता है इन सभी सवालों के जवाब गुरबानी में हैं । गुरबानी को समझकर इनके जवाब मिल जाते हैं ।
गुरबानी को खोजना समझना है बार बार पढ़ना नहीं है । लगातार 100-1000 पाठ करना, मूलमंत्र का पाठ करना यह सब पाखंडियों का धंधा है । पंडित की तरह सिक्खों ने भी इसे अपना धंधा बना लिया । इसे आमदनी का साधन बना लिया । जब धर्म आमदनी का साधन बन जाए फिर वह धर्म नहीं रहता धंधा बन जाता है ।
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