क्या रिद्धि सिद्धि होती है ।।।
रिध सिद्ध जा को फुरि तब काहू सेऊ क्या काज।। गुरु ग्रन्थ साहिब पेज 1103।।
सारी बात का नतीजा यह निकलता है कि सतगुरु जी को गुरमत भक्तों की वाणी की अगवाई और ठीक की पहचान करने के लिए ए जोगियों को कह रहे हैं जिस को स्वीकार करना जोगियों की मजबूरी थी वाक्यों के भगत वाणी को जोगी पढ़ते और विचार से तो चाहे नहीं थे पर इस से इनकार मी भी नहीं हो सकते थे क्योंकि भगत बाणी की सच्चाई और इसके बीच का ब्रहम ज्ञानी लोगों के दिलों पर अपना एक गहरा असर रखता था जिसको ब्राह्मण और योगी तोड़-मरोड़ कर पेश तो करते रहते थे पर इसको कभी गलत मानने की एज गलत कहने की हिम्मत नहीं की जैसे के अब भी बहुत से लोग ऐसा ही करने में गतिशील हैं वह गुरबानी में से कुछ ऐसी पंक्तियां ले कर उनको अपने ही अर्थ तोड़ मरोड़ कर देते हैं इस प्रकार आम जनता को गुरमत अर्थार्थ गुरबाणी का ज्ञान ना होने के कारण वह अपनी विचारधारा कोर्रही गुरमत का सही उपदेश प्रचारिणी में लगे हुए हैं गुरमत अर्थात गुरबानी को साथ में लेकर चलना उनकी इसलिए मजबूरी है क्योंकि कोई भी ग्रंथ इतना विश्वसनीय नहीं माना जाता जितना के गुरबाणी दुनिया मानती है बाकी धर्मों के सभी ग्रंथ विज्ञान की कसौटी पर भी सही नहीं उतरते।
किया भवइए सच सूचा होये।।
साच शब्द बिन मुक्त न कोई।।
इस महाबाक के अनुसार जब तक तुमको सार शब्द अर्थात पूरा ब्रम्हज्ञान प्राप्त नहीं हो जाता अर्थात कोई पूरा ब्रहम ज्ञानी तुम्हें यह ज्ञान प्राप्त नहीं हो जाता तब तक जिम की मुक्ति संसार में से संभव नहीं गुरबाणी का मार्ग ज्ञान का मार्ग है इसी गोष्टी के अंतिम चरण में सत गुरु गुरु नानक देव जी योगियों के मुखी को कह रहे हैं
शब्दे का निबेड़ा सुण तू ओहूदु बिन नावे जोग न होई।।
इसका अर्थ यह है कि इस सारी चर्चा में हम यह बात ही करते हैं की आतम ज्ञान के बिना परमेश्वर खुदा से मिलाप हो जाना संभव ही नहीं नाम अर्थात ज्ञान उ की प्राप्ति पूरे गुरु के उपदेश अर्थात साच शब्द के बिना और किसी भी तरीके से के साथ नहीं हो सकती।।
साच शब्द बिन मुक्त न कोई।।
सतगुरु जी ने साच शब्द के बिना मुक्ति की प्राप्ति हो जाना इसलिए असंभव कहां है असल में तो मुक्ति की प्राप्ति ही ब्रह्म ज्ञान की जरूरत है और सार शब्द में ब्रम्ह ज्ञान की प्राप्ति कोई भी जीव लेने में असफल हो जाए तो मुक्ति संभव नहीं इस पंक्ति में विंन शब्द अत्यंत महत्वपूर्ण है इसका अर्थ यह है कि जिस हृदय में गुरु शब्द का वासा नहीं हो जाता वह सारे ही जीव सार शब्द के बिना ही जी रहे हैं अगर सिर्फ गुरुबानी पढ़ने या सुनने से ही मुक्ति प्राप्त हो जाए जो के गुरबाणी नहीं मानती इसलिए योगियों से चर्चा में सतगुरु जी बिन शब्दे योग न हुई कहकर चर्चा को समाप्त कर रहे हैं इसलिए सतगुरु जी ने योगियों को पूछा है कि संसार में से किस प्रकार अपनी सुरुती को छोड़ दिया जाए कि वह फिर परमेश्वर में दोबारा लीन हो जाए माया में से कैसे जीव अपने आप को अलग कर लें kyon ki सच तो सत्य के बिना प्राप्त नहीं हो सकती इस प्रकार माया रुपी मेल तो ब्रम्हज्ञान अर्थात साच शब्द के बिना निकाली नहीं जा सकती अब इस साच शब्द की प्राप्ति के लिए मन को कौन सी विधि अपनानी होगी अर्थात किस प्रकार से यह फिर मैं परमेश्वर में लीन हो जाए ब्रहम ज्ञान की दुनिया में यह आम धारणा रहती है के संसार में पलट कर ही परमेश्वर के साथ जुड़ा जा सकता है इसी धारणा का कथन योगी भी कर रहे हैं किसी धारणा को कथन करना और उस को धारण कर लेना अलग-अलग बाते हैं यही अलग-अलग बात ब्रहम ज्ञानी और ब्रहम ज्ञानी में होती है कहने का तात्पर्य यह है के जोगी भी जवानी कलाम नीचे गुरमत की ही बातें बोलते हैं और उनको ठीक भी मांगते थे उन पर चमड़ी रूप में वह गुरबाणी की धारणा से उठ में जा रहे थे इसलिए सतगुरु जी ने गुरमत की इस धारणा के फैसले के अनुसार जोगियों से गोष्टी का प्रोग्राम बना लिया जिस प्रकार गुरु नानक देव जी ने योगियों को बड़े ही सरल तरीके से गलत रुख की ओर जाता हुआ साबित किया अब लोगों को जाता गुरबाणी को मान लेने में ही भलाई थी जो उनको अपना रास्ता सही साबित करना पड़ता संसार से पलटकर परमेश्वर की प्राप्ति की धारणा को योगी मानते थे इसलिए वह गुरु नानक देव जी से पूछ रहे हैं कि मुक्ति प्राप्ति करने के लिए आप संसार में किस तरीके से अपने मन को पलटकर सिद्धि प्राप्त कर लेने के राय करते हो गुरु नानक देव जी ने पूछा है कि क्या घर बार त्याग देना जंगलों में फिरते रहना ही आप परमेश्वर की तरफ मुड़ जाने के लिए काफी समझते हो क्या खाली तीर्थों पर घूमना-फिरना ही इस संसार में से मोह माया को उठा देगा जबकी सच की प्राप्ति के हृदय की शुद्धि के बिना नहीं हो सकती और जब तक हिंदू शब्द ना हो इसमें ब्रम्हज्ञान प्रगट नहीं हो सकता है और
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