गुरबानी किसी व्यक्ति को संत नहीं मानती

अकाल उसतति 005 भाग १

त्वप्रसादि ॥ स्वये ॥

स्रावग सु्ध समूह सिधान के देखि फिरिओ घर जोग जती के ॥
सूर सुरारदन सु्ध सुधादिक संत समूह अनेक मती के ॥

यहाँ दशम पातशाह अपनी बात कर रहे हैं, वे कह रहे हैं कि हमने बौधिओं के मठों पर जाकर देखा है कि वे क्या करते हैं, जोगी जतियों के पास भी जाकर देख लिया है।
बड़े बड़े जो धार्मिक सूरमा है उन्हें भी देखा है, कुछ ऐसे भी है जो हर बार नया चुल्हा बनाकर भोजन पकाकर खाने वाले हैं, जमीन खोदकर वहां चुल्हा बनाते है उनका मानना है कि ऐसे शुद्ध जमीन निकल आती है फिर वह भोजन पकाकर खाते हैं, एक चुल्हे पर एक चीज़ ही पकाते थे, एक बार इस्तेमाल करने के बाद पुन : उस चुल्हे को इस्तेमाल नहीं करते थे इस प्रकार की क्रिया द्वारा पके भोजन को शुद्ध मानते हैं । वे भी अपने आप को संत ही कहते हैं । ऐसे कई तरह के संतों के समूह देखे हैं जिनकी मान्यता अलग अलग है । जिनकी मत मान्यता अलग अलग हो वे सभी मनमुख होते हैं। जिनकी मत एक हो वे भक्त कहलाते हैं ।

सारे ही देस को देखि रहिओ मत कोऊ न देखीअत प्रानपती के ॥
स्री भगवान की भाइ क्रिपा हू ते एक रती बिनु एक रती के ॥१॥२१॥

सारे ही देश को देख लिया लेकिन किसी के पास भी प्रानपति की मत नहीं है । प्रानपति उसे कहा गया है जो हमारे अंदर सांस ले रहा है । अंतरात्मा को प्रानपति कहा गया है या फिर उसे जिसके हुक्म में वह है । हमारे अंदर जो सांस ले रहा है वह हुक्म में चलने वाला है जब तक उसे श्वास लेने का हुक्म है वह श्वास लेता है जब उसे श्वास बंद कर देने का हुक्म हो गया तब वह श्वास लेना बंद कर देता है , इसी को चित, प्रभ, भगवान कहा गया है । अंतरात्मा ने सच का त्याग नहीं किया माया से लिप्त नहीं हुआ । मन अभागा है, मन हुक्म का विरोधी है, माया से लिप्त होकर मन झूठा हो गया । जो माया से लिप्त ही आये और माया से लिप्त ही मर जाए वह अभागा है । जाने से पहले पहले माया का त्याग आवश्यक है ।
कहीं भी प्रानपति की मत नहीं है । और कोई मानता भी नहीं है कि उनके पास यह मत नहीं है ।
भगवान-अंतरात्मा
जब तक श्री भगवान् की कृपा नहीं होती तब तक ये सब एक कौड़ी के बराबर भी नहीं हैं । गुरमत के रंग बिना ये कौड़ी के बराबर भी नहीं हैं ।
जोगी सरेवड़े सिद्ध संत सभी स्वम् को हिन्दू मानते हैं लेकिन मत सभी की अलग अलग है । जहाँ सभी की मत उनकी मर्जी की हो वह मनमत बन जाती है । गुरमत में अपनी मत मानने की इज्जाजत नहीं है ।

माते मतंग जरे जर संग अनूप उतंग सुरंग सवारे ॥
कोट तुरंग कुरंग से कूदत पउन के गउन कउ जात निवारे ॥

माते – मस्त मतंग – हाथी
यहाँ किसी राजा की बात हो रही है जिसके पास मस्त हाथी हैं जो कि सोने की पालकियों द्वारा शिंगारे हुए, अनूप रूप वाले, अनेक प्रकार के रंगों के सँवारे हुए ऊँचे ऊँचे हाथी हैं ,
करोड़ों ही घोड़े हैं जिनकी चल मृग के समान है, जो हवा से तेज़ रफ़्तार से दौड़ने वाले हैं, पवन के झोंकों को पछाड़ देने वाले घोड़े हैं ।

भारी भुजान के भूप भली बिधि निआवत सीस न जात बिचारे ॥
एते भए तु कहा भए भूपति अंत कौ नांगे ही पांइ पधारे ॥२॥२२॥

कोई ऐसा राजा हो जिसके सामने बड़े बड़े बाहुबली राजा भी विधिवत आकर सर झुकाते हों । यदि किसी के पास यह सब कुछ हो या यदि कोई ऐसा राजा हो तब भी ऐसा बड़ा राजा होना कोई बड़ी बात नहीं है । पहले तो ऐसा राजा होना ही मुश्किल है यदि ऐसा राजा कोई बन भी गया तब भी अंत समय (अर्थी पर ) वह नंगे पाँव ही जाता है ।

जीत फिरै सभ देस दिसान को बाजत ढोल म्रिदंग नगारे ॥
गुंजत गूड़ गजान के सुंदर हिंसत हैं हयराज हजारे ॥

यहाँ किसी अन्य राजा की बात की जा रही है । बड़े बड़े चर्कवर्ती राजा जो संसार को जीतने निकले, जहाँ जहाँ जाते हैं वहां वहां सभी दुसरे राजा या तो उसे अपना राजा स्वीकार करते हैं या फिर उन्हें उससे युद्ध करना पड़ता था । यदि कोई ऐसा राजा हो ।
उसकी सेना में मस्त हाथी झूलते हों , और हयराज जैसे हजारों घोड़े घुमते हों । हयराज घोड़ा (ऐसा घोड़ा जो सफ़ेद हो लेकिन जिसके कान काले हों, वह घोड़ा जिसके पास हो वह चकवर्ती राजा है, पुराणों में ऐसा माना गया है )

भूत भवि्ख भवान के भूपत कउनु गनै नहीं जात बिचारे ॥
स्री पति स्री भगवान भजे बिनु अंत कउ अंत के धाम सिधारे ॥३॥२३॥

ऐसे राजा हो चुके हैं, अभी भी हैं और होते भी रहेंगे, इनकी कोई गिनती नही की जा सकती, लेकिन बाद में इन्हें कोई नहीं पूछता । यदि स्री पति स्री भगवान भजे बिन अर्थात यदि मूल से एक नहीं हुआ तो अंत में वह यम ने धाम ही जाएगा । चाहे कितना भी बड़ा राजा क्यों न हो वह जन्म मरण में ही रह जाता है । अपने मूल से जुड़कर ही अंत विहीन हुआ जा सकता है । मूल से जुड़कर ही अविनाशी राज की प्राप्ति होती है ।

तीरथ नान दइआ दम दान सु संजम नेम अनेक बिसेखै ॥
बेद पुरान कतेब कुरान जमीन जमान सबान के पेखै ॥

विशेष तीरथ यात्रा करने वाले या ख़ास तीर्थों पर नहाने वाले , दया करने वाले , रुपया पैसा दान देने वाले या विधिवत अनेक प्रकार के धार्मिक कर्मकांड करने वाले ,
वेद पुराण कुरान पढने वाले, भूमि दान करने वाले सभी देख लिए ।।।।।जमाने में (संसार में )इन सभी को देखा है ।।।।।

पउन अहार जती जत धार सबै सु बिचार हजारक देखै ॥
स्री भगवान भजे बिनु भूपति एक रती बिनु एक न लेखै ॥४॥२४॥

जो पवनाहारी है, जो जत धारण करने वाले हैं ऐसे एक नहीं हजारों ही देखे हैं , सभी के साथ विचार विमर्श कर देखा है, सभी को टटोल कर देखा है । ये लोग अंतरात्मा से जुड़े नहीं हुए । इनके मन चित की एकता नहीं है । स्री भगवान भजे बिन प्राप्ति कुछ भी नहीं है । जो रिद्धि सिद्धि की या किसी शक्ति की प्राप्ति की बात करते हैं वे लोग झूठ बोलते हैं ।
यदि कोई अंतरात्मा से जुड़ा हुआ नहीं है यदि मन चित एक नहीं है उसका सब कुछ किया धरा व्यर्थ ही चला गया । उनकी सारी जिन्दगी की भक्ति निष्फल चली गयी । जिसके अंदर से विकार ख़त्म नहीं हुए उसकी भक्ति किसी काम की नहीं होती । उसकी प्राप्ति कुछ भी नहीं है । स्वाभाव में तबदीली ही प्राप्ति है ।

सु्ध सिपाह दुरंत दुबाह सु साज सनाह दुरजान दलैंगे ॥
भारी गुमान भरे मन मैं कर परबत पंख हले न हलैंगे ॥

यदि किसी के पास पूरी वफादार फ़ौज हो, दूर दूर तक उनकी दहशत भी हो, फ़ौज का दबदबा दूर दूर तक हो, सारी फ़ौज पूरे हथियारों से लैस हो और दुश्मनों को नष्ट कर देने वाली हो, राजे के खिलाफ बोलने वाले को मिटा देने वाली फ़ौज हो ।
उनमे इतना गुमान हो कि पर्वत भले ही पंख लगाकर कर उड़ जाए लेकिन वे अपनी जगह से नहीं हिलेंगे,
किसी के पास ऐसी फ़ौज भी हो ।

तोरि अरीन मरोरि मवासन माते मतंगन मान मलैंगे ॥
स्री पति स्री भगवान क्रिपा बिनु तिआगि जहान निदान चलैंगे ॥५॥२५॥

यदि किसी राजा के पास ऎसी फ़ौज हो जो विरोधी राजाओं के किले को ध्वस्त करदे, विरोधी का मान पीस कर रख देने वाली फ़ौज हो लेकिन इसके बावजूद यदि उस पर परमेश्वर की कृपा नहीं हुई तो वह सब कुछ छोड़ कर चला जाएगा अंत में उसे पूछने वाला कोई नहीं होगा । यदि अंतरात्मा से मूल से जुड़ा हुआ नहीं है तो उसके पास कुछ भी नहीं है । वह यूहीं इस संसार से चला जायेगा ।
यहाँ इस ओर इशारा किया गया है कि माया के रस्ते जाकर हासिल कुछ भी नहीं होगा । माया की प्राप्ति में कुछ भी लाभ नहीं है । माया की प्राप्ति किसी काम की नहीं है ।

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