क्या सिख धर्म पुनर जन्म को मानता है


सिख धर्म  दुनिया का पांचवां सबसे बड़ा धर्म है यह सबसे बड़ा धर्म पंजाब के इलाके में फैला हुआ है और वर्ल्ड के बहुत सारे इलाकों में  सिख बहुत आदमी रहते हैं इसकी बड़ी तादाद कनाडा में भी रहती हैं हालांकि सिख धर्म और हिंदू धर्म में बहुत सारी समानताएं पाई जाती हैं दोनों धर्म जो है वह परमात्मा को एक मानते हैं लेकिन हिंदू धर्म आगे चलकर बहुत सारे मध्य पंथ और संप्रदाय में बट जाता है जिनके अंदर वह अलग-अलग प्रकार की पूजा पद्धतियों का इस्तेमाल जो ,है वह करते हैं।

 सिख धर्म परमेश्वर के अवतारवाद का खंडन करता है जबकि हिंदू धर्म में अवतारवाद को माना जाता है सिख धर्म में परमेश्वर को एक माना गया है और ध्यान और समाधि के द्वारा उसको जाना जा सकता है यह गुरु ग्रंथ साहब की वाणी है गुरु नानक ने जब भारत के अंदर अनेक प्रकार के प्रखंडों को देखा तो वह बहुत ही दुखी हो गए। वह इन सब पाखंडो को दूर कर कर जो भारत का असली धर्म है जिसको ब्रह्मविद्या जा वेद धर्म कहा जाता है उसका ही प्रचार करना चाहते थे इसके लिए इसके लिए उन्होंने ब्रह्मविद्या का प्रचार शुरू किया इसके बाद एक से एक गुरु होते गए और वह आगे इसी प्रकार को बढ़ा दे गए  । 


सिख धर्म में किसी भी प्रकार के पाप उनके कारण स्वर्ग और नर्क की कल्पना नहीं की गई है। यानी के मरने के बाद किसी प्रकार का स्वर्ग या नरक इस प्रकार की कल्पना सिख धर्म में नहीं है ,बल्कि गुरबाणी के अनुसार , वह पुनर्जन्म को मानता है यानी की आत्मा एक शरीर छोड़कर दूसरा शरीर धारण करती रहती है यह इसी प्रकार होता है जैसे हम अपने कपड़े उतार कर नए कपड़े पहन लेते हैं इसी प्रकार आत्मा , शरीर छोड़कर दूसरे शरीर में प्रवेश कर जाती है ।और अगले जन्म में यह जरूरी भी नहीं है कि उसको कौन सा जन्म मिलता है यह जन्म कई प्रकार का हो सकता है वह हो सकता है वह कई प्रकार के नीच योनियों में चला जाए जो के मनुष्य से नीच होती हैं ,इसी प्रकार वह और अन्य सरीर  में भी प्रवेश करता है ।

आत्मा लेकिन स्वर्ग और नरक की विचारधारा का सिख धर्म में हमेशा ही खंडन किया है यानी के स्वर्ग और नरक मरने के बाद कहीं नहीं गुरबाणी  में माना गया, बल्कि सिख धर्म के अंदर गुरु ग्रंथ साहब में इसी सृष्टि के अंदर स्वर्ग और नर्क को बताया गया है। सिख धर्म के अंदर कर्म प्रधान है अर्थात आदमी जैसा कर्म करता है उसको उसी प्रकार उसका फल भी प्राप्त होता है जैसे ही मनुष्य, लोभ  और पाप की तरफ चलता है तो अंतरात्मा दुखी हो जाता है और वह दुख को प्राप्त होता है अगर वह ज्ञान की ओर चलता है तो अंतरात्मा सुखी रहता है और वह ज्ञान प्राप्ति में लगा रहता है हालांकि हिंदू धर्म और सिख धर्म में पुनर्जन्म को लेकर समानताएं हैं, क्योंकि हिंदू धर्म  धर्म में पुनर्जन्म की व्यवस्था को मानता है ,क्योंकि धर्म तो एक ही है इसलिए धर्म की बहुत सारी बातें अलग अलग मत संप्रदायों में एक से ही मिलती हैं लेकिन  आगे चलकर धर्म अनेक मत पंथ, संप्रदायों में बट जाता है तब यह अलग अलग हो जाता है|

 इसी को गुरु नानक ने एक करने की कोशिश की है गुरु नानक ने अपनी वाणी में भारत देश मे जितने भी तरह के पाखंड फेले हुए थे उन सब का विरोध किया और मूर्ति पूजा का खंडन किया क्योंकि मूर्ति पूजा से किसी भी प्रकार का लाभ नही होता पर आज सिख खुद ही गुरु ग्रंथ साहिब को मूर्ति पूजा बना कर अज्ञानता की गहरी खाई में कूद पड़े है क्योंकि मूर्ति हो जा कोई ग्रंथ इन सब की पूजा से कोई भी लाभ होने वाला नही है नाम तो केवल ज्ञान के अनुसार चलकर ही हुआ जा सकता है जैसे कोई व्यक्ति स्कूल में जाता है और उसके पास बहुत सारी किताबें होती हैं
 मगर वह इन सारी किताबों को केवल पूछता ही रहे और उसमें से बढ़कर कुछ भी ना जान पाए तो यह कभी भी संभव नहीं है कि वह व्यक्ति अपनी जिंदगी में कुछ बन पाएगा क्योंकि संसार में केवल ज्ञान से ही कुछ अर्जित किया जा सकता है चाहे वह संसारी ज्ञान हो चाहे वह परमात्मा को जानने वाला ज्ञान हो आत्मा को कुछ प्राप्त करना है तो वह ज्ञान से ही होना संभव है और यह ज्ञान केवल और केवल ब्रह्म ज्ञान के ग्रंथों में ही मिलता है अगर आप देखेंगे कि हजारों यह देश को गुलाम रहा इसकी गुलामी का एक ही कारण था कि यहां पर अनेक तरह के मत संप्रदाय आ  गए जो के असली धर्म जो के ज्ञान के अनुसार बात करता है उसके विपरीत थे, इसीलिए इन सब धर्मों को गुरबाणी ने पाखंड और फोकट धर्म कहा है, 

और इसी फोकट धर्मों से लोगों का शोषण होता रहा है आज भी बहुत सारे लोग इन पाखंडी लोगों की भीड़ के सामने खड़े हैं यह पाखंडी साधु संत लोगों की भीड़ को गुमराह करके उनसे बहुत सारी धन और संपत्ति लूट लेते हैं और और फिर यही संपत्ति को इकट्ठा कर कर वह बहुत बड़े-बड़े डेरी और आश्रम बना लेते हैं और फिर इन्हीं की दम पर वह पॉलिटिकल पार्टियों पर दबाव भी डालते हैं आपने कितने ही के यहां पर देखे होंगे के कितने ही संत बाबा साधु कितने ही बलात्कार और अन्य प्रकार के कुकर्मों में शामिल और लिप्त पाए जाते रहे हैं, तो इसीलिए गुरु ग्रंथ साहब का दुनिया को यह उपदेश रहा है कि सारी मानवता इस पाखंड और अज्ञानता से बाहर निकलकर कर्म को असली  जानकर धर्म की  महान परिभाषा समजे , क्योंकि जिसका कर्म सही है वही अपने जिंदगी में कुछ सही और उसी से  ही एक अच्छा समाज बनाना संभव होगा

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